कोमाराम भीम
कोमाराम भीम एक महान भारतीय आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी थे। जिन्होंने अपने जीवन काल में हैदराबाद शहर को मुक्त करने के लिए असफजली निज़ाम राजवंश के खिलाफ अपनी लड़ाई लड़ी।
महापुरुष भीम का जन्म तेलंगाना राज्य के जोदेघाट जिले में अलिदाबाद के जंगलो में स्थित गोंडा आदिवासी समुदाय में 22 अक्टूबर 1901 को हुआ था। कोमारम भीम की किसी प्रकार की औपचारिक शिक्षा नही हुई । युवावस्था से ही वे अंग्रेजी और निज़ामी शासन के अन्याय के खिलाफ लड़ते रहे ।
अंग्रेजों के अधीन निजाम के मजहबी शासन में धार्मिक अत्याचार और सरकारी अधिकारियों के द्वारा हो रहे आदिवासियों पर जुल्म कोमारम को पसंद नहीं आया और उन्होंने निजाम सरकार के खिलाफ विद्रोह करने का निर्णय लिया । निजाम सरकार के जगीरदार सिद्दिकी ने गोंड समूह पर ज्यादा कर डालकर उनकी जमीनें छीन ली। कोमाराम ने कहा कि वन के सभी संसाधनों पर वन में रहने वाले आदिवासियों का पूर्ण अधिकार होना चाहिए न कि निज़ाम का । और अपने कुछ साथियों को साथ लेकर विद्रोह कर दिया जिसमें जागीरदार सिद्दीकी की मृत्यु हुई ।
उनके द्वारा किये गए विद्रोह को कुचलने के लिए निज़ाम ने 16 अक्टूबर 1940 को थानेदार अब्दुल सत्तार के साथ 90 बंदूक धारी सिपाही भेजे। जंगल में युद्ध चला । परन्तु 10 आदिवासियों की टोली के पास आक्रमण और बचाव के लिए सिर्फ तीर धनुष और ढाल था।
कुर्दुपटेल नामक द्रोही ने कोमाराम भीम के साथ विश्वासघात किया और उनका ठिकाना अब्दुल सत्तार को बताया। घेराबंदी हुई और तीन दिन तक लगातार युद्ध चलता रहा , कोमाराम और उनके साथी अत्यंत वीरता से लड़े। अंत मे अब्दुल सत्तार और निज़ाम की सशस्त्र पुलिस ने कोमाराम भीम और उनके आदिवासी साथियों को मार गिराया ।
तब से लेकर अब तक गोंड जाति के समूह कोमराम भीम को आरध्य देव मानते हैं।
तेलंगाना सरकार ने उनके सम्मान में आसिफाबाद जिले का नाम "कोमराम भीम आसिफाबाद" किया है।
जय कोमाराम भीम
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