बुधवार, 27 नवंबर 2024

दीपावली

 "भारत" शब्द का एक आध्यात्मिक और गूढ़ अर्थ "प्रकाश में रत" या "ज्ञान में लीन" भी है। इस व्याख्या के अनुसार "भा" का अर्थ "प्रकाश" या "ज्ञान" और "रत" का अर्थ "लगा हुआ" या "लीन" होता है।


इस प्रकार, "भारत" का अर्थ होता है वह देश या भूमि जहाँ लोग ज्ञान, प्रकाश और सत्य की खोज में रत रहते हैं। यह दृष्टिकोण भारत के उस सांस्कृतिक और आध्यात्मिक स्वरूप को दर्शाता है, जहाँ सदियों से ऋषि-मुनि, संत और दार्शनिक ज्ञान प्राप्त करने और मानवता के कल्याण के लिए साधना करते रहे हैं।



इस अर्थ में, भारत केवल एक देश नहीं है, बल्कि ज्ञान और प्रकाश की भूमि का प्रतीक है, जहाँ लोगों का जीवन सत्य, धर्म और आध्यात्मिक उन्नति के आदर्शों पर आधारित है।


 भारतीय परंपरा में दीपक को ज्ञान, प्रकाश, और आशा का प्रतीक माना गया है। इसे अज्ञानता से ज्ञान की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर और नकारात्मकता से सकारात्मकता की ओर जाने का प्रतीक माना जाता है।


दीपक जलाने के प्रमुख आध्यात्मिक अर्थ निम्नलिखित हैं:


1. ज्ञान और बुद्धि का प्रतीक: दीपक का प्रकाश अज्ञानता के अंधकार को दूर करता है। यह हमारे मन और हृदय में ज्ञान और विवेक की ज्योति जलाने का संकेत देता है।


2. सकारात्मकता और शांति का प्रतीक: दीप जलाने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और नकारात्मक विचार एवं भावनाओं का नाश होता है। यह मन में शांति और समर्पण का भाव उत्पन्न करता है।


3. आत्मा का प्रतीक: दीपक की लौ आत्मा का प्रतीक मानी जाती है। जैसे दीपक जलता रहता है, वैसे ही आत्मा भी जीवन के विभिन्न उतार-चढ़ावों के बीच सजीव रहती है और प्रकाश फैलाती है।


4. दिव्यता और आस्था: दीपक में घी या तेल का उपयोग हमारी आस्था और समर्पण का प्रतीक है, जो जलते हुए अर्पण को दिखाता है। यह जीवन में ईश्वर और धर्म के प्रति आस्था को और प्रगाढ़ करता है।


5. समाज और समर्पण का प्रतीक: दीप जलाने की परंपरा से यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपने आसपास के लोगों के जीवन में प्रकाश फैलाना चाहिए।


त्योहारों और धार्मिक अनुष्ठानों में दीप जलाना अज्ञानता से ज्ञान की ओर, निराशा से आशा की ओर और नकारात्मकता से सकारात्मकता की ओर एक आध्यात्मिक यात्रा को प्रदर्शित करता है।


आप सभी को दीपावली की शुभकामनाएं

भगवान धन्वंतरि

 धन्वंतरि को भारतीय चिकित्सा विज्ञान, विशेषकर आयुर्वेद के जनक के रूप में जाना जाता है। उनका योगदान स्वास्थ्य और चिकित्सा क्षेत्र में अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। धन्वंतरि का उल्लेख आयुर्वेदिक ग्रंथों और पुराणों में किया गया है, जहाँ उन्हें देवताओं के वैद्य का दर्जा प्राप्त है। आयुर्वेद के माध्यम से उन्होंने मानव जीवन को रोगों से मुक्ति दिलाने और स्वस्थ जीवन जीने के उपाय बताए।


1. आयुर्वेद का प्रवर्तन:


धन्वंतरि ने आयुर्वेद को एक व्यवस्थित और वैज्ञानिक रूप दिया। उन्होंने इसे आठ भागों में विभाजित किया, जिसे "अष्टांग आयुर्वेद" कहा जाता है। इन आठ अंगों में काय चिकित्सा (सामान्य चिकित्सा), शल्य चिकित्सा (सर्जरी), शालक्य (नेत्र, नाक, कान और गला रोग), कौल चिकित्सा (बालरोग), अगद तंत्र (विष चिकित्सा), रसायन (जीवन को लंबा करने वाले औषध) और वाजीकरण (प्रजनन चिकित्सा) शामिल हैं।


