तारा रानी श्रीवास्तव
एक भूली-बिसरी कहानी है तारा रानी श्रीवास्तव की!
बिहार के पटना के पास सारण में जन्मीं तारा की शादी कम उम्र में ही एक स्वतंत्रता सेनानी फुलेंदु बाबू से हो गयी थी। जब ज्यादातर महिलाओं को घर से निकलने नही दिया जाता था, तब उन्होंने आगे बढ़कर गाँधी जी के आंदोलन का मोर्चा संभाला।
तारा ने अन्य महिलाओं को भी जागरूक कर आंदोलन में भाग लेने के लिए बढ़ावा दिया। तारीख 8 अगस्त 1942 , भारत छोड़ो आंदोलन में तारा और उनके पति ने अन्य लोगों को इकट्ठा कर सिवान पुलिस स्टेशन की तरफ बढ़ाना शुरू किया। उनका उद्देशय पुलिस स्टेशन पर तिरंगा फहराना था ताकि अंग्रेजों को भारत छोड़ने की चेतावनी मिल सके।
अंग्रेजों की पुलिस ने भी इस विरोध को रोकने के लिए अपनी जी-जान लगा दिया। जब पुलिस की धमकियों से भी प्रदर्शनकारी नहीं रुके तो पुलिस ने लाठीचार्ज किया। लेकिन उनके डंडे भी इन सेनानियों के हौंसलों को तोड़ने में नाकामयाब रहे। ऐसे में अंग्रेज पुलिस ने गोली-बारी शुरू कर दी।
तारा ने अपनी आँखों के सामने अपने पति को गोली लगते और जमीन पर गिरते देखा। लोगों को शायद लगा कि अपने पति पर हुए हमले को देख कर तारा के कदम रुक जायेंगें। लेकिन तारा ने वह किया जो कोई सोच भी नहीं सकता था। अपने पति को घायल देख, उन्होंने तुरंत अपनी साड़ी का पल्लू फाड़ कर घाव पर बांधा। किन्तु उनके पति शहीद हो चुके थे।
लेकिन वह नहीं रुकी।
वह गोलियों के बीच पुलिस स्टेशन की तरफ बढ़ती रही, पुलिस की तमाम कोशिश उनको रोक नही पाई और तारा रानी ने वहां तिरंगा फहरा दिया ।
15 अगस्त, 1942 को छपरा में उनके पति की देश के लिए कुर्बानी के सम्मान में प्रार्थना सभा रखी गयी थी। अपने पति को खोने के बाद भी तारा आजादी और विभाजन के दिन 15 अगस्त, 1947 तक स्वतंत्रता आंदोलन का अहम हिस्सा रहीं।
तारा जैसी कई महिलाओं ने अपने दुःख से पहले देश को रखा और देश के लिए सब कुछ कुर्बान कर दिया। इन महिला स्वतंत्रता सेनानियों को शत शत नमन !
indian history in hindi, भारतीय इतिहास , tara rani shrivastava, freedom fighter
indian history in hindi, भारतीय इतिहास , tara rani shrivastava, freedom fighter
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें