माँ तारा
बौद्ध धर्म मे देवी तारा अत्यंत प्रमुख शक्ति हैं । जिन्हें बोधिसत्व का स्त्री रूप माना जाता है । इन्हें अनेक बौद्ध देशों में बुद्ध की पत्नी के रूप में पूजा जाता है । सनातन धर्म मे तारा देवी को दुर्गा का एक रूप माना गया है ।
ध्यायेत् कोटि-दिवाकरद्युति-निभां बालेन्दुयुक्छेखरां
रक्ताङ्गीं रसनां सुरक्त वसनां पूर्णेन्दुबिम्बाननां।
पाशं कर्तृ-महाङ्कुशादि-दधतीं दोर्भिश्चतुर्भिर्युतां
नानाभूषण-भूषितां भगवतीं तारां जगत्तारिणीं॥
माँ काली नील रूप में भगवती तारा बनी , हयग्रीव का वध करने पर इन्हें नील विग्रह प्राप्त हुआ । इन्हें नील सरस्वती भी कहा जाता है ।
तारा एक बोधिसत्व हैं ।
देवी तारा तिब्बत, मंगोलिया , नेपाल , भूटान , सिक्किम में बहुत लोकप्रिय है और बौद्ध समुदायों में उनकी पूजा की जाती है। चीनी बौद्ध धर्म में देवी तारा को अवलोकितेश्वर की अर्धांगिनी के रूप में पूजा जाता है । बौद्ध धर्म मे माँ तारा स्त्री सिद्धांत के कई गुणों का प्रतीक है। उन्हें दया और करुणा की माता के रूप में जाना जाता है। वह ब्रह्मांड के स्त्री पहलू का स्त्रोत है, जो चक्रीय अस्तित्व में सामान्य प्राणियों द्वारा अनुभव किए गए बुरे कर्म से मुक्ति , करुणा और राहत को जन्म देता है। वह सृजन की जीवन शक्ति को जन्म देती हैं, पोषण करती हैं, मुस्कुराती हैं , और सभी प्राणियों के प्रति सहानुभूति रखती हैं जैसे एक माँ अपने बच्चों के लिए करती हैं। बौद्ध धर्म मे मान्यता है कि हरी तारा के रूप में वह संसार के भीतर आने वाली सभी दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों से सहायता और सुरक्षा प्रदान करती हैं। श्वेत तारा के रूप में वह मातृ करुणा व्यक्त करती हैं और मानसिक या मानसिक रूप से आहत या घायल प्राणियों को उपचार प्रदान करती हैं। लाल तारा के रूप में वह सृजित घटनाओं के बारे में विवेकपूर्ण जागरूकता सिखाती हैं, कि अधूरी इच्छा को करुणा और प्रेम में कैसे बदलना है।
मंत्र
॥ॐ तारायै विद्महे महोग्रायै धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात्॥
यह तारा गायत्री मन्त्र है, इसका भाव है- “हम भगवती तारा को जानते हैं और उन महान् उग्र स्वरूप वाली देवी का ही ध्यान करते हैं। वे देवी हमारी चित्तवृत्ति को अपने ही ध्यान में, अपनी ही लीला में लगाये रखें।”
ॐ तारा तू तारा तुरे सोहम
अर्थात ओम माँ तारा , आप तारने वाली है , मां तारा (आपको प्रणाम व आपके लिए) स्वाहा
https://youtu.be/ayGQoJdRcdQ
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