2. सर्जरी और औषध निर्माण में योगदान:


धन्वंतरि को औषध निर्माण और सर्जरी के क्षेत्र में महान योगदान के लिए भी जाना जाता है। उन्होंने विभिन्न जड़ी-बूटियों और औषधियों की खोज की, जिनका उपयोग आज भी आयुर्वेद में होता है। माना जाता है कि उन्होंने शल्य चिकित्सा के भी कई उन्नत तरीकों को अपनाया, जिनका उपयोग उस समय असाध्य माने जाने वाले रोगों के इलाज के लिए किया जाता था।


3. रोगों का निदान और उपचार पद्धति:


धन्वंतरि ने विभिन्न रोगों के निदान और उपचार के लिए विभिन्न पद्धतियों का विकास किया। उन्होंने शरीर को वात, पित्त, और कफ – तीन दोषों के आधार पर समझा और इसी संतुलन से स्वास्थ्य और रोग की स्थिति का निर्धारण किया।


4. स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता:


उन्होंने स्वस्थ जीवनशैली और रोगों से बचाव के महत्व पर जोर दिया। आयुर्वेद के सिद्धांतों के अनुसार, भोजन, दिनचर्या, और प्राकृतिक जीवन शैली पर ध्यान देना स्वास्थ्य के लिए अत्यंत आवश्यक है।


धन्वंतरि की शिक्षा और चिकित्सा पद्धतियां आज भी आयुर्वेद चिकित्सा का आधार मानी जाती हैं। उनके योगदान से न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व को एक प्राचीन चिकित्सा पद्धति का उपहार मिला, जो आज भी लाखों लोगों के लिए उपयोगी है।

शुक्रवार, 29 मार्च 2024

सेठ रामदास जी गुड़वाले

सेठ रामदास जी गुड़वाले - 1857 के महान क्रांतिकारी, दानवीर जिन्हें फांसी पर चढ़ाने से पहले अंग्रेजों ने उनपर शिकारी कुत्ते छोड़े जिन्होंने जीवित ही उनके शरीर को नोच खाया।
सेठ रामदास जी गुड़वाले दिल्ली के अरबपति सेठ और बैंकर थे.  इनका जन्म दिल्ली में एक अग्रवाल परिवार में हुआ था. इनके परिवार ने दिल्ली में पहली कपड़े की मिल की स्थापना की थी।

उनकी अमीरी की एक कहावत थी “रामदास जी गुड़वाले के पास इतना सोना चांदी जवाहरात है कि वे उसकी दीवार बना कर गंगा जी का पानी भी रोक सकते है”

जब 1857 में मेरठ से आरम्भ होकर क्रांति की चिंगारी जब दिल्ली पहुँची तो दिल्ली से अंग्रेजों की हार के बाद अनेक रियासतों की भारतीय सेनाओं ने दिल्ली में डेरा डाल दिया। उनके भोजन और वेतन की समस्या पैदा हो गई । मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर की आर्थिक हालत ठीक नही थी । यह देख कर रामदास जी ने अपनी करोड़ों की सम्पत्ति बादशाह के हवाले कर दी और कह दिया - 

"मातृभूमि की रक्षा प्राथमिकता है ,  धन फिर कमा लिया जायेगा "

रामजीदास ने केवल धन ही नहीं दिया, लाखों सैनिकों को सत्तू, आटा, दाल, चावल,  अनाज,  और उनके बैलों, ऊँटों व घोड़ों के लिए चारे की व्यवस्था तक की।

सेठ जी जिन्होंने अभी तक केवल व्यापार ही किया था, अंग्रेजों के खिलाफ सेना व खुफिया विभाग के संघठन का कार्य भी प्रारंभ कर दिया उनकी संघठन की शक्ति को देखकर अंग्रेज़ सेनापति भी हैरान हो गए ।
सारे उत्तर भारत में उन्होंने जासूसों का जाल बिछा दिया, अनेक सैनिक छावनियों से गुप्त संपर्क किया।

उन्होंने भीतर ही भीतर एक शक्तिशाली सेना व गुप्तचर संघठन का निर्माण किया। देश के कोने कोने में गुप्तचर भेजे व छोटे से छोटे मनसबदार और राजाओं से प्रार्थना की इस संकट काल में सभी सँगठित हो और देश को स्वतंत्र करवाएं।

