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सोमवार, 3 फ़रवरी 2025

चेतना और क्वांटम यांत्रिकी



डॉ. स्टुअर्ट हैमरॉफ (Stuart Hameroff) और सर रोजर पेनरोस (Roger Penrose) ने चेतना को समझाने के लिए ऑर्केस्ट्रेटेड ऑब्जेक्टिव रिडक्शन (Orchestrated Objective Reduction - Orch-OR) सिद्धांत प्रस्तुत किया। यह सिद्धांत मानता है कि चेतना केवल मस्तिष्क की न्यूरोकेमिकल गतिविधियों का परिणाम नहीं है, बल्कि इसका संबंध क्वांटम यांत्रिकी (Quantum Mechanics) से भी है।
Orch-OR सिद्धांत का सार:
1. सूक्ष्म ट्यूब्यूल्स (Microtubules)
मस्तिष्क की कोशिकाओं (Neuron Cells) के भीतर माइक्रोट्यूब्यूल्स नामक प्रोटीन संरचनाएं होती हैं।
ये माइक्रोट्यूब्यूल्स केवल संरचनात्मक भूमिका नहीं निभाते, बल्कि सूचना प्रसंस्करण और भंडारण में भी महत्वपूर्ण हो सकते हैं।
2. क्वांटम सुपरपोजिशन
माइक्रोट्यूब्यूल्स के भीतर क्वांटम सुपरपोजिशन (Quantum Superposition) की अवस्था उत्पन्न होती है, जहां एक कण एक ही समय में दो या अधिक अवस्थाओं में हो सकता है।
यह चेतना के जटिल अनुभवों को उत्पन्न कर सकता है।
3. ऑब्जेक्टिव रिडक्शन (Objective Reduction)
जब ये क्वांटम अवस्थाएं टूटती हैं (Collapse होती हैं), तो चेतना का एक नया क्षण (Moment of Awareness) उत्पन्न होता है।
पेनरोस के अनुसार, यह प्रक्रिया ब्रह्मांड के मूलभूत नियमों से जुड़ी है।
4. क्वांटम ग्रैविटी का योगदान
पेनरोस ने तर्क दिया कि माइक्रोट्यूब्यूल्स में होने वाली क्वांटम गतिविधियां ब्रह्मांडीय चेतना (Cosmic Consciousness) से जुड़ी हो सकती हैं।
इस सिद्धांत का महत्व:

यह सुझाव देता है कि चेतना महज जैविक या न्यूरोकेमिकल प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह ब्रह्मांडीय क्वांटम प्रक्रियाओं से भी जुड़ी हो सकती है।

यह विज्ञान और अध्यात्म के बीच एक सेतु का कार्य करता है ।

रविवार, 8 दिसंबर 2024

क्वांटम फील्ड थ्योरी" और भारतीय तत्वज्ञान

क्वांटम ऊर्जा और "क्वांटम फील्ड थ्योरी" का भारतीय तत्वज्ञान के "आकाश तत्व" और "सहस्रार चक्र" से गहरा प्रतीकात्मक और सैद्धांतिक संबंध है। दोनों प्रणालियां ब्रह्मांडीय ऊर्जा, चेतना, और अदृश्य ताकतों के प्रभाव को समझने का प्रयास करती हैं, हालांकि इनकी भाषा और व्याख्या अलग हो सकती हैं।  आइए इसे विस्तार से समझते हैं:
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1. "आकाश तत्व" और क्वांटम फील्ड थ्योरी का संबंध

a. आकाश तत्व का भारतीय तत्वज्ञान में अर्थ:

आकाश तत्व (Ether या Space) को भारतीय दर्शन में सूक्ष्मतम तत्व माना गया है। यह शुद्ध ऊर्जा का स्रोत है और सभी तत्वों का आधार है। आकाश को चेतना, विचार, और ब्रह्मांडीय ऊर्जा के माध्यम के रूप में देखा जाता है।

b. क्वांटम फील्ड थ्योरी का दृष्टिकोण:

क्वांटम फील्ड थ्योरी के अनुसार, ब्रह्मांड में प्रत्येक कण (जैसे इलेक्ट्रॉन) एक क्वांटम फील्ड से उत्पन्न होता है। क्वांटम फील्ड शून्यता (Vacuum) नहीं है, बल्कि यह ऊर्जा का ऐसा माध्यम है, जिसमें सूक्ष्मतर स्तर पर निरंतर कंपन होता रहता है।

समानताएं:

1. आकाश तत्व और क्वांटम फील्ड दोनों ही शारीरिक और भौतिक जगत से परे एक अति-सूक्ष्म शक्ति के रूप में देखे जाते हैं।

2. जैसे आकाश तत्व हर जगह व्याप्त है, उसी प्रकार क्वांटम फील्ड पूरे ब्रह्मांड में समान रूप से फैला हुआ है।

3. दोनों यह बताते हैं कि सारी सृष्टि एक सूक्ष्म, अदृश्य ऊर्जा से उत्पन्न हुई है।

4. आकाश तत्व को "सूचना और ऊर्जा का वाहक" माना गया है, और क्वांटम फील्ड थ्योरी के अनुसार, यह फील्ड सूक्ष्म कणों के व्यवहार को प्रभावित करती है। कण और ऊर्जा परस्पर परिवर्तनीय हैं ।
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2. "सहस्रार चक्र" और क्वांटम ऊर्जा का संबंध

a. सहस्रार चक्र का तत्वज्ञान:

सहस्रार चक्र भारतीय योग में सातवां चक्र है, जिसे सर्वोच्च चेतना का केंद्र माना जाता है। यह चक्र ब्रह्मांडीय ऊर्जा (Universal Energy) और व्यक्तिगत चेतना (Individual Consciousness) के मिलन का प्रतीक है। यह आध्यात्मिक ज्ञान और संपूर्णता का स्रोत है।

b. क्वांटम ऊर्जा का अर्थ:

