शनिवार, 13 मई 2023

राजा मार्तण्ड वर्मा

 

राजा मार्तण्ड वर्मा – जिसने डचों को पराजित किया – कोलाचेल का युद्ध  

डच लोग वर्तमान नीदरलैंड (यूरोप) के निवासी हैं. भारत में व्यापार करने के उद्देश्य से इन लोगों ने 1605 में डच ईस्ट इंडिया कंपनी बनायीं और ये लोग केरल के मालाबार तट पर आ गए . ये लोग मसाले , काली मिर्च , शक्कर आदि का व्यापार  करते थे . धीरे धीरे इन लोगों ने श्रीलंका ,केरल , कोरमंडल , बंगाल , बर्मा और सूरत में अपना व्यवसाय फैला लिया . इनकी साम्राज्यवादी लालसा के कारण इन लोगों ने अनेक स्थानों पर किले बना लिए और सेना बनायीं . श्रीलंका और ट्रावनकोर इनका मुख्य गढ़ था . स्थानीय कमजोर राजाओं को हरा कर डच लोगों ने कोचीन और क्विलोन quilon पर कब्ज़ा कर लिया .



उन दिनों केरल छोटी छोटी रियासतों में बंटा हुआ था . मार्तण्ड वर्मा एक छोटी सी रियासत वेनाद का राजा था .  दूरदर्शी मार्तण्ड वर्मा ने सोचा कि यदि मालाबार (केरल) को विदेशी शक्ति से बचाना है तो सबसे पहले केरल का एकीकरण करना होगा . उसने अत्तिंगल , क्विलोन quilon और कायामकुलम रियासतों को जीत कर अपने राज्य की सीमा बढाई . अब उसकी नज़र ट्रावनकोर पर थी जिसके मित्र डच थे  . श्रीलंका में स्थित डच गवर्नर इम्होफ्फ़  (Gustaaf Willem van Imhoff) ने  मार्तण्ड वर्मा को पत्र लिख कर कायामकुलम पर राज करने की अप्रसन्नता दर्शायी . इस पर  मार्तण्ड वर्मा ने जबाब दिया कि “राजाओं के काम में दखल देना  तुम्हारा काम नहीं , तुम लोग सिर्फ व्यापारी हो और व्यापार करने तक ही सीमित रहो”. कुछ समय बाद मार्तण्ड वर्मा ने ट्रावनकोर पर भी कब्ज़ा कर लिया . इस पर डच गवर्नर इम्होफ्फ़ ने कहा कि मार्तण्ड वर्मा ट्रावन्कोर खाली कर दे वर्ना डचों से युद्ध करना पड़ेगा . मार्तण्ड वर्मा ने उत्तर दिया कि “अगर डच सेना मेरे  राज्य में आई तो उसे पराजित किया जाएगा और मै यूरोप पर भी आक्रमण का विचार कर रहा हूँ “ .  [“I would overcome any Dutch forces that were sent to my  kingdom, going on to say that I am considering an invasion of Europe “- Koshy, M. O. (1989). The Dutch Power in Kerala, 1729-1758) ]



डच गवर्नर इम्होफ्फ़ ने पराजित ट्रावनकोर राजा की पुत्री स्वरूपम को ट्रावनकोर का शासक घोषित कर दिया . इस पर मार्तण्ड वर्मा ने मालाबार में स्थित डचों के सारे किलों पर कब्ज़ा कर लिया .

अब डच गवर्नर इम्होफ्फ़ की आज्ञा से मार्तण्ड वर्मा पर आक्रमण करने श्रीलंका में स्थित और बंगाल , कोरमंडल , बर्मा से बुलाई गयी 50000 की विशाल डच जलसेना लेकर कमांडर दी-लेननोय कोलंबो से  ट्रावनकोर की राजधानी पद्मनाभपुर के लिए चला . मार्तण्ड वर्मा ने अपनी वीर नायर जलसेना का नेतृत्व स्वयं किया और डच सेना को  कन्याकुमारी के पास कोलाचेल के समुद्र में घेर लिया .

कई दिनों के भीषण समुद्री संग्राम के बाद 31 जुलाई 1741 को  मार्तण्ड वर्मा की जीत हुई . इस युद्ध में लगभग 11000 डच सैनिक बंदी बनाये गए , शेष डच सैनिक युद्ध में हताहत हो गए.




डच कमांडर दी-लेननोय , उप कमांडर डोनादी तथा 24 डच जलसेना टुकड़ियों के कप्तानो को हिन्दुस्तानी सेना ने बंदी  बना लिया  और राजा  मार्तण्ड वर्मा के सामने पेश किया . राजा ने जरा भी नरमी न दिखाते हुए उनको आजीवन कन्याकुमारी के पास उदयगिरी किले में कैदी बना कर रखा . अपनी जान बचने के लिए इनका गवर्नर इम्होफ्फ़ श्रीलंका से भाग गया . पकडे गए 11000 डच सनिको को नीदरलैंड जाने और कभी हिंदुस्तान न आने की शर्त पर वापस भेजा गया , जिसे नायर जलसेना की निगरानी में अदन तक भेजा गया , वहां से डच सैनिक यूरोप चले गए .   कुछ वर्षों बाद कमांडर दी-लेननोय और उप कमांडर डोनादी को राजा ने इस शर्त पर क्षमा किया कि वे आजीवन राजा के नौकर बने रहेंगे तथा उदयगिरी के किले में राजा के सैनिकों को प्रशिक्षण देंगे . इस तरह नायर सेना यूरोपियन युद्ध कला में निपुण हुई . उदयगिरी के किले में कमांडर दी-लेननोय की मृत्यु हुई , वहां आज भी उसकी कब्र है .



केरल और तमिलनाडु के बचे खुचे डचों को पकड़ कर राजा मार्तण्ड सिंह ने 1753 में उनको एक और संधि करने पर विवश किया जिसे मवेलिक्कारा की संधि कहा जाता है . इस संधि के अनुसार डचों को इंडोनेशिया से शक्कर लाने और काली मिर्च का व्यवसाय करने की इजाजत दी जायेगी और बदले में डच लोग राजा को यूरोप से उन्नत किस्म के हथियार और गोला बारूद ला कर देंगे .  




राजा  ने कोलाचेल में विजय स्तम्भ लगवाया और बाद में भारत सरकार ने वहां शिला पट्ट लगवाया .

मार्तण्ड वर्मा की इस विजय से डचों का भारी नुकसान  हुआ और डच सैन्य शक्ति पूरी तरह से समाप्त हो गयी . श्रीलंका , कोरमंडल , बंगाल , बर्मा  एवं सूरत में डचो की ताकत क्षीण हो गयी .

मार्तण्ड वर्मा ने  शिवाजी की जलसेना शक्ति से प्रेरणा ली थी और अपनी सशक्त जलसेना बनायीं थी .

तिरुवनन्तपुरम का  प्रसिद्द पद्मनाभस्वामी  मंदिर राजा मार्तण्ड वर्मा ने बनवाया और अपनी सारी संपत्ति मंदिर को दान कर के स्वयं भगवान विष्णु के दास  बन गए . इस मंदिर के 5 तहखाने खोले गए जिनमे बेशुमार संपत्ति मिली . छठा तहखाना खोले जाने पर अभी रोक लगी हुई है .



यह दुख की बात है कि महान राजा मार्तण्ड वर्मा और कोलाचेल के युद्ध को NCERT की इतिहास की पुस्तकों में कोई जगह न मिल सकी .

1757 में अपनी मृत्यु से पूर्व दूरदर्शी  राजा मार्तण्ड वर्मा ने अपने पुत्र राजकुमार राम वर्मा को लिखा था – “ जो मैंने डचों के साथ किया वही बंगाल के नवाब को अंग्रेजों के साथ करना चाहिए . उनको बंगाल की खाड़ी में युद्ध कर के पराजित करें , वर्ना एक दिन बंगाल और फिर पूरे हिंदुस्तान पर अंग्रेजो का कब्ज़ा  हो जाएगा “.  

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