रामदास जी की इस प्रकार की क्रांतिकारी गतिविधियों से अंग्रेज़ शासन व अधिकारी बहुत परेशान होने लगे ।

कुछ महीने बाद दिल्ली पर अंग्रेजों का पुनः कब्जा हो गया ।  अंग्रेजों को समझ आ गया की भारत पर शासन करना है तो रामदास जी का अंत बहुत ज़रूरी है । 

सेठ रामदास जी गुड़वाले को धोखे से पकड़ा गया और जिस तरह से मारा गया वो तथाकथित सभ्य अंग्रेजों की क्रूरता की मिसाल है।

पहले उन्हें रस्सियों से खम्बे में बाँधा गया फिर उन पर  शिकारी कुत्ते छुड़वाए गए, जब उनका 90% मांस नोच लिया ,  उसके बाद उन्हें उसी अधमरी अवस्था में दिल्ली के चांदनी चौक की कोतवाली के सामने फांसी पर लटका दिया गया। 

सेठ रामदास जैसे अनेकों क्रांतिकारी इतिहास के पन्नों से गुम कर दिए गए ।

रविवार, 25 फ़रवरी 2024

मैकाले की टूल किट

मैकाले की टूल किट 

मैकाले की सोच -- हमे एक ऐसी कौम बनानी है जो देखने मे हिंदुस्तानी हो मगर दिलोदिमाग से अंग्रेजों की गुलाम हो । 1857 का संग्राम हम देख चुके है ।  एक दिन हम अंग्रेजो को भारत से जाना ही होगा लेकिन जाने से पहले हम इन हिंदुस्तानी लोगों को अपनी मानसिक गुलाम कौम बना देंगे । और यह पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहेगा ।

(कल्पना करिए कि उस वक़्त क्या बातचीत हुई होगी)



 
फिर मैकाले अपने शिष्य कर्जन और डलहौजी से बोले - हमे ये करना है जिससे कि -

- ये लोग अपने धर्म और संस्कृति पर ग्लानि व शर्म महसूस करें व उसका मखौल उड़ाए  किंतु दूसरे धर्म को अच्छा समझे 
-ये लोग अपने सभी साधु संतों को पाखंडी समझे और पोप पादरी बाइबिल को महान समझे
-ये लोग अपने प्राचीन विज्ञान को पाखंड और झूठ माने और विदेशी विज्ञान को श्रेष्ठतम माने 
- ये लोग अपनी चिकित्सा पद्धति आयुर्वेदिक और यूनानी को बकवास और अवैज्ञानिक माने और अंग्रेजी चिकित्सा पद्धति को श्रेष्ठ मानें
-ये लोग अपनी भाषा में पढ़ने लिखने बोलने वालों को हेय दृष्टि से देखे और अंग्रेजी पढ़ने लिखने बोलने वालों को उच्च मानें । अंग्रेजी पढ़ने वालों की भारतीय समाज मे बड़ी इज्जत हो , उनको ही बड़ी नौकरियां मिलें ।
-इनके लाखो गुरुकुल जो मंदिरों में चलते है वे बंद करवाओ , इनकी शिक्षा व्यवस्था तबाह कर दो और अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था लागू करो ।  स्कूलों में इनके बच्चों को वही पढवाओ जो हम चाहते हैं । शिक्षा को सिर्फ नौकरी पाने का जरिया बना दो । 
-इनकी किताबे बदल दो और अंग्रेजी किताबे चला दो । हमे ऐसा करना है कि आगे 50 सालों में भारत मे संस्कृत और फ़ारसी पढ़ने और समझने वालों की संख्या 1% से भी कम हो जाये। 
-ये लोग ऐसा साहित्य पढ़े (और ऐसी फिल्में देखे) जिसमे क्षत्रिय को अय्याश अत्याचारी राजा या जमीन्दार , ब्राह्मण को धूर्त पाखंडी , वैश्य को सूदखोर लालची व शूद्र को इनके जुल्म सहने वाला बताया हो 
- ये लोग अपनी परंपराओं को ब्राह्मणवाद कह के मजाक उड़ाए और विरोध करें 
-इनको बताओ कि तुम्हारे पास कुछ भी श्रेष्ठ नही था , जो भी श्रेष्ठ है वो हम यूरोपीय लोगो ने तुमको दिया है 
- इनको बताओ कि तुम लोग भी हमारी तरह  बाहरी हो और तुम्हारे पूर्वज यूरोप से आये थे , तुम्हारी भाषा भी यूरोपीय लोगो की देन है 
- इनको झूठी आर्य आक्रमण थ्योरी पढ़ा कर द्रविड़ों से लड़वाओ , शूद्रों को ब्राह्मणों से लड़वाओ , हिंदी और तमिल को लड़वाओ 
- इनके देशज वस्त्र जो इनके देश के मौसम के अनुसार कम्फ़र्टेबल होते है -जैसे धोती कुर्ता गमछा उत्तरीय आदि को पहनने में इनको शर्म आये और ये इंग्लैंड के ठंडे मौसम के अंग्रेजी वस्त्रों जैसे शर्ट सूट पैंट टाई कोट को पहनने में गर्व अनुभव करें 
- ये लोग अपने नायकों का मजाक उड़ाए और विदेशी आक्रमणकारियों की तारीफ करें 
- इनको बताओ कि तुम लोग कभी एक देश नही थे । हम अंग्रेजो ने तुमको एक देश बनाया । 

