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My Blog on Forgotten Heros, Forgotten History, Dharma (Religion) , Darshan (Philosophy), Science and Technology . भारतीय इतिहास , धर्म , दर्शन
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क्या एक शिक्षक परामर्शदाता भी हो सकता है?
स्कूल और कॉलेज में आपके बीते दिनों को याद करें और अपने प्रिय शिक्षक के बारे में सोचें। उनको किस बात ने इतना विशेष बनाया ? कुछ ऐसे है जिन्हे आप उनके आकर्षक तरीके से अध्ययन कराने के तरीके के कारण याद करते हैं, पर कुछ ऐसे भी है जो छात्रों के प्रति सहयोगी व्यवहार और सहानुभूति भाव दिखाते हैं और इस कारण आप उन्हे सानुराग याद करते हैं । एक श्रेष्ठ शिक्षक अक्सर दोनों का मिश्रण होता है।
जैसा कि हम सभी को मालूम है कि छात्र अपने वयस्क होने की उम्र का आधा समय स्कूल व कॉलेज में बिताते हैं, छात्रों के व्यक्तित्व को आकार देने में शिक्षकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। स्कूल के परामर्शदाता अनेक मुद्दे सुलझाने के लिए प्रशिक्षित होते हैं जैसे कि टूटे-रिश्ते, माँ-बाप के साथ तनावपूर्ण संबंध, आत्म-सम्मान और देह-छवि समस्याएं, व्यसन और आत्महत्या के विचार या सम्भावित पेशा मार्ग, एक शिक्षक जो छात्रों के साथ लगातार संपर्क में रहता है, छात्रों के साथ बात-चीत भी शुरु कर सकता है और उन्हे अपनी समस्याओं को बताने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है। यह परामर्शदाता की भूमिका को शैक्षणिक ढाँचे में अनिवार्य बनाता है, और छात्रों के लिए परिसर में सहायता पहुंचाने हेतु शिक्षक एक प्राथमिक स्रोत बन सकता है।
केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) भारत ने इस बात की सिफारिश की है कि विद्यालय परिसर में एक पूर्णकालिक परामर्शदाता को नियुक्त किया जाए, लेकिन यह ज्यादातर कार्यान्वित नहीं हुआ है। कभी-कभी यह स्कूल-व्यवस्था की अनिच्छा, और अक्सर प्रशिक्षित परामर्शदाताओं की अनुपलब्धता होने का परिणाम है। दूसरी चुनौती है कि जब छात्र अपने आप को परेशान स्थितियों में पाता है तो स्कूल के परामर्शदाता से मिलने मे हिचकता है। इस अंतर को भरने में शिक्षक की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। एक शिक्षक जिसपर विश्वास किया जा सके और जो सहानुभूति रखता हो, छात्रों को सहायता पहुंचा सकता है और जब जरूरत हो स्कूल के परामर्शदाता की ओर मार्गदर्शित कर सकता है। यद्यपि, ऐसा करने के लिए हर शिक्षक के पास एक जैसे गुण नहीं होते।
इस भूमिका को कौन निभा सकता है?
छात्रों के लिए यह आसान नहीं कि वे शिक्षक से अपनी सारी समस्याएं बता दें। यह शिक्षकों के लिए जरूरी है कि वे उदार-चित्त और सहायता करने के लिए इच्छुक हों। यदि एक शिक्षक हमराज़ होना चाहता है तो छात्रों के मन में उसके प्रति विश्वास होना आवश्यक है।
ऐसे कुछ गुण जो छात्रों को शिक्षक से बात करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं:
दृष्टिकोण में निष्पक्षतावाद: एक शिक्षक द्वरा छात्र को व्यक्तित्व या शैक्षिक रिकार्ड के आधार पर, किसी वैयक्तिक पक्षपात रहित निष्पक्षतावाद के ढंग से देखना चाहिए।पुराने लोग: एक पुराना व्यक्ति जो संस्था के साथ लम्बे समय से जुड़ा है, वातावरण और छात्रों को जानता है, भी परामर्शदाता की भूमिका के लिए एक आदर्श उम्मीदवार है। एक शिक्षक जो छात्रों को सुलभ से उपलब्ध होता है, परामर्श-सेवा हेतु पहचाना और प्रशिक्षित किया जा सकता है। सक्रिय रूप से सुनने की कौशलता: छात्र जो कह रहे हैं, शिक्षक को उनकी बातों में स्वाभविक रुचि दिखाना जरूरी है। उन्हें स्वयं पर नियंत्रण रखने का अभ्यास होना चाहिए, उनमें धैर्यता होना जरूरी है, उन्हे सिर हिलाकर और छात्रों के संकेतों पर अनुक्रिया देकर सहिष्णुता और सहायता पहुँचाने हेतु शारीरिक हाव-भाव दिखाने की कोशिश करनी चाहिए।उच्च स्तर की सत्यनिष्ठा: यदि छात्र अपनी सबसे बड़े कठिनाई-भरे मुद्दों को बतलाता है तो शिक्षक का विश्वसनीय होना जरूरी है, जो किसी अन्य से ना बताएं या उससे भी बदतर, उसपर गपशप ना करें। उदाहरण के लिए, यह विश्वास आए बिना कि जिस व्यक्ति से वे बातें कर रहे हैं वह विश्वसनीय है या नहीं, कोई छात्र अपने अशांत परिवार की पृष्ठभूमि के बारे में बात करना नहीं चाहेगा।सहानुभूतिपूर्ण और गंवेषणात्मक: शिक्षक को सहानुभूति होना चाहिए क्योंकि यह छात्र के परिपेक्ष्य से जुड़े मुद्दे को समझने में मदद करता है। उसी तरह, उनके पास बातचीत की युक्ति की कौशलता होनी चाहिए जिससे हल निकाले जाने के लिए छात्र के मन की बात अधिक से अधिक जान सकें।
जब एक छात्र उनके पास आएं तो एक शिक्षक को क्या करना चाहिए:
मेल-जोल बढ़ाएं: यह पहला चरण है जो एक शिक्षक-परामर्शदाता को उठाना चाहिए। छात्र को अपनी उपस्थिति में तब तक सहज महसूस कराएं जब तक कि वह अपनी बातें सहजता से करना शुरु न कर दें । याद रखें कि छात्र आपको विश्वसनीयता की कसौटी पर नापने की कोशिश करता है। इस पड़ाव पर मौखिक तथा हाव-भाव से मिश्रित सम्प्रेषण का उपयोग करना महत्वपूर्ण है।छात्रों को स्वयं से अभिव्यक्ति की अनुमति दें: जब छात्र सामना की जा रही चुनौतियों के बारे में बातें करना शुरु करता है, तो उन्हे गहराई में उतरने दें। छात्र की बातों को बिना टोके हर वो बात सुनें जो वह कहना चाहता है। शिक्षक के रूप में भी, आप छात्र के विचारों को पदच्छेद करके सुनिश्चित कर सकते हैं कि आपने समस्या को सही तरीके से समझ लिया है। यह उनके विचारों में स्पष्टता प्रदान करेगा। “मैंने इस तरह से तुम्हारी सारी समस्या को समझ लिया है और मुझे विश्वास है कि तुम इसका समाधान इस तरह से कर सकोगे। तुम्हें क्या लगता है?” यह एक तरीका हो सकता है। छात्र को तुरंत समाधान प्रदान करने के बदले में समस्या से पार पाने के विचारों तक पहुंचने में सहायता करें या समस्या का समाधान करें।