क्वांटम ऊर्जा वह शक्ति है जो सूक्ष्मतम स्तर पर कणों और तरंगों के रूप में प्रकट होती है। यह ऊर्जा मस्तिष्क और शरीर को नियंत्रित करने वाली इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड्स से जुड़ी हो सकती है।

समानताएं:

1. सहस्रार चक्र और क्वांटम ऊर्जा दोनों ही चेतना के उच्चतम स्तर और शुद्ध ऊर्जा से जुड़े हैं।

2. सहस्रार चक्र का उद्देश्य व्यक्ति को ब्रह्मांडीय चेतना से जोड़ना है, जो क्वांटम ऊर्जा की "इंटरकनेक्टेडनेस" (सभी चीजें एक-दूसरे से जुड़ी हैं) की अवधारणा से मेल खाता है।

3. सहस्रार चक्र में संतुलन या सक्रियता से व्यक्ति अपने उच्चतम आध्यात्मिक स्तर को प्राप्त करता है, ठीक वैसे ही जैसे क्वांटम ऊर्जा के माध्यम से सूक्ष्म कण अपने संभावित रूपों में प्रकट हो सकते हैं।
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3. भारतीय तत्वज्ञान और क्वांटम सिद्धांत की व्याख्या

a. अद्वैत (Non-Duality) और क्वांटम इंटरकनेक्टेडनेस:

भारतीय दर्शन के अद्वैत वेदांत के अनुसार, ब्रह्मांड में सब कुछ एक है। क्वांटम फिजिक्स में, "Quantum Entanglement" दर्शाता है कि दो कण चाहे कितनी भी दूरी पर हों, वे हमेशा एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं।

b. चेतना और पर्यवेक्षक का प्रभाव:

भारतीय दर्शन में चेतना को सृजन और अनुभव का मुख्य स्रोत माना गया है। क्वांटम थ्योरी कहती है कि कणों का व्यवहार पर्यवेक्षक (Observer) की उपस्थिति से प्रभावित होता है। यह "चेतना" की भूमिका पर प्रकाश डालता है।

c. ऊर्जा का सूक्ष्म स्तर:

भारतीय दर्शन में कहा गया है कि ऊर्जा (प्राण) स्थूल और सूक्ष्म दोनों रूपों में प्रकट होती है। क्वांटम सिद्धांत में, ऊर्जा के सूक्ष्मतम कण (Photons, Quarks) अनिश्चितता के सिद्धांत (Uncertainty Principle) के अनुसार कार्य करते हैं।
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4. व्यावहारिक दृष्टिकोण:

योग और ध्यान:

सहस्रार चक्र को सक्रिय करने के लिए योग और ध्यान की विधियां, ब्रह्मांडीय ऊर्जा से जुड़ने का तरीका प्रदान करती हैं। यह अनुभव क्वांटम ऊर्जा की "इंटरकनेक्टेडनेस" की अवधारणा के समान है।

क्वांटम चिकित्सा और आयुर्वेद:

आधुनिक क्वांटम चिकित्सा और आयुर्वेद दोनों में ऊर्जा संतुलन का महत्व है। सहस्रार चक्र के असंतुलन को ठीक करना या इसे सक्रिय करना, "ऊर्जा तरंगों" को नियंत्रित कर सकता है। 
सहस्रारस्य चक्रस्य, सन्तुल्यं यदि साध्यते।
असन्तुल्यं विनाश्यं च, तरङ्गा ऊर्जया नियाम्यते॥
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निष्कर्ष:

आकाश तत्व और क्वांटम फील्ड दोनों ही इस बात को व्यक्त करते हैं कि ब्रह्मांडीय ऊर्जा सूक्ष्मतम स्तर पर सब कुछ जोड़ती है।

सहस्रार चक्र और क्वांटम ऊर्जा आत्मा और ब्रह्मांडीय चेतना के जुड़ाव को दर्शाते हैं।

भारतीय तत्वज्ञान और क्वांटम फिजिक्स दोनों ही यह समझाने का प्रयास करते हैं कि सृष्टि का मूल आधार एक अदृश्य और सूक्ष्म ऊर्जा है। क्वांटम मैकेनिक्स और अधिक विकसित होकर प्राचीन भारतीय दर्शन तक पहुंच जाएगी । 

इस प्रकार, दोनों विचारधाराएं गहरे स्तर पर एक-दूसरे से जुड़ी हुई प्रतीत होती हैं, हालांकि उनकी भाषा और व्याख्या अलग हैं।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI)

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) से मानवता को कई संभावित खतरे हो सकते हैं, जिन पर लगातार चर्चा और शोध हो रहा है। इनमें से कुछ खतरे निम्नलिखित हैं:

1. नौकरियों का नुकसान (Job Displacement)

AI और ऑटोमेशन के बढ़ते उपयोग से कई पारंपरिक नौकरियां समाप्त हो सकती हैं। खासतौर पर निम्न-कौशल वाली नौकरियों में मानव श्रमिकों की आवश्यकता कम हो सकती है।
उदाहरण: फैक्ट्री वर्कर्स, डेटा एंट्री ऑपरेटर, ड्राइवर, आदि।
2. गोपनीयता का उल्लंघन (Privacy Violation)

AI का उपयोग व्यक्तिगत डेटा को एकत्र करने और उसका विश्लेषण करने में किया जाता है। इससे लोगों की गोपनीयता पर खतरा हो सकता है, खासकर जब डेटा का दुरुपयोग होता है।
उदाहरण: निगरानी कैमरों, सोशल मीडिया एनालिटिक्स, या गलत इरादे से डेटा चोरी।

3. भेदभाव और पूर्वाग्रह (Bias and Discrimination)

AI सिस्टम में इस्तेमाल होने वाले डेटा में अगर पहले से कोई पूर्वाग्रह हो, तो AI उन पूर्वाग्रहों को बढ़ा सकता है।
उदाहरण: AI आधारित भर्ती प्रणाली जो कुछ समूहों के खिलाफ भेदभाव करती हो।

4. हथियारों का दुरुपयोग (Weaponization)

AI का उपयोग स्वायत्त हथियारों (autonomous weapons) और साइबर अटैक्स के लिए किया जा सकता है, जो वैश्विक सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बन सकता है।

5. गलत सूचना का प्रसार (Misinformation)

AI आधारित तकनीक जैसे डीपफेक (Deepfake) वीडियो और ऑटो-जेनरेटेड फेक न्यूज, समाज में भ्रम और अफवाहें फैलाने के लिए इस्तेमाल हो सकते हैं।
उदाहरण: राजनीतिक प्रचार या गलत जानकारी का प्रसार।

6. मानव निर्णय पर निर्भरता में कमी (Loss of Human Autonomy)

AI के अधिक उपयोग से लोग अपने निर्णय लेने की क्षमता पर कम ध्यान दे सकते हैं और AI पर अत्यधिक निर्भर हो सकते हैं।
उदाहरण: नेविगेशन, वित्तीय निवेश, या मेडिकल डायग्नोसिस में।

7. अवैध या अनैतिक प्रयोग (Unethical Use)

AI का इस्तेमाल धोखाधड़ी, निगरानी, या मानव अधिकारों के उल्लंघन के लिए किया जा सकता है।
उदाहरण: राजनीतिक नियंत्रण के लिए AI का दुरुपयोग।

8. सुपरइंटेलिजेंस का खतरा (Superintelligence Risk)

अगर AI इतना विकसित हो जाए कि वह मानव नियंत्रण से बाहर हो जाए, तो यह मानवता के लिए सबसे बड़ा खतरा हो सकता है।
उदाहरण: अगर AI सिस्टम अपने उद्देश्यों को मानवता के हितों के खिलाफ बना ले।

9. आर्थिक असमानता (Economic Inequality)

AI तकनीक पर कुछ ही बड़ी कंपनियों या देशों का नियंत्रण होने से वैश्विक असमानता बढ़ सकती है।

समाधान और उपाय

नियम और नीतियां: AI के विकास और उपयोग के लिए सख्त नियम लागू करना।

शिक्षा और पुनः प्रशिक्षण: श्रमिकों को नई तकनीकों के अनुकूल बनाने के लिए ट्रेनिंग देना।

नैतिक AI: ऐसे AI सिस्टम बनाना जो मानव मूल्यों और अधिकारों का सम्मान करें।

वैश्विक सहयोग: AI तकनीक के जोखिमों से निपटने के लिए देशों के बीच सहयोग।

AI में बड़े फायदे भी हैं, लेकिन इन खतरों को ध्यान में रखकर इसका जिम्मेदारी से इस्तेमाल करना जरूरी है।

बुधवार, 27 नवंबर 2024

Space and Time दिक् और काल

 Space and Time 

दिक् और काल 


विज्ञान में स्पेस और टाइम का कॉन्सेप्ट लगभग 100 वर्ष पूर्व से आया है , किंतु भारतीय दर्शन में यह हजारों वर्षों पूर्व विकसित हो चुका था । पुराणों में कहा गया है - दिक् च कालश्च शक्त्योर्या जगतः कारणं स्मृतम्।"

अर्थात "दिक् और काल दोनों ही शक्ति के रूप में जगत के कारण माने गए हैं।"


यह सूत्र यह बताता है कि दिक् और काल शक्ति के दो रूप हैं, जिनसे समस्त जगत का निर्माण होता है।



उपनिषदों, पुराणों, महाभारत आदि के श्लोकों और सूत्रों से यह स्पष्ट होता है कि दिक् और काल को केवल भौतिक आयाम के रूप में नहीं बल्कि ब्रह्मांड की मूलभूत शक्तियों के रूप में देखा गया है, जिनके प्रभाव में सारा जगत है और जिनसे आत्मा को पार जाना चाहिए।


उपनिषदों में दिक् (अर्थात् "स्पेस") और काल (अर्थात् "समय") को भौतिक जगत के महत्वपूर्ण आयामों के रूप में देखा गया है। दोनों की अवधारणा ब्रह्मांड की संरचना और जीवन की वास्तविकता को समझने के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है। इनके परस्पर संबंध को समझना आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी महत्वपूर्ण है।


1. दिक् (स्पेस): उपनिषदों के अनुसार, दिक् सभी दिशाओं को इंगित करता है, जिससे यह संपूर्ण ब्रह्मांड का विस्तार या व्याप्ति दर्शाता है। यह किसी एक विशेष दिशा तक सीमित न होकर संपूर्ण जगत में व्याप्त है और सभी वस्तुओं के स्थान और स्थिति को दर्शाता है। यह स्थानिक आयाम (spatial dimension) का प्रतिनिधित्व करता है।


2. काल (समय): काल को परिवर्तन या घटनाओं के क्रम के रूप में देखा गया है। यह निरंतर गतिशील है और इसे किसी बाहरी वस्तु या घटना द्वारा नियंत्रित नहीं किया जा सकता। उपनिषदों में समय को चिरंतन या अनंत कहा गया है। इसे मापा नहीं जा सकता और यह सभी घटनाओं और परिवर्तनों का साक्षी होता है।


"कालः स्वभावो नियतिर्यदृच्छा, भूतानि योनिः पुरुष इति चिन्त्या।

संयोग एषां न तु आत्मभावाद्, आत्मा ह्यनाश्रयममृतं स्वतन्त्रः॥"(श्वेताश्वतर उपनिषद् 1.2)

 अर्थात -

"समय (काल), स्वभाव, नियति (भाग्य), संयोग, और पुरुष इन तत्वों को ब्रह्मांड के कारणों के रूप में विचार किया गया है। लेकिन ये सब आत्मा का स्वभाव नहीं है, आत्मा इनसे स्वतंत्र, अमर और स्वनियंत्रित है।"


काल का उल्लेख विशेष रूप से गीता के अध्याय 11, श्लोक 32 में मिलता है:

"कालोऽस्मि लोकक्षयकृत् प्रवृद्धो लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः।" अर्थात- "मैं (श्रीकृष्ण) समय हूँ, जो संपूर्ण लोकों का संहार करने वाला हूँ और यहाँ सब कुछ नष्ट करने के लिए प्रवृत्त हुआ हूँ।"

 महाभारत में एक स्थान पर कहा गया है- 

"कालः पचति भूतानि सर्वाण्येव सह प्रभुः।

कालः संहरते सर्वं कालो हि दुरतिक्रमः॥"

अर्थात- "समय (काल) सभी भूतों को पकाता है और संपूर्ण संसार को संहार करता है। समय को कोई पार नहीं कर सकता।"


3. दिक् और काल का परस्पर संबंध: दिक् और काल के बीच का संबंध अत्यधिक महत्वपूर्ण है। ये दोनों मिलकर भौतिक जगत की संरचना का निर्माण करते हैं। समय के बिना दिशा का कोई महत्व नहीं है, क्योंकि समय ही घटनाओं को क्रमबद्ध करता है। इसी प्रकार, दिक् के बिना समय की माप भी संभव नहीं है, क्योंकि दिक् का निर्धारण स्थान से होता है, जिससे घटनाओं का स्थान-काल संबंध स्थापित होता है। उपनिषदों में यह भी कहा गया है कि दिक् और काल दोनों ही माया का हिस्सा हैं, जो वास्तविकता का बोध कराते हैं लेकिन स्वयं अपार और अनन्त हैं।


प्रकृतिः पंचभूतानि ग्रहा लोकाः स्वरास्तथा ।

दिशः कालश्च सर्वेषां सदा कुर्वन्तु मंगलम् ।। 


अर्थ: प्रकृति  पांच तत्वों अर्थात् अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी और अंतरिक्ष के संयोजन से बनी है. ये पांच तत्व, सभी ग्रह और लोक,  संगीत के सात स्वर, दिक और काल हमारा सदा मंगल करें.


4. आध्यात्मिक दृष्टिकोण: उपनिषदों के अनुसार, जब कोई व्यक्ति आत्म-ज्ञान प्राप्त करता है, तो वह दिक् और काल की सीमाओं से परे चला जाता है। उस अवस्था में, वह आत्मा को शाश्वत और सर्वव्यापी (अखंड और अनंत) रूप में देखता है, जो किसी भी स्थान और समय के बंधन से मुक्त होती है।

योग वाशिष्ठ का सूत्र है -चित्तकल्पितमेवेदं दिक्कालाद्यन्यथागतम्।

तस्माच्चित्तमयो बन्धः पुमांस्येनं विवर्जये ।।

अर्थात-  "दिक् और काल मन द्वारा कल्पित हैं। इसलिए, मन ही बंधन का कारण है, और पुरुष को इस मनोवृत्ति को त्यागना चाहिए।"


इस प्रकार, दिक् और काल के परस्पर संबंध को समझना ब्रह्मांडीय समझ और आत्मा की वास्तविकता के प्रति जागरूकता की ओर एक कदम है। दिक् और काल के परे जाकर ही आत्म साक्षात्कार होता है ।

रविवार, 25 फ़रवरी 2024

प्राचीन भारतीय इंजीनियरिंग ग्रन्थ

प्राचीन भारतीय इंजीनियरिंग ग्रन्थ :  
विश्व के सबसे पहले तकनीकी ग्रंथ विश्वकर्मीय ग्रंथ ही माने गए हैं। विश्वकर्मीयम ग्रंथ इनमें बहुत प्राचीन माना गया है, जिसमें न केवल वास्तुविद्या, बल्कि रथादि वाहन व रत्नों पर विमर्श है। विश्वकर्माप्रकाश, जिसे वास्तुतंत्र भी कहा गया है, विश्वकर्मा के मतों का जीवंत ग्रंथ है। इसमें मानव और देववास्तु विद्या को गणित के कई सूत्रों के साथ बताया गया है, ये सब प्रामाणिक और प्रासंगिक हैं। विश्वकर्मा प्रकाश के अध्यायों के नाम हैं- भूमिलक्षण, गृह्यादिलक्षण, मुहुर्त, गृहविचार, पदविन्यास, प्रासादलक्षण, द्वारलक्षण, जलाशयविचार, वृक्ष, गृहप्रवेश, दुर्ग, शाल्योद्धार, गृहवेध।
ग्रन्थ अपराजितपृच्छा में अपराजित के प्रश्नों पर विश्वकर्मा द्वारा दिए उत्तर लगभग साढ़े सात हज़ार श्लोकों में दिए गए हैं। संयोग से यह ग्रंथ 239 सूत्रों तक ही मिल पाया है। कहा जाता है कि इस ग्रन्थ में जल पर चल सकने योग्य खड़ाऊ तैयार करने का वर्णन है ।
शिल्पशास्त्र में लम्बाई मापने कि लिये सब से छोटा मापदण्ड ‘पारामणु’ था जो आधुनिक इंच के 1/349525 भाग के बराबर है। यह मापदण्ड न्याय विशेषिका के ‘त्रास्रेणु’ (अन्धेरे कमरे में आने वाली सूर्य किरण की रौशनी में दिखने वाला अति सूक्षम कण) के बराबर था।  वराहमिहिर के अनुसार 86 त्रास्रेणु ऐक उंगली के बराबर (ऐक इंच का तीन चौथाई भाग) होते हैं। 64 त्रास्रेणु ऐक बाल के बराबर मोटे होते हैं।
मानसार शिल्पशास्त्र शिल्पशास्त्र का प्राचीन ग्रन्थ है जिसके रचयिता मानसार हैं। इसके 43 वें अध्याय में ऐसे अनेक रथों का वर्णन है। जो वायुवेग से चल कर लक्ष्य तक पहुँचते थे। उनमें बैठा व्यक्ति बिना अधिक समय गवाँए गंतव्य तक पहुँच जाता था। मानसर शिल्पशास्त्र ब्रह्मा की स्तुति से आरम्भ होता है जो ब्रह्माण्द के निर्माता हैं। यह ग्रन्थ शिव के तीसरे नेत्र के खुलने पर समाप्त होता है। इसमें लगभग ७० अध्याय हैं जिनमें से प्रथम आठ अध्यायों को एक भाग में रखा गया है। आगे के दस अध्याय दूसरा समूह बनाते हैं। इसके बाद मानसार का केन्द्रीय भाग आता है। अध्याय १९ से अध्याय ३० में एकमंजिला भवन से लेकर १२ मंजिला भवन का वर्णन  करते हैं। अध्याय ३१ से अध्याय ५० में वास्तुशिलप (आर्किटेक्चर) की चर्चा है। इसके बाद मूर्तिकला की चर्चा आती है जो अध्याय ५१ से अध्याय ७० तक की गयी है। अध्याय ५१ से अध्याय ७० की सामग्री को मोटे तौर पर दो भागों में बाँटा जा सकता है- अध्याय ५१ से अध्याय ६५ तक युद्ध अस्त्र शस्त्र निर्माण का एक समूह है तथा अध्याय ६६ से अध्याय ७० तक धातुकर्म का दूसरा समूह।
मयमतम् के ३६ अध्यायों के नाम इस प्रकर हैं-
संग्रहाध्याय, वास्तुप्रकार, भूपरीक्षा, भूपरिग्रह, मनोपकरण, दिक्-परिच्छेद, पाद-देवता-विन्यास, बालिकर्मविधान, ग्रामविन्यास, नगरविधान, भू-लम्ब-विधान, गर्भन्यासविधान, उपपित-विधान, अधिष्ठान विधान, पाद-प्रमान-द्रव्य-संग्रह, प्रस्तर प्रकरण, संधिकर्मविधान, शिखर-करण-विधान समाप्ति-विधान, एक-भूमि-विधान, द्वि-भूमि-विधान, त्रि-भूमि-विधान, बहु-भूमि-विधान, प्रकर-परिवार, गोपुर-विधान, मण्डप-विधान, शाला-विधान, गृहप्रवेश, राज-वेस्म-विधान, द्वार-विधान, यानाधिकार, यान-शयनाधिकार, लिंगलक्षण, पीठलक्षण, अनुकर्म-विधान, प्रतिमालक्षण।

प्राचीन भारतीय प्रमुख विश्वकर्मीय ग्रन्थ लगभग ३५० से भी अधिक उपलब्ध हैं । ये ग्रन्थ भारत में संस्कृत में ( अधिकतर हस्तलिखित ताड़पत्र में जीर्ण शीर्ण अवस्था में ) तथा यूरोप में अंग्रेजी में या जर्मन भाषा में छपे हुए उपलब्ध हैं  . इनमें से प्रमुख ग्रन्थ निम्नलिखित हैं: 

>>अपराजितपृच्छा (रचयिता : भुवनदेवाचार्य ; विश्वकर्मा और उनके पुत्र अपराजित के बीच वार्तालाप सिविल तथा मेकेनिकल इंजीनियरिंग के सिद्धांत )
>>ईशान-गुरुदेवपद्धति : चरखा , धुरी , पुली , पहिया आदि का निर्माण 
>>कामिकागम : मुख्यतः सामुद्रिक बड़े जहाज बनाने तथा नदी नौका परिवहन का वैज्ञानिक ग्रन्थ , इसमें कम्पास निर्माण चुम्बक सिधांत , द्रव बहाव यांत्रिकी , टरबाइन आदि का वर्णन है 
>>कर्णागम (इसमें वास्तु पर लगभग ४० अध्याय हैं। इसमें तालमान का बहुत ही वैज्ञानिक एवं पारिभाषिक विवेचन है।) 
>>मनुष्यालयचंद्रिका (कुल ७ अध्याय, २१० से अधिक श्लोक) : कांसा लकड़ी तथा लोहे का भवन निर्माण में प्रयोग , धातुओं को आपस में जोड़ने हेतु रिवेट निर्माण 
>>प्रासादमण्डन (कुल ८ अध्याय): महल वास्तुशिल्प का ग्रन्थ 
>>राजवल्लभ (कुल १४ अध्याय): सिक्के ढालने की मशीने तथा टकसाल पद्धति 
>>तंत्रसमुच्चय : यंत्रो की गणित तथा डिजाइन , इस ग्रन्थ में रॉकेट बनाने का वर्णन है
>>वास्तुसौख्यम् (कुल ९ अध्याय): आर्किटेक्चर का महान ग्रन्थ 
>>विश्वकर्मा प्रकाश (कुल १३ अध्याय, लगभग १३७४ श्लोक)
>>विश्वकर्मा वास्तुशास्त्र (कुल ८४ अध्याय)
>>सनत्कुमारवास्तुशास्त्र
>> शिल्पसन्हिता : आर्किटेक्चर का महान ग्रन्थ , इसमें श्री विश्वकर्मा द्वारा रचित एक ‘दिव्य-दृष्टि’ नामक यंत्र का जिक्र है । इस यंत्र से राजभवन में बैठकर भी युद्ध-मैदान के दृश्य देखे जा सकते थे। यही यंत्र आजकल दूरदर्शन (टेलीविजन) कहलाता है। शिल्प संहिता में विश्वकर्मा निर्मित ‘दूरवीक्षण-यंत्र’ का वर्णन किया गया है।
>> राजाभोज की ‘समरांगण सूत्रधार’ (1100 ईस्वी) में कई याँत्रिक खोजो का वर्णन है जैसे कि चक्री (पुल्ली), लिवर, ब्रिज, छज्जे (केन्टीलिवर) आदि।  कुल ८४ अध्याय, ८००० से अधिक श्लोक
>> पातञ्जली ऋषि ने लोहशास्त्र ग्रन्थ में धातुओं के प्रयोग से कई प्रकार के रसायन, लवण, और लेप बनाने के निर्देश दिये हैं। धातुओं के निरीक्षण, सफाई तथा निकालने के बारे में भी निर्देश हैं। स्वर्ण तथा पलेटिनिम को पिघलाने के लिये ‘अकुआ रेगिना’ तरह का घोल नाइटरिक एसिड तथा हाइड्रोक्लोरिक एसिड के मिश्रण से तैय्यार किया जाता था।
>>वास्तुमण्डन
>>मयशास्त्र : (भित्ति सजाना) 
>>बिम्बमान : (अजंता एलोरा जैसी अमिट दीवार चित्रकला की पद्धति )
>>शुक्रनीति (प्रतिमा, मूर्ति या विग्रह निर्माण)
>>सुप्रभेदगान : पुल बनाने के सिधांत एवं पुलों की संरचना 
>>आगम (इनमें भी शिल्प की चर्चा है।)
>>प्रतिमालक्षणविधानम् : मूर्तिकला 
>>गार्गेयम् : बाँध बनाने के तरीके , नहरें एवं सिंचाई कला 
>>मानसार शिल्पशास्त्र (कुल ७० अध्याय; ५१०० से अधिक श्लोक; कास्टिंग, मोल्डिंग, कार्विंग, पॉलिशिंग, तथा कला एवं हस्तशिल्प निर्माण, युद्ध अस्त्र शस्त्र निर्माण , धातुकर्म  के अनेकों अध्याय) 
>>अत्रियम् : राजपथ तथा ग्रामपथ निर्माण , सराय धर्मशाला निर्माण , घोड़ों हाथियों ऊंटों के स्थान के निर्माण , तालाब निर्माण 
>>प्रतिमा मान लक्षणम् (इसमें टूटी हुई मूर्तियों को सुधारने आदि पर अध्याय है।)
>>दशतल न्याग्रोध परिमण्डल : दस मंजिल भवनों तथा जमीन के अन्दर दस मंजिल तहखानो के निर्माण , सुरंगों के निर्माण का वर्णन 
>>शम्भुद्भाषित प्रतिमालक्षण विवरणम् : मूर्तिकला 
>>मयमतम् (मयासुर द्वारा रचित, कुल ३६ अध्याय, ३३०० से अधिक श्लोक) : राजधानी निर्माण , टाउन प्लानिंग , नगर जल प्रदाय , नगर महल सड़क कुये बावड़ी नहर , विमान विद्या , खगोल विद्या कलेंडर , धातुकर्म , खदान , जहाज निर्माण , मौसम विज्ञान , जल शक्ति , वायु शक्ति , सूर्य सिधान्त आदि 
>>बृहत्संहिता (अध्याय ५३-६०, ७७, ७९, ८६)निर्माण 
>>शिल्परत्नम् (इसके पूर्वभाग में 46 अध्याय कला तथा भवन/नगर-निर्माण पर हैं। उत्तरभाग में ३५ अध्याय मूर्तिकला आदि पर हैं।)
>>युक्तिकल्पतरु (आभूषण-कला सहित विविध कलाएँ)
>>शिल्पकलादर्शनम्
>>वास्तुकर्मप्रकाशम् : खिडकी एवं दरवाजा आदि निर्माण  
>>कश्यपशिल्प (कुल ८४ अध्याय तथा ३३०० से अधिक श्लोक) : पहिया तथा रथ निर्माण , कृतिम झील निर्माण, बिना पहिये के वाहनों का निर्माण (स्लेज गाड़ी ) , 
>>अलंकारशास्त्र : स्वर्ण तथा रजत शुद्धिकरण , परीक्षण व आभूषण निर्माण
>>चित्रकल्प (आभूषण)
>>चित्रकर्मशास्त्र
>>मयशिल्पशास्त्र (तमिल में)
>>विश्वकर्मा शिल्प (स्तम्भों पर कलाकारी, काष्ठकला)
>>अगत्स्य (काष्ठ आधारित कलाएँ एवं शिल्प)
>>मण्डन शिल्पशास्त्र (दीपक आदि)
>>रत्नशास्त्र (मोती, आभूषण आदि)
>>रत्नपरीक्षा (आभूषण)
>>रत्नसंग्रह (आभूषण)
>>लघुरत्नपरीक्षा (आभूषण आदि)
>>मणिमहात्म्य (lapidary)
>>अगस्तिमत (lapidary crafts)
>>नलपाक (भोजनालय निर्माण , पात्र कलाएँ)
>>पाकदर्पण (भोजनालय निर्माण , पात्र कलाएँ)
>>पाकार्नव (भोजनालय निर्माण, पात्र कलाएँ)
>>कुट्टनीमतम् (टेक्सटाइल मशीने , वस्त्र कलाएँ)
>>कादम्बरी (वस्त्र कला तथा शिल्प पर अध्याय हैं)
>>समयमात्रिका (वस्त्रकलाएँ)
>>यन्त्रकोश (संगीत के यंत्र )
>>संगीतरत्नाकर (संगीत से सम्बन्धित शिल्प)
>>चिलपटिकारम् ( दूसरी शताब्दी में रचित तमिल ग्रन्थ जिसमें संगीत यंत्रों पर अध्याय हैं)
>>मानसोल्लास (संगीत यन्त्रों से सम्बन्धित कला एवं शिल्प,पाकशास्त्र, वस्त्र, सज्जा आदि)
>>वास्तुविद्या (मूर्तिकला, चित्रकला, तथा शिल्प)
>> भारद्वाज रचित वैमानिक शास्त्र : इसमें ५२ प्रकार के विमानों का सचित्र निर्माण दिया है 
>>उपवन विनोद (उद्यान, उपवन भवन निर्माण, घर में लगाये जाने वाले पादप आदि से सम्बन्धित शिल्प)
>>वास्तुसूत्र (संस्कृत में शिल्पशास्त्र का सबसे प्राचीन ग्रन्थ; ६ अध्याय; ) 
>> नागार्जुन द्वारा रचित रस रत्नाकर, रसेन्द्र मंगल आदि ग्रन्थ   : पारा धातु का शुद्धिकरण व उपयोग , रसायनों का प्रयोग रंगाई, टेनिंग, साबुन निर्माण, सीमेन्ट निर्माण, तथा दर्पण निर्माण , केलसीनेशन, डिस्टिलेशन, स्बलीमेशन, स्टीमिंग, फिक्सेशन, तथा बिना गर्मी के हल्के इस्पात निर्माण , कई प्रकार के खनिज लवण, चूर्ण और रसायन तैय्यार किये जाने की विधियाँ ।  
>> अगस्त्य द्वारा रचित अगस्त्य संहिता : विद्युत् कर्म , बैटरी निर्माण

शनिवार, 13 मई 2023

पाई

आपस्तम्भ सूत्र , जिसका रचना काल  150 BCE माना जाता है , में एक श्लोक है - 
गोपीभाग्यम ध्रुवात  
श्रंगिशोदधिसंधिग् 
खलजीवित  खाताब 
गलहालारसंधर

इन पंक्तियों में कृष्ण और शंकर  की स्तुति की गयी है पर वैदिक गणित के अनुसार यह कूट भाषा में पाई PI का मान है और यह मान दशमलव के बत्तीसवे स्थान तक है 
कूट भाषा में -
क ,ट, प तथा य  = 1
ख ,ठ , फ ,तथा र =2
ग,ड,ब,  तथा ल  =3
घ,ढ, भ तथा व =4
ड.,ण, म तथा श =5
च त ष =6
छ थ स  =7
ज द ह =8
झ ध =9
क्ष=0
इस कूट भाषा में लिखे श्लोक को  डिकोड करने पर पाई का मान 
3.1415926535897932384626433832792 
प्राप्त होता है । 
आर्यभट्ट (500 AD) ने अपने निम्नलिखित सूत्र में जनसामान्य के लिए पाई का मान दशमलव के  5 अंको तक शुद्ध बताया है -

चतुराधिकं शतमष्टगुणं द्वाषष्टिस्तथा सहस्त्राणाम्।
अयुतद्वयस्य विष्कम्भस्य आसन्नौ वृत्तपरिणाहः॥
-आर्यभट्ट
 (100+4)*8+62000/20000=3.14159) 

वराहमिहिर ने पाई का मान 355/113 = 3.14159292 लिया है ।

आज विश्व पाई दिवस है ।

मैग्नेटिक मोनोपोल

 

एकल चुम्बकीय ध्रुव (मैग्नेटिक मोनोपोल) बदल देगा दुनिया !!!

 

विज्ञान के सामान्य ज्ञान से हम यह जानते हैं कि किसी भी चुम्बक में दो ध्रुव होते हैं : उत्तर ध्रुव और दक्षिण ध्रुव .

यदि हम किसी भी चुम्बक को तोड़ें तो दो ध्रुव उत्पन्न हो जायेंगे , और तोड़ने पर दो और ध्रुव उत्पन्न हो जायेंगे ...... इसी प्रकार प्रक्रम आगे चलता रहेगा . अगर हम चुम्बक को परमाणु के साइज़ का भी तोड़ दें तब भी उसमे दो ध्रुव होंगे . अर्थात सामान्यतः अकेला चुम्बकीय उत्तर ध्रुव या अकेला चुम्बकीय दक्षिण ध्रुव   प्राप्त करना असंभव है .

 


 

 



विद्युत् और चुम्बकत्व एक दूसरे में मिले हुए है और एक दूसरे में परिवर्तनशील है . सन 1820 में वैज्ञानिक ओर्स्टेड ने अपने प्रायोगिक निष्कर्ष से बताया की यदि किसी तार से विद्युत् धारा प्रवाहित हो तो उसके चारों और  चुम्बकीय क्षेत्र  बन जाता है .

सन 1831 में वैज्ञानिक फैराडे ने विद्युत् चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धांत प्रस्तुत कर बताया कि यदि किसी क्वाइल पर चुम्बकीय क्षेत्र में समय के साथ परिवर्तन किया जाए तो उसमे विद्युत धारा उत्पन्न हो जायेगी .