डलहौजी ने पूछा सर कैसे किया जाएगा यह सब -

मैकॉले बोला - एक झूठ को यदि 100 बार बोला जाए तो वह सच लगने लगता है । पहले यह काम जर्मन और अंग्रेज विद्वान करेंगे फिर गुलाम भारतीय खुद ही करेंगे । हम मैक्स मूलर , स्पीयर, मेटकाफ जैसे लोगो को तनख्वाह देंगे यह काम करने के लिए । समझे डलहौज़ी , तुम मेरा बनाया हुआ इंडियन एडुकेशन एक्ट तुरंत लागू करो  । इनको धर्म जाति भाषा क्षेत्र के आधार पर बांटते जाओ और लड़वाते जाओ। 

देखना डलहौज़ी भारत की आजादी के बाद एक दिन ऐसा आएगा कि जो भारत के टुकड़े होने की बात करेगा , जो आतंकवादी नक्सली का समर्थन करेगा उसका साथ देने के लिए हमारे मानसिक गुलाम खड़े हो जाएंगे । जो भगवा पहनेगा या संस्कृत आयुर्वेद गीता पढ़ने की बात करेगा उसका विरोध करने हमारे मानसिक गुलाम खड़े हो जाएंगे । भारत में भारत माता की जय बोलने वालों को मूर्ख समझा जाएगा । 
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मैकाले की टूल किट सफल हुई । आज भी हमारे बीच मे बहुत से लोग इसी टूलकिट के अनुसार दिलोदिमाग से अंग्रेजो के गुलाम बन हुए हैं ।