गैर-निर्णायक रहें: शिक्षक को छात्र के प्रति सहानुभूतिपूर्ण और संवेदनशील रहना चाहिए। उदाहरण के लिए, यदि एक छात्र आकर कहता है कि वह एक दिन में 60 सिगरेट पी गया, तो शिक्षक को यह नहीं कहना चाहिए “अरे, यह बुरी बात है!” उन्हे आत्म-संयम से रहना आवश्यक है।भावनाओं में एकरूपता का होना: शिक्षक के रूप में, व्यक्ति को अपने विचारों तथा भावनाओं में स्थिर होना चाहिए। उन्हें प्रयत्न करना चाहिए कि वे उनकी मनोदशा तथा भावनाओं को उस छात्र पर ना थोपें जो उनके पास सहायता माँगने आता है। उन्हे अपनी गंभीरता को बनाएँ रखना होगा।पूर्णरूप से गोपनीयता बनाएँ रखें:छात्र को भरोसा दें कि वे जो बातें बताते है वह गोपनीय ही रहेंगी और किसी से नहीं बताई जाएंगी (यदि छात्र द्वारा कही गई बातें स्वयं या किसी और को नुकसानदाई हो सकती हैं, तो यह स्कूल प्रबंधन के ध्यान में लाना जरूरी है)।
इसके साथ में, स्कूल प्रबंधन ऐसे शिक्षकों की पहचान कर सकता है जिनको छात्रों को परामर्श देने हेतु प्रशिक्षित किया जा सकता है।
(इस विषय-वस्तु को जैन विश्वविद्यालय, बेंगलूर की डॉ. उमा वारियर, मुख्य परामर्शदाता के द्वारा व्यक्त विचारों से लिया गया है।)
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चीनी भाषा नहीं बल्कि हिंदी है विश्व की सबसे
जादा बोली और समझी जाने वाली भाषा
Apr 21, 2017,
सामान्यतः यह माना
जाता है कि चीनी भाषा (मंदारियन) विश्व की सबसे जादा बोली जाने वाली भाषा है जिसे 1 अरब 20 करोड़ लोग बोलते हैं . दूसरे
स्थान पर स्पेनिश भाषा आती है जिसे 43 करोड़ लोग बोलते हैं , तीसरे स्थान पर अंग्रेजी है जिसे विश्व में मात्र 42 करोड़ लोग बोलते व समझते हैं
. हिंदी भाषा का स्थान चौथा माना जाता है जिसे 38 करोड़ लोग बोलते है . फ्रेंच भाषा का स्थान पांचवे नंबर पर
हिंदी के बाद है . इसके बाद अरबी और रुसी भाषा का स्थान आता है . इनमे हिंदी को
छोड़ कर अन्य उपरोक्त भाषाओं को संयुक्त
राष्ट्र संघ की कार्यालयीन भाषाओँ का दर्जा मिला हुआ है .
यह आंकड़ों का खेल है
कि जहाँ चीन सरकार संयुक्त राष्ट्र को चीनी भाषा के आंकड़े बढ़ा चढ़ा कर पेश करती है
वही हमारी सरकार हिंदी भाषा बोलने और समझने वालों की वास्तविक संख्या को कम करके प्रस्तुत
करती है .
चीनी कोई एक भाषा नहीं है . यह
चीन में बोली जाने वाली लगभग बीस भाषाओँ का समूह है . इस समूह की प्रमुख भाषाए हैं
- गुआन (Guan,
उत्तरी या मन्दारिन, 北方話/北方话 या 官話/官话)
- 85 करोड़ वक्ता , वू (Wu 吳/吴, जिसमें शंघाईवी शामिल
है) - लगभग 9 करोड़ वक्ता , यू (Yue या Cantonese,
粵/粤)
- लगभग 8 करोड़ वक्ता , मीन (Min
या Fujianese,
जिसमें ताइवानवी
शामिल है, 閩/闽) - लगभग 5 करोड़ वक्ता , शिआंग (Xiang 湘)
- लगभग 3.5 करोड़ वक्ता , हाक्का (Hakka
客家 या 客)
- लगभग 3.5 करोड़ वक्ता , गान (Gan
贛/赣)
- लगभग 2 करोड़ वक्ता तथा अन्य चीनी भाषाए लगभग 1 करोड़ वक्ता . इस प्रकार चीनी भाषा
बोलने वालों की कुल संख्या 1 अरब हो जाती है . अब
चीन सरकार द्वारा चीन के बाहर रह रहे चीनी नागरिक तथा ताईवानी और सिंगापुर के चीनी
बोलने वाले विदेशी नागरिको को जोड़ कर
चीनी भाषा बोलने व समझने वाले लोगों की कुल 1.2 अरब की संख्या प्रस्तुत की जाती है .
हमारी सरकार संयुक्त
राष्ट्र में देश की जनगणना के आधार पर हिंदी भाषा
बोलने वालों के आंकड़े प्रस्तुत करती है . अर्थात सरकार द्वारा 38 करोड़ लोगो को हिंदी बोलने वाला बताया जाता है . इसमें भारत में रहने
वाले सिर्फ खड़ी बोली बोलने वाले नागरिक ही शामिल हैं . इस संख्या में
हिंदी की विभिन्न शाखाओं जैसे भोजपुरी , मैथिली , उर्दू , राजस्थानी , मारवाड़ी ,
बघेली , अवधी , बुन्देली , पहाड़ी , कुमायुनी गढ़वाली डोगरी , ब्रज , हरयाणवी , दक्कनी- हैदराबादी ,
छत्तीसगढ़ी , झारखंडी आदि भाषायें शामिल नहीं है !!! अब यदि इसमें 4 करोड़ भोजपुरी ,
2.5 करोड़ मैथिली , 6 करोड़ उर्दू , 8 करोड़ राजस्थानी , 1.5 करोड़ मारवाड़ी , 80 लाख बघेली , 30 लाख बुन्देली , 2
करोड़ अवधी , 1 करोड़ पहाड़ी –
कुमयुनी –डोगरी , 60 लाख ब्रज भाषी , 1.5 करोड़ हरयाणवी , 10 लाख मालवी , 2 करोड़
दक्किनी भाषाओँ के बोलने वालों को जोड़ दिया जाए तो अब हिंदी भाषा बोलने वालों की
संख्या 68 करोड़ हो जाती है
. चीन की तरह यदि हम भी लिपि के आधार पर
देवनागरी का प्रयोग करने वाली भषाओं जैसे
नेपाली और मराठी को हिंदी की सहायक भाषा मान लें
तो 2 करोड़ नेपाली और 7.5 करोड़ मराठी को जोड़ने से हिंदी बोलने और समझने वालों का आंकड़ा 78 करोड़ पहुँचता है ,
अभी इसमें केवल भारतीय नेपाली नागरिक ही शामिल हैं .
अब इस संख्या में विदेशों में
रहने वाले हिंदी बोलने और समझने वालों (भारतीय मूल के विदेशी नागरिक तथा अप्रवासीय
भारतीय ) को जोड़े तथा दक्षिण अफ्रीका , मारीशस , फिजी , सिंगापुर , वेस्ट इंडीज, नेपाल
के मधेशिया आदि के हिंदी भाषियों की संख्या जो कि 32 करोड़ है तथा पाकिस्तान में उर्दू
बोलने वाले 2 करोड़ (मुजाहिर) जोड़ दिए जाए तो हिंदी बोलने और समझने वालों की कुल
संख्या 1 अरब पार कर जाती है .
प्रत्येक पंजाबी , सिन्धी तथा गुजराती
हिंदी बोलता और समझता है . इनकी संख्या भी हिंदी बोलने और समझने वालों में जोड़ने
से कुल हिंदी बोलने और समझने वालों की संख्या 1 अरब 35 करोड़ हो जाती है !!! . इस प्रकार
विश्व में हिंदी बोलने और समझने वालों की संख्या सर्वाधिक है . चीनी भाषा नहीं बल्कि हिंदी है विश्व की सबसे जादा बोली और
समझी जाने वाली भाषा .
जरूरत इस बात की है
की चीन की तरह भारत सरकार भी संयुक्त राष्ट्र में हिंदी बोलने और समझने वालों की
संख्या के सही आंकड़े प्रस्तुत करे और हिंदी भाषा को अन्तराष्ट्रीय मान्यता दिलाने
के लिए ठोस प्रयास करे .
दस्तक देता ऊर्जा संकट :
क्या भारत एक ऊर्जा
सुरक्षित देश है ? दुर्भाग्य से इसका उत्तर ‘नहीं’ में है . हम विश्व के सर्वाधिक
ऊर्जा असुरक्षित देशों में हैं .
ऊर्जा सुरक्षा से
अभिप्राय है कि देश के प्रत्येक नागरिक को हर समय वाजिब दाम पर निर्बाध ऊर्जा
उपलब्ध रहे . अर्थात ऊर्जा के सभी संसाधन जैसे कोयला , डीजल , पेट्रोल , बिजली ,
गैस आदि सदैव हर व्यक्ति की आसान पहुँच में वहन करने लायक कीमत में 24 घंटे
प्रतिदिन मिल सके . ऊर्जा की आपूर्ति
निर्बाध हो , विश्वसनीय हो , प्रतियोगी दरों तथा खरीद सकने योग्य कीमत पर हो ,
सबकी पहुँच में हो – ये ऊर्जा सुरक्षा के मुख्य अभिलक्षण है . लम्बे समय की ऊर्जा
सुरक्षा देश के आर्थिक विकास से जुडी है जबकि कम समय की ऊर्जा सुरक्षा प्रतिदिन की
ऊर्जा की मांग और उसकी आपूर्ति से सम्बंधित है .
हमारे देश में हम
ऊर्जा संसाधनों के लिए विदेशी स्त्रोतों पर निर्भर हैं – जैसे पेट्रोलियम ,
प्राकृतिक गैस , यूरेनियम आदि . निर्यात करने वाले देशों में किसी भी तरह की
राजनितिक असंतुलन होने पर या उनसे सम्बन्ध ख़राब होने पर हमारी ऊर्जा आपूर्ति पर
संकट आ जाएगा . इन संसाधनों की कीमत अंतर्राष्ट्रीय बाजार की दरें तय करती हैं जिन
पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं . हमारे देश में आज भी कैरोसीन का प्रयोग प्रकाश के
लिए होता है .
हमारे देश के
जीवाश्म ईधन जैसे कोयला , लिग्नाईट आदि की उपलब्ध मात्रा घटती जा रही है और हम
अपने ताप विद्युत् केंद्र जादा वर्षों तक नहीं चला सकते . पर्यावरणीय कारणों से अब
बड़े जल विद्युत् केंद्र बनाना संभव नहीं .
हमारी पिछली सरकारों
ने
ऊर्जा के नवीन गैर परंपरागत
स्त्रोतों (जैसे पवन ऊर्जा , सौर ऊर्जा , भू उष्मीय ऊर्जा ) को बढाने पर ध्यान
नहीं दिया , पिछले दो वर्षों में ही कुछ
प्रगति हो सकी है . हमारे देश में कुल बिजली उत्पादन का मात्र 15 प्रतिशत इन स्त्रोतों से
उत्पादित होता है , जो कि बहुत कम है.
एक तो ऊर्जा संकट , ऊपर
से ऊर्जा की बरबादी में भी हम विश्व के देशों में अग्रणी स्थान रखते हैं .
हमारे देश में
अधिकतर ऊर्जा अक्षम यंत्रों (NON --ISI) का प्रयोग होता है . इनकी खरीद कीमत कम होती है मगर दक्षता भी कम होती है
. फलस्वरूप ये ऊर्जा की हानि करते है . देश में लगभग 2 करोड़ कृषि पम्प सेट हैं , इनमे 14 अरब यूनिट बिजली
की खपत होती है . प्रति वर्ष 50 लाख पंप बढ़ जाते हैं . इनमे 80 प्रतिशत पम्प गैर मानक तथा अदक्ष है . इन पम्पों की दक्षता मात्र 30 प्रतिशत होती है अर्थात
इनमे 70 प्रतिशत बिजली की बरबादी हो जाती है .
इसी प्रकार लघु व माध्यम उद्योगों में अधिकांश मोटरें , कम्प्रेसर , ड्राइव , बेल्ट कन्वेयर , क्रेशर , फैन , ब्लोअर आदि अदक्ष है और ऊर्जा की बरबादी करते हैं . सरकारें गैर मानक उपकरणों का उत्पादन व विक्रय रोकने में नाकाम साबित हुई है . गैर मानक दिल्ली मेड या चाइना मेड बिजली के यंत्र बाजार में सर्वत्र उपलब्ध है , जिनके डिब्बे पर न तो निर्माता का नाम पता होता है , न कोई बिल , न कोई टैक्स .
हमारी बिजली
ट्रांसमिशन व वितरण कम्पनियों में लाइन लॉस बहुत अधिक है . लगभग 30 से 40 प्रतिशत तक बिजली की
बरबादी लाइन लॉस के रूप में में हो जाती है .
यहाँ तक कि सरकारी
बिजली कम्पनियां भी गैर मानक उपकरण खरीदती है . जैसे ऊर्जा दक्ष अमोरफस कोर ट्रांसफार्मर का विकल्प
बाजार में आसानी से उपलब्ध होते हुए भी अधिक हानि वाले परंपरागत ट्रांसफार्मर खरीदे जाते हैं .
ऊर्जा संरक्षण
अधिनियम 2001 के अनुसार प्रत्येक उद्योग को ऊर्जा आडिट कराना अनिवार्य है लेकिन
कोई उद्योग इसका पालन नहीं कर रहा . इस
अधिनियम के अनुसार प्रत्येक बड़ी कमर्शियल बिल्डिंग ( जैसे शौपिंग माल , हॉस्पिटल , मल्टीप्लेक्स आदि ) का निर्माण NATIONAL ENERGY CONSERVATION BUILDING CODE (ECBC) के अनुसार किया जाना है
लेकिन कोई भी नगर निगम इसका पालन नहीं करवा रहा .
ऊर्जा सुरक्षा को
राष्ट्रीय सुरक्षा , आर्थिक सुरक्षा व पर्यावरणीय सुरक्षा की कुंजी माना जाता है .
अर्थात देश की ऊर्जा सुरक्षा पर संकट आने पर
राष्ट्रीय, आर्थिक व पर्यावरणीय सुरक्षा पर भी संकट आ जाएगा .
अगर हमें ऊर्जा
सुरक्षित देश बनना है तो निम्नलिखित उपाय अपनाने होंगे :
·
हमें अपने कोयले व जल
विद्युत् उत्पादन केन्द्रों पर निर्भरता कम करना होगा तथा सौर , पवन , भू उष्मीय ,
सामुद्रिक विद्युत् उत्पादन को बढ़ाना होगा .
·
परमाणु बिजली उत्पादन को
बढ़ाना होगा
·
देश में ही पेट्रोलियम व
प्राकृतिक गैस के स्त्रोतों को खोजना और उनसे उत्पादन बढ़ाना ताकि हम कम से कम
उर्जा संसाधनों का आयात करें .
·
विद्युत् चालित वाहनों की
संख्या को बढ़ाना , इलेक्ट्रिक बसों व इलेक्ट्रिक कारों के निर्माण व विक्रय को
सरकार द्वारा प्रोत्साहन व संरक्षण दिया जाए . विद्युत् चालित वाहनों के चार्जिंग
स्टेशनों की जगह जगह स्थापना करना .
·
पॉवर हाउस , ट्रांसमिशन
लाइनों व सबस्टेशनों की भौतिक सुरक्षा करना ताकि इन पर आतंकवादी हमले न हो सकें .
·
ऊर्जा हानि करने वाले गैर
मानक उपकरणों का उत्पादन व विक्रय रोकने हेतु कठोर नियम बनाना .
·
ECBC का पालन न करने वाले भवनों के निर्माण रोकने व ऊर्जा आडिट न कराने वाले
उद्योगों पर कठोर कार्यवाही करना .
·
बिजली ट्रांशमिशन व वितरण
कम्पनियों में लाइन लॉस कम करना
·
ऊर्जा संरक्षण हेतु जन
चेतना उत्पन्न करना व प्रचारित करना
इन उपायों को अपना कर हम एक ऊर्जा सुरक्षित देश बन सकतें है .