शनिवार, 13 मई 2023

क्रांतिकारी वीरांगनायें

10 मई 1857 क्रांति दिवस 

1857 के प्रथम भारतीय स्वाधीनता संग्राम  पर एक पुस्तक का प्रकाशन नेहरु युवा केंद्र दिल्ली द्वारा किया गया था। इस पुस्तक का नाम था “साझी शहादत के फूल!” इस पुस्तक में कई उन नायिकाओं के विषय में बात की गयी है जिन्हें वामपंथी इतिहास में एकदम ही विस्मृत कर दिया है। कौन हैं, कहाँ हैं? कोई नहीं जानता। इस पुस्तक के 132वें पृष्ठ पर मुजफ्फर नगर जनपद की क्रान्तिकारी महिलाओं के विषय में जानकारी प्रदान की गयी है 
 आशा देवी गुज्जर: इनके पति मेरठ सैनिक विद्रोह में अग्रणी स्थान पर थे। जो पहला जत्था मेरठ से दिल्ली विजय के लिए गया था, वह उसके सदस्य थे। 11 मई को जैसे ही आशा देवी को यह समाचार प्राप्त हुआ, तो वह अपनी ससुराल तहसील कैराना के एक गाँव में थीं। उन्होंने वहीं पर संकल्प ले लिया कि वह हर मूल्य पर अंग्रेजों से मोर्चा लेगी? फिर उन्होंने नवयुवतियों की टोली बनाकर उसका संचालन किया। इसके साथ ही उन्होंने एक छापामार हमला करके 13 मई को कैराना के आसपास के सरकारी कार्यालयों एवं 14 मई को शामली तहसील पर हमला बोलकर अंग्रेज सरकार को बहुत हानि पहुंचाई।
भगवती देवी त्यागी: यह अद्भुत वीरांगना थीं। उन्होंने मुजफ्फरनगर का नाम रोशन किया था। 22 दिनों तक अपनी टोली के साथ जाकर प्रचार करती रही और गाती रही कि अंग्रेज अब बस जाने ही वाले हैं। जन जागरण करती थी और फिर अंतत: अंग्रेजों की पकड़ में आ गयी और उन्हें तोप से उड़ा दिया गया।

शोभा देवी ब्राह्मणी: यह अद्भुत योद्धा थीं, जिन्हें अंग्रेजों ने पकडे जाने पर फांसी दे दी थी। इन्होने अपनी महिला टोली बनाई थी और साथ ही जो उनकी टुकड़ी थी उसमें आधुनिक हथियारों से लेकर, तलवार, गंडासा, कृपाण आदि धारण किये गए सैनिक भी थे। एक दिन उनका सामना अंग्रेजी टुकड़ी से हुआ। सैकड़ों की संख्या में पुरुष और कई महिलाओं ने लड़ते लड़ते प्राण दिए। यह पकड़ में आ गईं और उन्हें फांसी दे दी गयी।

इस पुस्तक में इस लेख को लिखने वाले इतिहासकार अरुण गुप्ता और रघुनंदन वर्मा के अनुसार कई महिलाओं ने अपने प्राण देकर मुजफ्फरनगर की धरती को उस क्रान्ति में अमर कर दिया था। इन महिलाओं में और नाम थे भगवानी देवी, इन्द्र्कौर जाट उम्र 25 वर्ष, जमीला पठान उम्र 22 वर्ष, रणबीरी वाल्मीकि आदि। इन सभी ने अपनी अपनी टोली बनाकर अंग्रेजों का सामना किया था और उनमें से सभी को फांसी पर चढ़ा दिया गया था।

ब्रिटिश रिकॉर्ड के अनुसार मुजफ्फरनगर में 255 महिलाओं को फांसी पर चढ़ाया गया था और कुछ लड़ती-लड़ती मारी गयी थीं और थानाभवन काजी खानदान की श्रीमती असगरी बेगम को पकड़ कर अंग्रेजों द्वारा जिंदा जला दिया गया था।

एक ऐसी ही वीरांगना अजीज़न बाई भी थी । उनके बारे में बाद में लिखेंगे ।

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राना बेनी माधव

राना बेनी माधव 

(कवि प्रशांत सिंह चौहान)

सन सत्तावन की तश्वीरें पुनः दिखाने वाला हूँ,
मैं राणा बेनी माधव का इतिहास सुनाने वाला हूँ...

