यदि आप सरल हैं, सहज हैं, आनंद से भरे हैं तो यह गुण संभाल कर रखिए। और जिनको ऐसे सम्बन्धी, सहकर्मी या मित्र मिले हैं उन्हें सहेज कर रखिए। आप नहीं जानते कि आपके लिए जाने-अनजाने यह अमृत कलश के समान हैं जो तमाम कटुता और दुःख के प्रभाव को मिटाकर आपको प्रेम और शांति से सराबोर कर देते हैं।
क्योंकि, दुनिया बहुत ज़्यादा तार्किक होने के नाम पर कड़वाहट और जटिलता से धूर्तता और फरेब के हद तक भरी है।
ऐसे जटिल मस्तिक वाले लोग बिना अनुभव के भी कही-सुनी बातों के आधार पर हर छोटी से छोटी बात में भी टाँग अड़ाने या परेशानी बढ़ाने से बाज नहीं आते। ऐसे जटिल मस्तिक दूसरों की हर छोटी चीज को मैग्निफाइड लेंस से देखता है। और तिल का ताड़ बनाने से बाज नहीं आते। पिछले माह मैंने यह अनुभव किया ।
ठीक है तार्किक या विश्लेषण वाली सोच अच्छी होती है लेकिन तर्क यदि होशपूर्वक न लगाया जा रहा हो तो अनर्थ के पक्ष में भी तमाम दलीलें खोज लाता है। इसलिए अधिक खोदबीन या छिद्रान्वेषण को एक बुराई के रूप में देखा गया है।
जहाँ एक ओर विश्लेषण कार्य प्रक्रिया को तेज करती है वहीं अधिक विश्लेषण पक्षाघात या पूर्वाग्रह का भी कारण बनता है।
एक सहज और सरल मस्तिष्क जहाँ अपरिवर्तनीय या अनुभवजन सच्चाई को स्वीकार करता है वहीं जटिल मस्तिष्क अपने कुतर्कों के सहारे वहाँ भी तब तक अड़ा रहता है जब तक बात खुद पर या उसके बेहद करीबी परिजन पर नहीं आती।
मैंने ऐसे कई लोगों को देखा है जो दूसरों के ज्ञान व कार्यों को बिना अनुभव किए ही कुतर्कों के सहारे उसे इतने निचले स्तर पर आँकते हैं जैसे पूरा ब्रह्माण्ड उनकी छोटी सी मस्तिक के गणनाओं के सहारे चल रहा है। जबकि उनके शरीर की तमाम प्रक्रियाएँ भी उनके नियंत्रण से बाहर हैं।
ऐसे नकारात्मक लोग अपना नुकसान तो करते ही हैं, जिनपर ये अधिकार जताते हैं उनका तो और भी सत्यानाश करते हैं। जबकि इस सच को मैंने करीब से देखा है जब बात उनके जान पर या परिजनों की आएगी तो ये सिर के बल खड़े हो जाने से भी नहीं चूकेंगे।
मै ऐसी नकारात्मकता के परतें नहीं खोलना चाहता पर यह जरूर कहना चाहता हूँ कि ध्यान बाद की चीज है, पहले सिर्फ आँखें बंद कर साँसों पर भी होश पूर्वक नज़र बनाए रखेंगे तो भी आपको ऊर्जाओं का खेल और अंतर समझ आ जाएगा।
यहाँ तक अपने शहर के किसी जागृत मंदिर के ऊर्जा क्षेत्र में प्रवेश करके देखिए बहुत कुछ पिघलता हुआ, मन शांत होता हुआ नज़र आएगा, महज़ क्षण भर के प्रभाव से भी।
तो अगली बार ध्यान या आध्यात्म पर अपना अधकचरा ज्ञान देने से पहले खुद को ईमानदारी से टटोलिएगा क्या आप जो दावे से कहने जा रहे हैं, क्या आपने उसे अनुभव भी किया है?
अगर नहीं तो पहले ध्यान का, आध्यात्मिकता के गूढ़ पहलुओं का स्वाद लीजिए, फिर आपका अनुभव आपकी जटिलता को स्वतः दूर कर देगा। बात फिर भी समझ न आए तो कम से कम जो आपके करीबी हैं उनको तो स्वयं अनुभव करके निर्णय लेने दीजिए। वह आपसे रिश्तों की डोर में जुड़े हैं सिर्फ इस जीवन काल के एक अंतराल तक, कई जन्मों की गुलामी नहीं लिखवा ली है।
जीवन के हर पहलू में अत्यधिक तार्किकता विश्लेषण वैज्ञानिकता की आवश्यकता नही है ।
सहज बनिये , सरल बनिये , अनुभव लीजिये
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