ऐसे लोगो को  देश और समाज के हित में अपने दिमाग को अब decolonized कर लेना चाहिए ।

प्राचीन भारतीय इंजीनियरिंग ग्रन्थ

प्राचीन भारतीय इंजीनियरिंग ग्रन्थ :  
विश्व के सबसे पहले तकनीकी ग्रंथ विश्वकर्मीय ग्रंथ ही माने गए हैं। विश्वकर्मीयम ग्रंथ इनमें बहुत प्राचीन माना गया है, जिसमें न केवल वास्तुविद्या, बल्कि रथादि वाहन व रत्नों पर विमर्श है। विश्वकर्माप्रकाश, जिसे वास्तुतंत्र भी कहा गया है, विश्वकर्मा के मतों का जीवंत ग्रंथ है। इसमें मानव और देववास्तु विद्या को गणित के कई सूत्रों के साथ बताया गया है, ये सब प्रामाणिक और प्रासंगिक हैं। विश्वकर्मा प्रकाश के अध्यायों के नाम हैं- भूमिलक्षण, गृह्यादिलक्षण, मुहुर्त, गृहविचार, पदविन्यास, प्रासादलक्षण, द्वारलक्षण, जलाशयविचार, वृक्ष, गृहप्रवेश, दुर्ग, शाल्योद्धार, गृहवेध।
ग्रन्थ अपराजितपृच्छा में अपराजित के प्रश्नों पर विश्वकर्मा द्वारा दिए उत्तर लगभग साढ़े सात हज़ार श्लोकों में दिए गए हैं। संयोग से यह ग्रंथ 239 सूत्रों तक ही मिल पाया है। कहा जाता है कि इस ग्रन्थ में जल पर चल सकने योग्य खड़ाऊ तैयार करने का वर्णन है ।
शिल्पशास्त्र में लम्बाई मापने कि लिये सब से छोटा मापदण्ड ‘पारामणु’ था जो आधुनिक इंच के 1/349525 भाग के बराबर है। यह मापदण्ड न्याय विशेषिका के ‘त्रास्रेणु’ (अन्धेरे कमरे में आने वाली सूर्य किरण की रौशनी में दिखने वाला अति सूक्षम कण) के बराबर था।  वराहमिहिर के अनुसार 86 त्रास्रेणु ऐक उंगली के बराबर (ऐक इंच का तीन चौथाई भाग) होते हैं। 64 त्रास्रेणु ऐक बाल के बराबर मोटे होते हैं।
मानसार शिल्पशास्त्र शिल्पशास्त्र का प्राचीन ग्रन्थ है जिसके रचयिता मानसार हैं। इसके 43 वें अध्याय में ऐसे अनेक रथों का वर्णन है। जो वायुवेग से चल कर लक्ष्य तक पहुँचते थे। उनमें बैठा व्यक्ति बिना अधिक समय गवाँए गंतव्य तक पहुँच जाता था। मानसर शिल्पशास्त्र ब्रह्मा की स्तुति से आरम्भ होता है जो ब्रह्माण्द के निर्माता हैं। यह ग्रन्थ शिव के तीसरे नेत्र के खुलने पर समाप्त होता है। इसमें लगभग ७० अध्याय हैं जिनमें से प्रथम आठ अध्यायों को एक भाग में रखा गया है। आगे के दस अध्याय दूसरा समूह बनाते हैं। इसके बाद मानसार का केन्द्रीय भाग आता है। अध्याय १९ से अध्याय ३० में एकमंजिला भवन से लेकर १२ मंजिला भवन का वर्णन  करते हैं। अध्याय ३१ से अध्याय ५० में वास्तुशिलप (आर्किटेक्चर) की चर्चा है। इसके बाद मूर्तिकला की चर्चा आती है जो अध्याय ५१ से अध्याय ७० तक की गयी है। अध्याय ५१ से अध्याय ७० की सामग्री को मोटे तौर पर दो भागों में बाँटा जा सकता है- अध्याय ५१ से अध्याय ६५ तक युद्ध अस्त्र शस्त्र निर्माण का एक समूह है तथा अध्याय ६६ से अध्याय ७० तक धातुकर्म का दूसरा समूह।
मयमतम् के ३६ अध्यायों के नाम इस प्रकर हैं-
संग्रहाध्याय, वास्तुप्रकार, भूपरीक्षा, भूपरिग्रह, मनोपकरण, दिक्-परिच्छेद, पाद-देवता-विन्यास, बालिकर्मविधान, ग्रामविन्यास, नगरविधान, भू-लम्ब-विधान, गर्भन्यासविधान, उपपित-विधान, अधिष्ठान विधान, पाद-प्रमान-द्रव्य-संग्रह, प्रस्तर प्रकरण, संधिकर्मविधान, शिखर-करण-विधान समाप्ति-विधान, एक-भूमि-विधान, द्वि-भूमि-विधान, त्रि-भूमि-विधान, बहु-भूमि-विधान, प्रकर-परिवार, गोपुर-विधान, मण्डप-विधान, शाला-विधान, गृहप्रवेश, राज-वेस्म-विधान, द्वार-विधान, यानाधिकार, यान-शयनाधिकार, लिंगलक्षण, पीठलक्षण, अनुकर्म-विधान, प्रतिमालक्षण।

प्राचीन भारतीय प्रमुख विश्वकर्मीय ग्रन्थ लगभग ३५० से भी अधिक उपलब्ध हैं । ये ग्रन्थ भारत में संस्कृत में ( अधिकतर हस्तलिखित ताड़पत्र में जीर्ण शीर्ण अवस्था में ) तथा यूरोप में अंग्रेजी में या जर्मन भाषा में छपे हुए उपलब्ध हैं  . इनमें से प्रमुख ग्रन्थ निम्नलिखित हैं: 