सन सत्तावन में भारत जब क्रांति आग में सुलग गया,
तब रायबरेली के राणा ने पुनः नया इतिहास रचा,
निज शस्त्रों से अंग्रेजी सेना को उसने नापा था,
कितनी शक्ति तुम्हारी है निज बाहुबल से मापा था...

राणा जी के शौर्य तेज से जनमानस हुँकार उठा,
रायबरेली की जनता पग-पग राणा संग वार किया,
शंकरपुर के राज-पाठ की उसने आहुति दे डाली,
अंग्रेजी सेना को उसने नानी याद दिला डाली...

जब गोरिल्ला जंग छिड़ी तो आजादी संग्राम हुआ,
राणा की सेना के सम्मुख ग्रांट हॉप परेशान हुआ,
अंग्रेजी सेना बिखरी वो प्राण बचाकर भागा था,
इस क्रांति युद्ध की चिंगारी से लंदन भी थर्राया था...

गोरिल्ला संग्राम की चर्चा भारत मे मशहूर हुई,
राणा जी के शक्ति-शौर्य से हजरत भी मंजूर हुई,
बेगम हजरत राणा जी को जंगदिलेरे बोला था,
पूरा भारत मान गया ये आजादी का शोला था...
बेगम हजरत पर विजय प्राप्ति का गोरों ने अनुबन्ध किआ,
राणा जी ने बेगम के संग वो सपना विध्वंस किआ,
फिर से ख्याति बढ़ी राणा की आजमगढ़ उपहार मिला,
लखनऊ शहर में जली दिवाली जय राणा हुँकार उठा...

षड़यंत्र रचा अंग्रेजों ने फिर से जोर प्रहार किया,
युद्ध हुआ था बैसवारा में भीषण नरसंहार हुआ,
राणा की सेना टूटी और शंकरपुर वीरान हुआ,
शांति छा गई घर-बस्ती में सुना हिंदुस्तान हुआ...

उर-जल-थल-अम्बर-चेतन ने कभी हार न मानी थी,
अवधवशियो के शोणित में वर्ण बहुत अभिमानी थी,
कुपोषित काया की शक्ति जैसे पोषित होती है,
प्राची में सूरज की लाली जैसे ओजित होती है...

एक साथ जनमानस ने राणा जी से आव्हान किया,
सेना की कर लो रचना सबने पुत्रों का दान दिया,
दस हज़ार की सेना बन गई फिर से हृदय विशाल हुआ,
कण-कण से हुँकार उठी फिर से राणा विक्राल हुआ...

सेना की टुकड़ी सज्जित थी केसरिया अभिमान जगा,
नरपत और गुलाब सिंह ने आजादी का गान किआ,
हल्ला बोला अंग्रेजों पर पल में मुण्ड विखण्ड हुआ,
लखनऊ सभा मे प्रलय मचा अंग्रेजी शासन भंग हुआ...

इसी बीच राणा की काया निज धीरज खो बैठा था,
मूर्छित राणा को लेकर सज्जो जंगल को भागा था,
रक्षा की रजनीभर जिसने स्वामिभक्त वो सज्जो था,
हर संकट में अडिग रहा संकटमोचक वो सज्जो था...

हुआ प्रभात पर राणा की ऊर्जा  वापस न आई थी,
अवध वीर के जीवन पर मृत्यु की छाया छाई थी,
उस जंगल से लालचंद्र जब गुजरा देखा राणा को,
घर लाकर सत्कार किया और ऊर्जा दी थी राणा को...

पर अंग्रेजी जासूसों को इस घटना की खबर लगी,
लालचंद्र को पकड़ा फौरन खोज घर और गाली-गली,
लालचंद्र की पत्नी जो राणा की फिर से रक्षा की,
सच मानो तो राणा संग सम्पूर्ण राष्ट्र की रक्षा की...

लालचंद्र ने कारागार में घोर यातना झेली थी,
पता बताओ राणा का हर बेंत बदन से बोली थी,
आंखे फोड़ी लालचंद्र की उंगलियां काटकर फेंका था,
गर्म तवे पर लालचंद्र को रगड़-रगड़कर सेंका था...

लालचंद्र ने प्राण दे दिए पर राज एक न खोली थी,
मरते-मरते सांस आखिरी जय राणा की बोली थी,
इस राष्ट्र युद्ध मे लालचंद्र ने अपना सब-कुछ खोया था,
और भारत माँ के अश्रु नीर से निज कष्टो को धोया था...

जब राणा अपनी सेना संग नदी गोमती पर पहुंचे,
कर्नल हज अपनी सेना संग राणा से भिड़ने पहुंचे,
युद्ध भयंकर हुआ नदी में कर्नल हज की जान गई,
जय हिंद जय हिंद वन्देमातरम उद्घोषों की गान हुई...

जिसने निज शोणित से अपनी मातृभूमि को सींचा था,
युद्ध लड़ो से मिले आजादी मात्र यही सलीका था,
जब-तक जिंदा थे राणा अंग्रेजी शासन के बाधक थे,
अजर-अमर थे क्रांतिकारी और वन्देमातरम साधक थे...

जिसके नयनो में आजादी का स्वप्न सदा से पलता था,
रक्षित-पोषित हो भारत गर्व से मष्तक झुकता था,
जीवन जिया - त्याग किआ सर्वस्व राष्ट्र को दान किया,
मातृभूमि की रक्षा में राणा जी ने बलिदान किया...

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भारतीय इतिहास का घोड़ा घोटाला

भारतीय इतिहास का घोड़ा घोटाला :

भारत में घोड़े को  पालतू बनाने और शिकार के लिए घोड़े पर जाने का सर्वप्रथम प्रमाण मध्य प्रदेश के भीम बेटका की गुफाओं के चित्रों में मिलता है l आज से 10000 साल पहले भारत में रहने वाले वनवासी भी घोड़ो का उपयोग भलीभाती करते थे l ये हमारे देश के मूल नस्ल के घोड़ा  ( indigenous Indian horse- equus ferus caballus) है l 
(चित्र भीम बेटका) 
(चित्र भीम बेटका)

1989 में मध्य प्रदेश के  सीधी जिले के  बघोर गाव में 4500 BCE में घोड़ो को घरों में पालने के प्रमाण मिले हैं l कर्नाटक के कोडेकाल  में 2460 BCE में घोड़ो के डोमेस्टिक करने के प्रमाण मिलते हैं l 
( पुरातत्व रिपोर्ट) 

सिन्धु घाटी की सभ्यता के बारे में में 2005 प्रकाशित Archaeological society of India की रिपोर्ट पेज 22  में कहा गया है कि " हडप्पन साईटो में सुरकोतड़ा, लोथल ,मालवण , कालीबंगा , रोपड़ ,हड़प्पा, मोहनजोदारो, राणा घुँदाई, नौशारो , राखीगढ़ी आदि में घोड़ो के प्रमाण मिले है l (रिपोर्ट की लिंक कमेंट में ) l 
(चित्र - लोथल घोड़ा , सिन्धुघाटी)
ये प्रमाण घोड़ो के खिलौनों और सैकड़ों मृत घोड़े के अवशेषों के रूप में मिले हैं l जिससे पता चलता है कि तथाकथित सिन्धु घाटी की सभ्यता में घोड़े का उपयोग बहुत आम था l 

अभी हाल में ही पायी गयी सिनौली में तथाकथित सिन्धु घाटी सभ्यता की समकालीन सभ्यता में भी घोड़ो से चलने वाले रथ प्राप्त हुए हैं l 

गपोड़ी इतिहासकार रोमिला थापर , गप्पबाज आर एस शर्मा आदि लिखते आये है - "भारत में घोडा बहुत देर से आया  क्योकि घोडा भारतीय मूल का नहीं है l यह विदेशी जानवर है l सिन्धु घाटी सभ्यता के लोग घोडा नहीं जानते थे l घोड़े को भारत में पहली बार इरान की सीमा से आर्य आक्रमणकारी ले कर आये l  तब पहली बार यहाँ के लोगो को घोडा और रथ के बारे में पता चला l  वगैरह ............"
[ ROMILA THAPAR The Penguin History of Early India FROM THE ORIGINS TO AD 1300, पेज 85-89 ] इसी तरह की सैकड़ो  गप्पबाजी  इन लोगो ने NCERT की इतिहास की किताबों में भर रखी है l 
इस गप्पबाजी का उद्देश्य इतिहास को दूषित कर अंग्रेजो की औपनिवेशिक  मान्यता को स्थापित करना है l 

यह भारतीय इतिहास का सबसे बड़ा घोडा घोटाला है l

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भारत की यात्रा करने वाले 56 कोरियाई यात्री

इतिहास को जानने का एक स्त्रोत विदेशी यात्रियों द्वारा लिखा गया यात्रा वृतांत है जो उस काल मे भारत आये थे ।
इन यात्रियों में मेगस्थनीज, टॉलमी, ह्वेनसांग , फाह्यान, इतसिंग , अलमसूदी, अल बरुनी, मार्कोपोलो .... आदि का जिक्र इतिहास की किताबो में किया जाता है ।

यह आश्चर्यजनक है कि हमारे इतिहास में प्राचीन काल मे भारत की यात्रा करने वाले उन 56 कोरियाई यात्रियों का जिक्र तक नही है , जिन्होंने 4थी शताब्दी से 8वी शताब्दी में भारत की यात्रा की और अपने यात्रा वृतांत भी लिखे । 
इन कोरियाई यात्रियों में एक थे Hyecho , जिन्होंने सन 723 में भारत की यात्रा की , नालंदा विश्वविद्यालय में में बौद्ध धर्म की पढ़ाई की,  अनेक वर्षों तक भारत मे रहे और भारत के 5 राज्यो की धार्मिक , सामाजिक , राजनीतिक व्यवस्था पर ग्रंथ लिखा । इन्होंने लिखा है कि भारत मे कहीं भी दास प्रथा नही है , किसी को दास बनाने या दास खरीदने बेचने पर मृत्युदंड दिया जाता है ।
 गुरुकुलों में सभी वर्ण के शिष्य एक साथ पढ़ते हैं । सभी लोगो को एक समान न्याय व्यवस्था के अंतर्गत रखा जाता है । सभी राजा मंदिरों, जिनालयों, मठो विहारों को समान रूप से दान व संरक्षण देते है ,  आदि आदि .. Hyecho द्वारा लिखे गए विशद भारत यात्रा ग्रंथ की मूल पांडुलिपि फ्रांस की नैशनल लाइब्रेरी में सुरक्षित है ।
Hyecho एवं अन्य कोरियाई यात्रियों के लेखों को जानबूझकर इतिहास में नही रखा गया क्योकि इससे अंग्रेजों और मार्क्सवादी इतिहासकारों के झूठे एजेंडा का खंडन होता है - जैसे शुंगों कण्वो गुप्तो आदि ने बौद्ध धर्म को नष्ट कर दिया था , शूद्रों पर अत्याचार होता था , शैव और वैष्णवो में लड़ाई होती थी , भारत मे बलि प्रथा सती प्रथा बाल विवाह आदि व्यापक था ।

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भारत मे अनुसंधान का स्तर

भारत मे अनुसंधान का स्तर (level of research in India) : 

सन 2005 से 2013 तक हमने पीएचडी थीसिस evaluation का कार्य किया । तब मेरे पास राजस्थान , आंध्रप्रदेश, उत्तरप्रदेश व मध्यप्रदेश आदि के अनेक विश्वविद्यालयो की ph.d. thesis चेक होने के किये आती थी । ये थीसिस इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग तथा मैनेजमेंट विषयो की होती थी । साथ मे एक 8 पन्ने का फॉर्म भी, जिसमे विभिन्न जांच बिंदुओं पर थीसिस के बारे में अपने कमेंट लिखना पड़ते थे , अंत मे यह भी लिखना पड़ता कि इनको पीएचडी हेतु अनुशंसित करता हूँ अथवा नही । 
एक पीएचडी थीसिस को चेक करने में 2 घंटे प्रतिदिन के हिसाब से लगभग 5 दिनो का समय लगता है । 
उस वक्त एक थीसिस चेक करने का विश्वविद्यालय द्वारा आनरेरियम मात्र 250 रुपये मिलता था । अब शायद 500 रुपये मिलने लगा है । आर्थिक दृष्टि से कोई लाभ नही था, किंतु विश्वविद्यालयो के अनेक मित्र प्रोफेसरो के अनुरोध पर मैने यह कार्य करना स्वीकार्य किया था ।  
2013 में मैने स्वेच्छा से यह कार्य छोड़ दिया क्योकि 
अनेक थीसिसो का परीक्षण कर मुझे अनुभव हुआ कि भारत मे रिसर्च का स्तर (अन्य विकसित देशों की तुलना में) काफी निम्न कोटि का है । इसके अनेक कारण हो सकते हैं - 
1. शोध छात्रों को शोध के लिए वित्तीय सहायता न मिलना , जिससे उसके अनुसंधान करने के रिसोर्स सीमित होते हैं । poor government funding . Low stipend or no stipend . इसलिए हमारे देश में रिसर्च को कोई अपना कैरियर नही बनाता ।
2. शोध पर्यवेक्षक (पीएचडी गाइड) का निम्न स्तर होना । बिना कोई उल्लेखनीय रिसर्च किये सिर्फ लंबी प्रोफेसरी की नौकरी के आधार पर उनको गाइड बना दिया जाता है । इन्हें अपने विषय के नवीन अनुसंधानों का कुछ भी पता नही ।  ऐसे गाइड, छात्र को कुछ भी गाइड नही कर पाते । 
3. मौलिक रिसर्च करने की बजाए किसी पुरानी रिसर्च को नए प्रारूप में थोड़ा हेरफेर कर के प्रस्तुत करना । यह सिस्टम भारत मे बहुतायत है। 
4. रिसर्च में शार्ट कट पद्धति अपनाना । रिसर्च एक शार्ट टर्म गेन हो गया है जिसका उद्देश्य येन केन प्रकार पीएचडी डिग्री हासिल करना है । चाहे छात्र में रिसर्च क्षमता aptitude हो या न हो । रिसर्च में रुचि हो या न हो , बस उसे पीएचडी करना है । ताकि कॉलेज टीचिंग की नौकरी पक्की हो जाये । 
5. स्कूल के समय से ही हमारी शिक्षा व्यवस्था steriotypical होती है । किताब पढ़ो , परीक्षा दो , पास हो जाओ । इसमें नए विचारों या इनोवेशन के लिए कोई स्थान नही होता । वही छात्र आगे चल कर शोधार्थी बनता है । 
6. छात्रों का रोल मॉडल कोई वैज्ञानिक नही होता जिसने कोई बड़ी खोज की हो । उनके रोल मॉडल फ़िल्म हीरो , क्रिकेटर , नेता या पूंजीपति होते हैं । 
7. विश्वविद्यालय में अच्छी आधुनिक रिसर्च प्रयोगशालाओं का अभाव 
8. विश्वविद्यालय और कार्यकारी कंपनियों में रिसर्च हेतु अनुबंध न होना । 

 मेरे अनुभव में यह भी आया है कि प्राईवेट विश्वविद्यालयो में रिसर्च का स्तर सरकारी विश्वविद्यालयों से निम्न है । 

इक्षा न होते हुए भी एक मित्र कुलपति के विशेष अनुरोध पर लॉक डाउन के दिनों में  पुनः एक थीसिस evaluation कर रहा हूं ।  किंतु थीसिस का स्तर वही है जो ऊपर बताया गया है । ☹️☹️☹️ ।

15-20 पुरानी थीसिसे जो घर पर पड़ी है , आज उनको छांटा । सोच रहा हूँ कि इनको JEC की लाइब्रेरी में डोनेट कर दूं । 

भारत मे अनुसंधान का स्तर निम्न होने के अन्य भी बहुत कारण हो सकते है । कुछ पर आप लोग भी प्रकाश डालें , तभी पता चलेगा कि विश्वगुरु का दावा करने वाले हम भारतीय नागरिक एक भी नोबल पुरस्कार क्यो नही ले पाते ?


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नौ रात्रि व नौ दुर्गा

नौ रात्रि व नौ दुर्गा - 

सांख्य  ( सूत्र -रागविराग योग: सृष्टि) के अनुसार प्रकृति, विकृति और आकृति इन तीन का सृष्टिक्रम होता है। पदार्थों में निविष्ट मूल तीन गुणों सत-रज-तमस को आज के विज्ञान के अनुसार पॉजिटिव,  न्यूट्रल और  निगेटिव गुणों के रूप में व्याख्यायित कर सकते है। इन गुणों का आपसी गुणों के समिश्रण से उत्पन्न बल के कारण इषत्, स्पंदन तथा चलन नामक तीन प्रारंभिक स्वर उभरते हैं। ये गति के तीन रूप हैं। आधुनिक विज्ञान इन्हें ही, इक्वीलीबिरियम यानी संतुलन, पोटेंशियल यानी स्थिज और काइनेटिक यानी गतिज के नाम से गति या ऊर्जा के तीन मूल स्तरों के रूप में परिभाषित करता है। 

इस प्रकार हम देखते हैं कि आदि शक्ति के तीन रूप, तीन गुण और उनकी तीन क्रियात्मक वेग, इन सभी का योग नौ होता है।

माँ ईश्वर का ही रूप है। संसार की सभी मादाएं ईश्वर का ही स्वरूप हैं। इसलिए हमने प्रकृति की कारणस्वरूपा त्रयात्मक शक्ति और फिर उसके त्रिगुणात्मक प्रभाव से उत्पन्न प्राकृतिक शक्ति के नौ स्वरूपों को जगज्जननी के श्रद्धात्मक भावों में ही अंगीकार किया है। फिर दुर्गा के नौ स्वरूपों में प्रकृति के त्रिगुणात्मक शक्ति को देखा है। ये नौ दुर्गाएं काल और समय के आयाम में नहीं हैं, उससे परे हैं। ये वे दिव्य शक्तियां हैं, जो काल और समय के परे हैं। इनका जो विकार (आऊटपुट) निकलता है, वही काल और समय के आयाम में प्रवेश करता है और ऊर्जा (या पदार्थ) का रूप ले लेता है।

इस तरह आदि शक्ति के तीन स्वरूपों ज्ञान शक्ति, इच्छा शक्ति और क्रिया शक्ति के उपक्रमों से प्रकृति के सत्व, रज और तम तीन गुणों की उत्पत्ति होती है। इन्हें ही उनकी आभा के अनुसार श्वेत, रक्तिम और कृष्ण कहा गया है।

इस प्रकार ये नौ दुर्गा, उनके नौ प्रकार और उनके प्रकार की ही काल और समय में नौ ऊर्जाएं हैं। ऊर्जाएं भी नौ ही हैं क्योंकि यह उनका ही विकार है।  इन भौतिक ऊर्जाओं के आधार पर सृष्टि की जो आकृति बनती है, वह भी नौ प्रकार की ही है। पहला है, प्लाज्मा, दूसरा है क्वार्क, तीसरा है एंटीक्वार्क, चौथा है पार्टिकल, पाँचवां है एंटी पार्टिकल, छठा है एटम, सातवाँ है मालुक्यूल्स, आठवाँ है मास और उनसे नौवें प्रकार में नाना प्रकार के ग्रह-नक्षत्र। यदि हम जैविक सृष्टि की बात करें तो वहाँ भी नौ प्रकार ही हैं। छह प्रकार के उद्भिज हैं – औषधि, वनस्पति, लता, त्वक्सार, विरुद् और द्रमुक, सातवाँ स्वेदज, आठवाँ अंडज और नौवां जरायुज जिससे मानव पैदा होते हैं। ये नौ प्रकार की सृष्टि होती है।

पृथिवी का स्वरूप भी नौ प्रकार का ही है। वैशेषिक मतानुसार पहले यह जल रूप में थी, फिर फेन बनी, फिर कीचड़ (मृद) बना। और सूखने पर शुष्क बनी। फिर पयुष यानी ऊसर बनी। फिर सिक्ता यानी रेत बनी, फिर शर्करा यानी कंकड़ बनी, फिर अश्मा यानी पत्थर बनी और फिर लौह आदि धातु बने। फिर नौवें स्तर पर वनस्पति बनी। इसी प्रकार ऊर्जा की अवस्थाएं, उनके स्वभाव, उसके गुण, सभी कुछ नौ ही हैं।
इसी प्रकार सभी महत्वपूर्ण संख्याएं भी नौ या उसके गुणक ही हैं। पूर्ण वृत्त 360 अंश और अर्धवृत्त 180 अंश का होता है। नक्षत्र 27 हैं, हरेक के चार चरण हैं, तो कुल चरण 108 होते हैं। कलियुग 432000 वर्ष, इसी क्रम में द्वापर, त्रेता और सत्युग हैं। ये सभी नौ के ही गुणक हैं। चतुर्युगी, कल्प और ब्रह्मा की आयु भी नौ का ही गुणक है। सृष्टि का पूरा काल भी नौ का ही गुणक है। मानव मन में भाव नौ हैं, रस नौ हैं, भक्ति भी नवधा है, रत्न भी नौ हैं, धान्य भी नौ हैं, रंग भी नौ हैं, निधियां भी नौ हैं। इसप्रकार नौ की संख्या का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक महत्व है। इसलिए नौ दिनों के नवरात्र मनाने और नौ दुर्गाओं की उपासना की परंपरा हमारे पूर्वज ऋषियों ने बनायी।

विलक्षण गुण-संपन्न राहुल बनर्जी

A Student time Prodigy 
छात्र जीवन से ही विलक्षण गुण-संपन्न
राहुल बनर्जी
Rahul Banerjee  

जनवरी 1980 में दो विदेशी वैज्ञानिक ( एक जर्मन व एक ब्रिटिश) कुछ उपकरणों को लादे हुए रीवा इंजीनियरिंग कालेज में आये और पूछ रहे थे कि हमे प्रोफेसर राहुल बनर्जी से मिलना है । प्रिंसिपल साहब बोले इस नाम का कोई प्रोफेसर हमारे कालेज में नही है । उन वैज्ञानिकों ने राहुल बनर्जी के पेपर्स दिखाए जिसमे उनका पता गवर्नमेंट इंजिनीयरिंग कालेज रीवा लिखा था । प्रिंसिपल साहब ने खोज बीन की तो पता चला कि ये  B.E. इलेक्ट्रिकल के स्टूडेंट है । होस्टल में रहते तो हैं लेकिन अधिकतर समय किसी पेड़ के नीचे बैठे या लाइब्रेरी में लिखते पाए जाते है । टीचर्स की निगाह में ये क्लास अटेंड न करने वाले 'बेकार' स्टूडेंट हैं । प्रिंसिपल साहब ने राहुल बनर्जी को खोजवाया और तब पता चला कि ये कोई साधारण छात्र नही बल्कि विश्व स्तर के वैज्ञानिक हैं । अंग्रेज व जर्मनी के वैज्ञानिक इनके लिए वे उपकरण लाये थे, जिनके साथ इनको 16 फरवरी 1980 पूर्ण सूर्य ग्रहण के दिन दक्षिण भारत मे जा कर प्रयोग करने थे । 

फ़्लैश बैक --
अस्सी के दशक में हम लोग पन्ना के सरकारी स्कूल में पढ़ते थे । हमसे सीनियर छात्र थे राहुल भैया उर्फ आज के Dr. Rahul Banerjee .

राहुल भैया का सिलेक्शन इंजीनियरिंग कालेज रीवा में हो गया । ये रीवा चले गए , इसके कुछ साल बाद हम जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज आ गए । कालेज की छुट्टियों में जब हम पन्ना आते तब टिकुरिया मोहल्ला में इनके घर पर राहुल भैया से मिलना होता । इनसे विज्ञान की तमाम बाते जैसे क्वासर पल्सर क्वार्क प्लाज्मा आदि  सुन कर हम अचंभित हो जाते थे । इनके पिताजी सरकारी स्कूल में इंग्लिश के टीचर थे । 

छात्र जीवन मे राहुल बनर्जी ने physics में अनेक सैद्धांतिक खोजे की थी । इन्होंने मुझे अपनी शोध कॉपी (researches in brain)  दिखाई थी , जिसमे हाथ से बने रंग बिरंगे अनेक चित्र व गणित की लंबी लंबी डेरिवेशन थी । सब कुछ हमारे दिमाग से ऊपर का मैटर था । थोड़ा थोड़ा यह समझ आया कि राहुल भैया ने ओपेनलूप और क्लोजलूप रेडियो एक्टिविटी की खोज की है । और सबसे महत्वपूर्ण यह कि इन्होंने आइंस्टीन के फार्मूले E=MC^2 में अपेक्षित सुधार किया , कि किसी विशेष परिस्थिति में यह आप्लिकेबल नही होगा तब इसमे एक कांस्टेन्ट जोड़ा जाना चाहिए जिसे राहुल बनर्जी ने positronium constant नाम दिया । छात्र जीवन में इनकी अनेकानेक theoretical रिसर्च work / research memos/ research articles को देश और विदेश के अनेक संस्थानों से मान्यता मिली जैसे - TIFR, UoR, LCS-MIT, SRI आदि

 उनकी दो पुस्तके प्रकाशित हुई थी - 
1 Architectural design of Unix Systems by khanna publisher 
2 Internetworking technologies by prientice hall of india 

राहुल भैया थोड़ा मुश्किल से  B.E. पास हुए क्योकि ये अपनी रिसर्च व अध्ययन में इतने डूबे रहते कि कोर्स पढ़ने में टाइम नही दे पाते थे । इनके पास विश्व के अनेक देशों से वैज्ञानिक के पद पर कार्य करने के आफर थे , लेकिन उनकी बात आज भी मुझे याद आती है, जो 1987 में पन्ना से भोपाल साथ मे की गई बस यात्रा में उन्होंने कही थी  - अशोक मैं नौकरी सिर्फ भारत मे ही करूंगा , चाहे मुझे यहां कोई सुविधा न मिले, क्योकि देश को मेरी जरूरत है । सुविधाओं की खातिर मैं विदेश में कभी नौकरी नही करूंगा । 

देशभक्त राहुल भैया आज 35 साल बाद भी विदेश में सैटल नही हुए जबकि अनेकानेक देशों से जॉब आफर उनको लगातार मिलते रहे । हालांकि अनेक विदेशी विश्विद्यालयो और संस्थानों में  लेक्चर देने जाते रहे । 90 के दशक की शुरुआत में जब कंप्यूटर साइंस नए विषय के रूप में देश मे पढ़ाया जाने लगा उन्होंने artificial intelligence को रिसर्च के लिए चुना और M.Tech , PhD कर के BITS पिलानी में सहायक प्रोफेसर नियुक्त हुए । और कुछ वर्षों बाद कंप्यूटर साइंस विभाग के प्रोफेसर , HOD और फिर BITS पिलानी के डीन हुए । 

डॉ राहुल बनर्जी की रिसर्च का मुख्य क्षेत्र Computer Science & Engineering है जिसके अंतर्गत वे AI / Intelligent Systems, HCI, Vehicular Networks, Intelligent Operating Systems, Wearable Computing, ITS, Hybrid Networks आदि क्षेत्रों में शोधकर्ताओं को मार्गदर्शन देते हैं । 

वर्तमान में पन्ना के राहुल बैनर्जी जयपुर के LNM institute of information technology के Director पद को सुशोभित कर रहे है । 'Genius' शब्द भी इनकी प्रतिभा के आगे छोटा है ।
मेरे छात्र जीवन के प्रेरणा स्त्रोत , अत्यंत सरल स्वभाव , सादगी , अभिमान रहित , सदैव खुशमिजाज , चॉकलेट प्रेमी,  स्वप्रचार से दूर, किंतु ज्ञान के महासागर आदरणीय राहुल भैया को प्रणाम ।। 🙏🙏🙏