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सोमवार, 3 फ़रवरी 2025
चेतना और क्वांटम यांत्रिकी
रविवार, 8 दिसंबर 2024
क्वांटम फील्ड थ्योरी" और भारतीय तत्वज्ञान
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI)
बुधवार, 27 नवंबर 2024
Space and Time दिक् और काल
Space and Time
दिक् और काल
विज्ञान में स्पेस और टाइम का कॉन्सेप्ट लगभग 100 वर्ष पूर्व से आया है , किंतु भारतीय दर्शन में यह हजारों वर्षों पूर्व विकसित हो चुका था । पुराणों में कहा गया है - दिक् च कालश्च शक्त्योर्या जगतः कारणं स्मृतम्।"
अर्थात "दिक् और काल दोनों ही शक्ति के रूप में जगत के कारण माने गए हैं।"
यह सूत्र यह बताता है कि दिक् और काल शक्ति के दो रूप हैं, जिनसे समस्त जगत का निर्माण होता है।
उपनिषदों, पुराणों, महाभारत आदि के श्लोकों और सूत्रों से यह स्पष्ट होता है कि दिक् और काल को केवल भौतिक आयाम के रूप में नहीं बल्कि ब्रह्मांड की मूलभूत शक्तियों के रूप में देखा गया है, जिनके प्रभाव में सारा जगत है और जिनसे आत्मा को पार जाना चाहिए।
उपनिषदों में दिक् (अर्थात् "स्पेस") और काल (अर्थात् "समय") को भौतिक जगत के महत्वपूर्ण आयामों के रूप में देखा गया है। दोनों की अवधारणा ब्रह्मांड की संरचना और जीवन की वास्तविकता को समझने के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है। इनके परस्पर संबंध को समझना आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी महत्वपूर्ण है।
1. दिक् (स्पेस): उपनिषदों के अनुसार, दिक् सभी दिशाओं को इंगित करता है, जिससे यह संपूर्ण ब्रह्मांड का विस्तार या व्याप्ति दर्शाता है। यह किसी एक विशेष दिशा तक सीमित न होकर संपूर्ण जगत में व्याप्त है और सभी वस्तुओं के स्थान और स्थिति को दर्शाता है। यह स्थानिक आयाम (spatial dimension) का प्रतिनिधित्व करता है।
2. काल (समय): काल को परिवर्तन या घटनाओं के क्रम के रूप में देखा गया है। यह निरंतर गतिशील है और इसे किसी बाहरी वस्तु या घटना द्वारा नियंत्रित नहीं किया जा सकता। उपनिषदों में समय को चिरंतन या अनंत कहा गया है। इसे मापा नहीं जा सकता और यह सभी घटनाओं और परिवर्तनों का साक्षी होता है।
"कालः स्वभावो नियतिर्यदृच्छा, भूतानि योनिः पुरुष इति चिन्त्या।
संयोग एषां न तु आत्मभावाद्, आत्मा ह्यनाश्रयममृतं स्वतन्त्रः॥"(श्वेताश्वतर उपनिषद् 1.2)
अर्थात -
"समय (काल), स्वभाव, नियति (भाग्य), संयोग, और पुरुष इन तत्वों को ब्रह्मांड के कारणों के रूप में विचार किया गया है। लेकिन ये सब आत्मा का स्वभाव नहीं है, आत्मा इनसे स्वतंत्र, अमर और स्वनियंत्रित है।"
काल का उल्लेख विशेष रूप से गीता के अध्याय 11, श्लोक 32 में मिलता है:
"कालोऽस्मि लोकक्षयकृत् प्रवृद्धो लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः।" अर्थात- "मैं (श्रीकृष्ण) समय हूँ, जो संपूर्ण लोकों का संहार करने वाला हूँ और यहाँ सब कुछ नष्ट करने के लिए प्रवृत्त हुआ हूँ।"
महाभारत में एक स्थान पर कहा गया है-
"कालः पचति भूतानि सर्वाण्येव सह प्रभुः।
कालः संहरते सर्वं कालो हि दुरतिक्रमः॥"
अर्थात- "समय (काल) सभी भूतों को पकाता है और संपूर्ण संसार को संहार करता है। समय को कोई पार नहीं कर सकता।"
3. दिक् और काल का परस्पर संबंध: दिक् और काल के बीच का संबंध अत्यधिक महत्वपूर्ण है। ये दोनों मिलकर भौतिक जगत की संरचना का निर्माण करते हैं। समय के बिना दिशा का कोई महत्व नहीं है, क्योंकि समय ही घटनाओं को क्रमबद्ध करता है। इसी प्रकार, दिक् के बिना समय की माप भी संभव नहीं है, क्योंकि दिक् का निर्धारण स्थान से होता है, जिससे घटनाओं का स्थान-काल संबंध स्थापित होता है। उपनिषदों में यह भी कहा गया है कि दिक् और काल दोनों ही माया का हिस्सा हैं, जो वास्तविकता का बोध कराते हैं लेकिन स्वयं अपार और अनन्त हैं।
प्रकृतिः पंचभूतानि ग्रहा लोकाः स्वरास्तथा ।
दिशः कालश्च सर्वेषां सदा कुर्वन्तु मंगलम् ।।
अर्थ: प्रकृति पांच तत्वों अर्थात् अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी और अंतरिक्ष के संयोजन से बनी है. ये पांच तत्व, सभी ग्रह और लोक, संगीत के सात स्वर, दिक और काल हमारा सदा मंगल करें.