>>अपराजितपृच्छा (रचयिता : भुवनदेवाचार्य ; विश्वकर्मा और उनके पुत्र अपराजित के बीच वार्तालाप सिविल तथा मेकेनिकल इंजीनियरिंग के सिद्धांत )
>>ईशान-गुरुदेवपद्धति : चरखा , धुरी , पुली , पहिया आदि का निर्माण 
>>कामिकागम : मुख्यतः सामुद्रिक बड़े जहाज बनाने तथा नदी नौका परिवहन का वैज्ञानिक ग्रन्थ , इसमें कम्पास निर्माण चुम्बक सिधांत , द्रव बहाव यांत्रिकी , टरबाइन आदि का वर्णन है 
>>कर्णागम (इसमें वास्तु पर लगभग ४० अध्याय हैं। इसमें तालमान का बहुत ही वैज्ञानिक एवं पारिभाषिक विवेचन है।) 
>>मनुष्यालयचंद्रिका (कुल ७ अध्याय, २१० से अधिक श्लोक) : कांसा लकड़ी तथा लोहे का भवन निर्माण में प्रयोग , धातुओं को आपस में जोड़ने हेतु रिवेट निर्माण 
>>प्रासादमण्डन (कुल ८ अध्याय): महल वास्तुशिल्प का ग्रन्थ 
>>राजवल्लभ (कुल १४ अध्याय): सिक्के ढालने की मशीने तथा टकसाल पद्धति 
>>तंत्रसमुच्चय : यंत्रो की गणित तथा डिजाइन , इस ग्रन्थ में रॉकेट बनाने का वर्णन है
>>वास्तुसौख्यम् (कुल ९ अध्याय): आर्किटेक्चर का महान ग्रन्थ 
>>विश्वकर्मा प्रकाश (कुल १३ अध्याय, लगभग १३७४ श्लोक)
>>विश्वकर्मा वास्तुशास्त्र (कुल ८४ अध्याय)
>>सनत्कुमारवास्तुशास्त्र
>> शिल्पसन्हिता : आर्किटेक्चर का महान ग्रन्थ , इसमें श्री विश्वकर्मा द्वारा रचित एक ‘दिव्य-दृष्टि’ नामक यंत्र का जिक्र है । इस यंत्र से राजभवन में बैठकर भी युद्ध-मैदान के दृश्य देखे जा सकते थे। यही यंत्र आजकल दूरदर्शन (टेलीविजन) कहलाता है। शिल्प संहिता में विश्वकर्मा निर्मित ‘दूरवीक्षण-यंत्र’ का वर्णन किया गया है।
>> राजाभोज की ‘समरांगण सूत्रधार’ (1100 ईस्वी) में कई याँत्रिक खोजो का वर्णन है जैसे कि चक्री (पुल्ली), लिवर, ब्रिज, छज्जे (केन्टीलिवर) आदि।  कुल ८४ अध्याय, ८००० से अधिक श्लोक
>> पातञ्जली ऋषि ने लोहशास्त्र ग्रन्थ में धातुओं के प्रयोग से कई प्रकार के रसायन, लवण, और लेप बनाने के निर्देश दिये हैं। धातुओं के निरीक्षण, सफाई तथा निकालने के बारे में भी निर्देश हैं। स्वर्ण तथा पलेटिनिम को पिघलाने के लिये ‘अकुआ रेगिना’ तरह का घोल नाइटरिक एसिड तथा हाइड्रोक्लोरिक एसिड के मिश्रण से तैय्यार किया जाता था।
>>वास्तुमण्डन
>>मयशास्त्र : (भित्ति सजाना) 
>>बिम्बमान : (अजंता एलोरा जैसी अमिट दीवार चित्रकला की पद्धति )
>>शुक्रनीति (प्रतिमा, मूर्ति या विग्रह निर्माण)
>>सुप्रभेदगान : पुल बनाने के सिधांत एवं पुलों की संरचना 
>>आगम (इनमें भी शिल्प की चर्चा है।)
>>प्रतिमालक्षणविधानम् : मूर्तिकला 
>>गार्गेयम् : बाँध बनाने के तरीके , नहरें एवं सिंचाई कला 
>>मानसार शिल्पशास्त्र (कुल ७० अध्याय; ५१०० से अधिक श्लोक; कास्टिंग, मोल्डिंग, कार्विंग, पॉलिशिंग, तथा कला एवं हस्तशिल्प निर्माण, युद्ध अस्त्र शस्त्र निर्माण , धातुकर्म  के अनेकों अध्याय) 
>>अत्रियम् : राजपथ तथा ग्रामपथ निर्माण , सराय धर्मशाला निर्माण , घोड़ों हाथियों ऊंटों के स्थान के निर्माण , तालाब निर्माण 
>>प्रतिमा मान लक्षणम् (इसमें टूटी हुई मूर्तियों को सुधारने आदि पर अध्याय है।)