अर्थात हम विद्युत् को चुम्बकत्व में और चुम्बकत्व को विद्युत् में परिवर्तित कर सकते है . विद्युत्-चुम्बकत्व के मेक्सवेल समीकरणों से हमको विद्युत् और चुम्बकत्व की सममिति का पता चलता है . विधुत का मूलभूत गुण है आवेश , जो कि दो प्रकार का होता है – धनात्मक व ऋणात्मक . धनात्मक व ऋणात्मक आवेश को प्रथक प्रथक किया जा सकता है . फिर चुम्बक के उत्तर और दक्षिण ध्रुवो को प्रथक प्रथक क्यों नहीं किया जा सकता ? इस प्रश्न का उत्तर देना भौतिक वैज्ञानिकों के लिए भी कठिन है .

किन्तु एकल चुम्बकीय ध्रुव भी हो सकता है , इस सिद्धांत को 1931 में जन्म देने वाले वैज्ञानिक थे पॉल डिराक . डिराक कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में कार्यरत एक अंग्रेज वैज्ञानिक व गणितज्ञ थे . इनको 1933 में भौतिक विज्ञान का नोबल पुरस्कार मिला था और बाद में अमेरिका की फ्लोरिडा यूनिवर्सिटी में कार्य करने लगे थे . पॉल डिराक ने क्वांटम यांत्रिकी के क्षेत्र में अभूतपूर्व कार्य किया . उन्होंने विद्युत् आवेशों की क्वांटीकरण गणनाओं में एक सूत्र निकाला जिसे डिराक समीकरण कहा जाता है . इस समीकरण के अनुसार कुछ क्वांटम परिस्थितियों में एकल चुम्बकीय ध्रुव संभव है . 


 

आधुनिक अन्तरिक्ष वैज्ञानिक एवं खगोल भौतिकशास्त्री मानते है कि महा एकीकृत सिद्धांत (Grand Unified Theory) के अनुसार महाविस्फोट (बिग बैंग) के तुरंत बाद जब ब्रह्माण्ड की आयु एक सेकंड से भी कम थी तब एकल चुम्बकीय ध्रुव बने थे . अगर एकल चुम्बकीय ध्रुव का वास्तव में अस्तित्व था तो क्या इनको प्रयोगशाला में बनाया जा सकता है ? डिराक की गणनाये बताती हैं कि चुम्बकीय आवेश का क्वान्टा विद्युत् आवेश के क्वान्टा से 137/2 गुना होगा और इसका द्रव्यमान 1000 प्रोटोन या 20 लाख इलेक्ट्रान के बराबर होगा . अतः इनसे बने परमाणु और पदार्थ अति उच्च घनत्व , शक्ति और भार के होंगे .   

अनेक देशों में प्रयोगशालाओं में एकल चुम्बकीय ध्रुव बनाने के प्रयोग चल रहें हैं . इनमे फ़िनलैंड की आल्टो यूनिवर्सिटी में डेविड हॉल एवं उनके सहयोगियों ने अपना दावा प्रस्तुत किया है . प्रयोगशालाओं में एकल चुम्बकीय ध्रुव बनाने के लिए दो तकनीकियों का उपयोग होता है . पदार्थ को परम शून्य तापमान के निकट रख कर चुम्बकित करना , अन्तरिक्ष किरणों या फिर कण त्वरकों का उपयोग कर उच्च आवृत्ति उच्च उर्जा के कणों का निर्माण कर मोनोपोल प्रथक करना .

 

 अगर एकल चुम्बकीय ध्रुव बनाने में हम सफल हो जाए तो तकनीकी में इनका क्या उपयोग किया जा सकता है ? संभव है कि एकल चुम्बकीय ध्रुव हमारी दुनिया बदल दे !

ऐसा अनुमान किया जाता है कि एकल चुम्बकीय ध्रुव की सहायता से उर्जा दक्ष विद्युत् मोटरें व डीसी ट्रांसफर्मर, उच्च ताप सुपर कंडक्टर , उच्च घनत्व के अति- प्रबलित फाईबर पदार्थ , उच्च शक्ति की विद्युत् संग्रहण इकाई, सुपर फ़ास्ट कम्प्यूटर, सिंकोट्रओंन  आदि  बनाये जा सकते है . इनका उपयोग ब्लेक होल या डार्क मैटर ढूँढने में भी किया जा सकता है .






सामान्य ताप पर मोनोपोल सुपर कंडक्टर जैसा बर्ताव करेंगे इसलिए इनसे सुपर कंडक्टर तार , मोटरे , ट्रांसफार्मर , केबल आदि बनाये जा सकेंगे जिनमे विद्युत् उर्जा की हानि नहीं होगी .

मोनोपोल से बनाये गए इंटीग्रेटेड सर्किट वर्तमान सर्किट से 10 लाख गुना जादा स्पीड से चलेंगे अतः इनसे सुपर फ़ास्ट कंप्यूटर बनाये जा सकते है . इनको प्रोटोन कंप्यूटर कहा जाएगा .

एकल चुम्बकीय ध्रुवों की सहायता से मेगावाट क्षमता में विद्युत् उर्जा को लम्बे समय तक स्टोर किया जा सकेगा .





मोनोपोल एक निश्चित परिस्थिति में गामा किरणों का उत्सर्जन भी कर सकते है . इनसे उच्च आवृत्ति के रेडिओ ट्रांसमीटर व रिसीवर भी बनाए जा सकेंगे .

देखना है कि एकल चुम्बकीय ध्रुव बनाने में कब पूर्ण सफलता मिलती है .

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