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रमा खंडवाला:
सिर्फ एक टूर गाइड नहीं, वह नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की आजाद हिंद फौज में सेकंड लेफ्टिनेंट भी थी
अगर अपने शाहरुख खान और अनुष्का शर्मा अभिनीत "जब हैरी मेट सेजल" देखी होगी तो उसमें एक टूर गाइड की भूमिका में एक वृद्धा को एक छोटे से, मगर यादगार रोल में भी देखा होगा.
यह 94-वर्षीय रमा खंडवाला हैं। वह मुंबई की नियमित टूरिस्ट गाइड रही हैं. यह काम उन्होंने अब से लगभग पचास वर्ष पूर्व नेताजी सुभास चन्द्र बोस की आजाद हिन्द फ़ौज से क्रियाशीलता खत्म होने के बाद आजीविका के लिए करना शुरू किया था. क्योकि सरकार द्वारा आजाद हिंद फौज के सैनिकों को युद्ध अपराधी मानते हुए पेंशन नही दी गयी । वह १७-वर्ष की आयु में नेताजी की सेना की रानी लक्ष्मी बाई बटालियन में एक सिपाही के रूप में भर्ती हुई थीं और अपनी निष्ठा, समर्पण और जूनून से सेकंड लेफ्टिनेंट के पद तक जा पहुंची.
अभी मुंबई के गिरगांव क्षेत्र में अपने एक कमरे के छोटे से फ्लैट में रहने वाली रमा का जन्म रंगून के एक सम्पन्न मेहता परिवार में हुआ था. रमा को इस भर्ती के लिए किसी और ने नहीं उसकी अपनी माँ ने प्रेरित किया था जो स्वयं नेताजी सुभाष चंद्र बोस की रानी लक्ष्मी बाई बटालियन की भर्ती इंचार्ज थी। उनका मानना था कि अंग्रेजों को भारत से भगाने के लिए नेताजी सुभाष चंद्र बोस से बेहतर कोई विकल्प नहीं था.
रमा का नेताजी से पहला सामना अचानक तब हुआ जब वह प्रशिक्षण केंद्र के इलाके की देखरेख करते हुए एक खाई में गिरकर घायल हो गई. यहाँ शत्रु पक्ष की सेना ने भयंकर गोलाबारी की थी. आनन-फानन में उसे अस्पताल ले जाया गया. वहां घायलो को देखने सुभाष चंद्र बोस आये थे . वह यह देखकर विस्मित हो गए कि एक कम उम्र की लड़की जिसके पैरों से कई जगह से लगातार खून बह रहा था, वह सामान्य रूप से अपनी मरहम-पट्टी कराए जाने का इंतजार कर रही थी. उसकी आंखों में कोई आँसू नहीं थे. उन्होंने उसकी पीठ थपथपाते हुए कहा,
“यह तो एक शुरुआत भर है. ..एक छोटी-सी दुर्घटना थी. अभी बहुत बड़ी लड़ाइयों के लिए कमर कसनी है. देश की आजादी के जूनून में रहना है तो हिम्मत बनाये रखो. तुम जैसी लड़कियों के जूनून से ही हम,हमारा भारत देश आजाद हो कर रहेगा.”
रमा की आँखों में हिम्मत और ख़ुशी के आँसू निकल आए. वह जल्दी ही स्वस्थ होकर फिर से अपनी बटालियन के कामों में जुट गई. उसने जल्दी ही निशानेबाजी, घुड़सवारी और सैन्य बल में अपनी उपयोगिता सिद्ध करने वाले सब गुणों को सीख लिया था. उसका जूनून उसे किसी काम में आगे बढ़ने के लिए मदद करता. उसकी लगन के कारण ही रमा को जल्दी ही सिपाही से सेकंड लेफ्टिनेंट के पद पर प्रोन्नत कर दिया गया.
रमा का कहना है कि अभी भी जब वह किसी असहज स्थिति में फंस जाती है तो नेताजी के शब्द “आगे बढ़!” उसके कानों में इस तरह से गूँज जाते हैं कि वह अपनी मंजिल पर पहुँच ही जाती है.
रमा बताती हैं कि,
“युवा अवस्था में जीवन के वैभव और सारी सुख-सुविधाओं को छोड़कर संघर्ष का पथ चुनना बहुत कठिन फैसला होता है. मैं भी आरंभिक दिनों में इतनी परेशान रहती थी कि अकेले में दहाड़ मार कर रोया करती. पर धीरे-धीरे समझ में आ गया. फिर, जब नेताजी से स्वयं मुलाकात हुई तो उसके बाद तो फिर कभी पीछे मुड़कर देखा ही नहीं. आरम्भिक दो महीनों मुझे जमीन पर सोना पड़ा. सादा भोजन मिलता था और अनथक काम वो भी बिना किसी आराम के करना बहुत कष्टकर था. मैंने मित्र भी बना लिए थे. जब बड़े उद्देश्य के विषय में समझ आया तो कुछ भी असहज नहीं रहा.”
रमा की तैनाती एक नर्स के रूप में हुई जिस जिम्मेदारी को भी उसने बखूबी निभाया. उसके लिए अनुशासन, समय का महत्त्व, काम के प्रति निष्ठा और जूनून-- बस इन्हीं शब्दों की जगह रह गई थी. पहले उसे प्लाटून कमांडर बनाया गया और फिर सेकंड लेफ्टिनेंट.
जब आजाद हिन्द फ़ौज को ब्रिटिश सेना ने कब्जे में ले लिया तो रमा भी गिरफ्तार हुई. उसे बर्मा में ही नजरबंद कर दिया गया. सौभाग्य से जल्दी ही देश आजाद हो गया. तब वह मुंबई चली आई. उसका विवाह हो गया था. आजीविका के लिए पति का साथ देने का निश्चय किया. पहले एक निजी कंपनी में सेक्रेटरी का काम किया, फिर टूर गाइड बनी.
तब से अब तक वह सैलानियों को पर्यटन के रास्ते दिखाती रही है और तमाम किस्से सुनाया करती है. एक बार सरदार वल्लभ भाई पटेल ने उन्हें राजनीतिक धारा में भाग लेने का आमन्त्रण भी दिया था, पर तब वह हवाई दुर्घटना में नेताजी की मृत्यु के समाचार से इतनी विचलित हो गई थी कि उसने राजनीति से दूर रहना ही उचित समझा.
बमुश्किल दो साल पहले ही उसने टूर गाइड के काम को विदा कहा है, पर अभी भी वह पूरी तरह स्वस्थ और मजाकिया है. कहती हैं,
“उम्र के कारण नहीं छोड़ा, इसलिए छोड़ा है कि नई पीढी के लोगों को रास्ते मिलें. मेरी पारी तो खत्म हुई.”
उनके एक बेटी है. पति की मृत्यु सन १९८२ में हो गई थी. सन २०१७ में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उनको बेस्ट टूरिस्ट अवार्ड से सम्मानित किया था. उनके जीवन पर एक वृत्त फिल्म भी बनी है, और एक किताब ‘जय हिन्द’ भी प्रकाशित हुई है.
सादर शत शत नमन आपको 🙏🙏🙏
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