>>दशतल न्याग्रोध परिमण्डल : दस मंजिल भवनों तथा जमीन के अन्दर दस मंजिल तहखानो के निर्माण , सुरंगों के निर्माण का वर्णन 
>>शम्भुद्भाषित प्रतिमालक्षण विवरणम् : मूर्तिकला 
>>मयमतम् (मयासुर द्वारा रचित, कुल ३६ अध्याय, ३३०० से अधिक श्लोक) : राजधानी निर्माण , टाउन प्लानिंग , नगर जल प्रदाय , नगर महल सड़क कुये बावड़ी नहर , विमान विद्या , खगोल विद्या कलेंडर , धातुकर्म , खदान , जहाज निर्माण , मौसम विज्ञान , जल शक्ति , वायु शक्ति , सूर्य सिधान्त आदि 
>>बृहत्संहिता (अध्याय ५३-६०, ७७, ७९, ८६)निर्माण 
>>शिल्परत्नम् (इसके पूर्वभाग में 46 अध्याय कला तथा भवन/नगर-निर्माण पर हैं। उत्तरभाग में ३५ अध्याय मूर्तिकला आदि पर हैं।)
>>युक्तिकल्पतरु (आभूषण-कला सहित विविध कलाएँ)
>>शिल्पकलादर्शनम्
>>वास्तुकर्मप्रकाशम् : खिडकी एवं दरवाजा आदि निर्माण  
>>कश्यपशिल्प (कुल ८४ अध्याय तथा ३३०० से अधिक श्लोक) : पहिया तथा रथ निर्माण , कृतिम झील निर्माण, बिना पहिये के वाहनों का निर्माण (स्लेज गाड़ी ) , 
>>अलंकारशास्त्र : स्वर्ण तथा रजत शुद्धिकरण , परीक्षण व आभूषण निर्माण
>>चित्रकल्प (आभूषण)
>>चित्रकर्मशास्त्र
>>मयशिल्पशास्त्र (तमिल में)
>>विश्वकर्मा शिल्प (स्तम्भों पर कलाकारी, काष्ठकला)
>>अगत्स्य (काष्ठ आधारित कलाएँ एवं शिल्प)
>>मण्डन शिल्पशास्त्र (दीपक आदि)
>>रत्नशास्त्र (मोती, आभूषण आदि)
>>रत्नपरीक्षा (आभूषण)
>>रत्नसंग्रह (आभूषण)
>>लघुरत्नपरीक्षा (आभूषण आदि)
>>मणिमहात्म्य (lapidary)
>>अगस्तिमत (lapidary crafts)
>>नलपाक (भोजनालय निर्माण , पात्र कलाएँ)
>>पाकदर्पण (भोजनालय निर्माण , पात्र कलाएँ)
>>पाकार्नव (भोजनालय निर्माण, पात्र कलाएँ)
>>कुट्टनीमतम् (टेक्सटाइल मशीने , वस्त्र कलाएँ)
>>कादम्बरी (वस्त्र कला तथा शिल्प पर अध्याय हैं)
>>समयमात्रिका (वस्त्रकलाएँ)
>>यन्त्रकोश (संगीत के यंत्र )
>>संगीतरत्नाकर (संगीत से सम्बन्धित शिल्प)
>>चिलपटिकारम् ( दूसरी शताब्दी में रचित तमिल ग्रन्थ जिसमें संगीत यंत्रों पर अध्याय हैं)
>>मानसोल्लास (संगीत यन्त्रों से सम्बन्धित कला एवं शिल्प,पाकशास्त्र, वस्त्र, सज्जा आदि)
>>वास्तुविद्या (मूर्तिकला, चित्रकला, तथा शिल्प)
>> भारद्वाज रचित वैमानिक शास्त्र : इसमें ५२ प्रकार के विमानों का सचित्र निर्माण दिया है 
>>उपवन विनोद (उद्यान, उपवन भवन निर्माण, घर में लगाये जाने वाले पादप आदि से सम्बन्धित शिल्प)
>>वास्तुसूत्र (संस्कृत में शिल्पशास्त्र का सबसे प्राचीन ग्रन्थ; ६ अध्याय; ) 
>> नागार्जुन द्वारा रचित रस रत्नाकर, रसेन्द्र मंगल आदि ग्रन्थ   : पारा धातु का शुद्धिकरण व उपयोग , रसायनों का प्रयोग रंगाई, टेनिंग, साबुन निर्माण, सीमेन्ट निर्माण, तथा दर्पण निर्माण , केलसीनेशन, डिस्टिलेशन, स्बलीमेशन, स्टीमिंग, फिक्सेशन, तथा बिना गर्मी के हल्के इस्पात निर्माण , कई प्रकार के खनिज लवण, चूर्ण और रसायन तैय्यार किये जाने की विधियाँ ।  
>> अगस्त्य द्वारा रचित अगस्त्य संहिता : विद्युत् कर्म , बैटरी निर्माण

मंगलवार, 17 अक्टूबर 2023

महा पराशक्ति

महा पराशक्ति 

शाक्त परंपराओं के अनुसार, त्रिपुर सुंदरी आदि देवियां महापराशक्ति की भौतिक अवतार हैं। वह आसुर को नष्ट करने के लिए इस ब्रह्माण्ड के ऊपर अन्य ब्रह्माण्ड मणिद्वीप से आईं, बाद में कामाक्षी पराभट्टारिका के रूप में कामकोटि पीठ में निवास करने लगीं। उनके निवास को चित्रात्मक रूप से श्री चक्र के रूप में दर्शाया गया है।

 इस ब्रह्माण्ड के ब्रह्मा, विष्णु, शिव उसके अधीनस्थ हैं और उनकी शक्ति के बिना कार्य नहीं कर सकते। इस प्रकार, शक्तिवाद में महा पराशक्ति को  सर्वोच्च देवी और प्राथमिक देवता माना जाता है क्योंकि वह आदि पराशक्ति की निकटतम प्रतिनिधि हैं जो आगे चलकर पार्वती के रूप में अवतरित हुईं। इस मत के अनुसार कोई व्यक्ति जिस भी देवता की पूजा कर रहा है, अंततः, वे आदि पराशक्ति की पूजा कर रहे हैं।

उन्होंने धर्म की रक्षा के लिए समय-समय पर विभिन्न अवतार लिए। उच्चतम क्रम के योगियों के अनुसार, महा पराशक्ति वह शक्ति है जो अंबा के रूप में कुंडलिनी में निवास करती है, वह आकार में 3+1/2 कुंडल है और जब कुंडलिनी को हर इंसान की त्रिकास्थि हड्डी से एक उच्च एहसास द्वारा उठाया जाता है जिस आत्मा की कुंडलिनी भी जागृत होती है, वह मानव की रीढ़ की हड्डी के माध्यम से सभी चक्रों मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्धि, आज्ञा और अंत में सहस्रार चक्रों से ऊपर उठती है और आत्मा को सर्वव्यापी शक्ति (या सामूहिक चेतना) से जोड़ती है। दिव्य तीन नाड़ियों, इड़ा (बाएं चैनल- तमो गुण), पिंगला (दायां चैनल-रजो गुण) और सुषुम्ना (केंद्रीय चैनल-सत्व गुण) पर, कुंडलिनी सभी बाएं और दाएं चैनल को संतुलित करते हुए केंद्रीय चैनल से गुजरती है। इस प्रकार इड़ा पिंगला और सुषुम्ना भी महा पराशक्ति की ही ऊर्जाएं हैं । 

काली देवी आदि पराशक्ति का तीसरा अंश हैं। वह शक्ति, आध्यात्मिक पूर्ति, समय की देवी हैं, साथ ही ब्रह्मांड के विनाश की अध्यक्षता भी करती हैं। वह मानव जाति को मोक्ष प्रदान करती है। वह पार्वती का अवतार और शिव के अवतार महाकाल की पत्नी भवानी दुर्गा हैं। उन्होंने महामाया के रूप में भगवान महा विष्णु को मधु और कैटभ नामक राक्षसों का वध करने में मदद की। उन्होंने ही कौशिकी के रूप में शुंभ और निशुंभ का भी वध किया था, जो अज्ञानता के प्रतीक हैं। इन्हें योगमाया के नाम से भी जाना जाता है। दुर्गा सप्तशती के अनुसार उन्हें तामसी देवी और चंडी देवी भी कहा जाता है। वह लाल या काला वस्त्र पहनती है और तमस गुण की स्वामी है।

फोटो- महा पराशक्ति देवी , मलेशिया 
श्री महापराशक्ति Pachai Amman Temple, Malaysia (90 फ़ीट विग्रह)