4. आध्यात्मिक दृष्टिकोण: उपनिषदों के अनुसार, जब कोई व्यक्ति आत्म-ज्ञान प्राप्त करता है, तो वह दिक् और काल की सीमाओं से परे चला जाता है। उस अवस्था में, वह आत्मा को शाश्वत और सर्वव्यापी (अखंड और अनंत) रूप में देखता है, जो किसी भी स्थान और समय के बंधन से मुक्त होती है।
योग वाशिष्ठ का सूत्र है -चित्तकल्पितमेवेदं दिक्कालाद्यन्यथागतम्।
तस्माच्चित्तमयो बन्धः पुमांस्येनं विवर्जये ।।
अर्थात- "दिक् और काल मन द्वारा कल्पित हैं। इसलिए, मन ही बंधन का कारण है, और पुरुष को इस मनोवृत्ति को त्यागना चाहिए।"
इस प्रकार, दिक् और काल के परस्पर संबंध को समझना ब्रह्मांडीय समझ और आत्मा की वास्तविकता के प्रति जागरूकता की ओर एक कदम है। दिक् और काल के परे जाकर ही आत्म साक्षात्कार होता है ।
रविवार, 25 फ़रवरी 2024
प्राचीन भारतीय इंजीनियरिंग ग्रन्थ
मंगलवार, 20 फ़रवरी 2024
शनिवार, 13 मई 2023
पाई
मैग्नेटिक मोनोपोल
विज्ञान के सामान्य
ज्ञान से हम यह जानते हैं कि किसी भी चुम्बक में दो ध्रुव होते हैं : उत्तर ध्रुव
और दक्षिण ध्रुव .
यदि हम किसी भी चुम्बक को तोड़ें तो दो ध्रुव उत्पन्न हो जायेंगे , और तोड़ने पर
दो और ध्रुव उत्पन्न हो जायेंगे ...... इसी प्रकार प्रक्रम आगे चलता रहेगा . अगर
हम चुम्बक को परमाणु के साइज़ का भी तोड़ दें तब भी उसमे दो ध्रुव होंगे . अर्थात सामान्यतः
अकेला चुम्बकीय उत्तर ध्रुव या अकेला चुम्बकीय दक्षिण ध्रुव प्राप्त करना असंभव है .
विद्युत् और
चुम्बकत्व एक दूसरे में मिले हुए है और एक दूसरे में परिवर्तनशील है . सन 1820 में वैज्ञानिक ओर्स्टेड ने
अपने प्रायोगिक निष्कर्ष से बताया की यदि किसी तार से विद्युत् धारा प्रवाहित हो
तो उसके चारों और चुम्बकीय क्षेत्र बन जाता है .
किन्तु एकल चुम्बकीय ध्रुव भी हो सकता है , इस सिद्धांत को 1931 में जन्म देने वाले वैज्ञानिक थे पॉल डिराक . डिराक कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में कार्यरत एक अंग्रेज वैज्ञानिक व गणितज्ञ थे . इनको 1933 में भौतिक विज्ञान का नोबल पुरस्कार मिला था और बाद में अमेरिका की फ्लोरिडा यूनिवर्सिटी में कार्य करने लगे थे . पॉल डिराक ने क्वांटम यांत्रिकी के क्षेत्र में अभूतपूर्व कार्य किया . उन्होंने विद्युत् आवेशों की क्वांटीकरण गणनाओं में एक सूत्र निकाला जिसे डिराक समीकरण कहा जाता है . इस समीकरण के अनुसार कुछ क्वांटम परिस्थितियों में एकल चुम्बकीय ध्रुव संभव है .
आधुनिक अन्तरिक्ष
वैज्ञानिक एवं खगोल भौतिकशास्त्री मानते है कि महा एकीकृत सिद्धांत (Grand Unified Theory) के अनुसार महाविस्फोट (बिग बैंग) के तुरंत बाद जब ब्रह्माण्ड की आयु एक
सेकंड से भी कम थी तब एकल चुम्बकीय ध्रुव बने थे . अगर एकल चुम्बकीय ध्रुव का
वास्तव में अस्तित्व था तो क्या इनको प्रयोगशाला में बनाया जा सकता है ? डिराक की
गणनाये बताती हैं कि चुम्बकीय आवेश का क्वान्टा विद्युत् आवेश के क्वान्टा से 137/2 गुना होगा और इसका
द्रव्यमान 1000 प्रोटोन या 20 लाख इलेक्ट्रान के बराबर होगा . अतः इनसे बने परमाणु और पदार्थ अति उच्च
घनत्व , शक्ति और भार के होंगे .
अनेक देशों में
प्रयोगशालाओं में एकल चुम्बकीय ध्रुव बनाने के प्रयोग चल रहें हैं . इनमे फ़िनलैंड
की आल्टो यूनिवर्सिटी में डेविड हॉल एवं उनके सहयोगियों ने अपना दावा प्रस्तुत
किया है . प्रयोगशालाओं में एकल चुम्बकीय ध्रुव बनाने के लिए दो तकनीकियों का
उपयोग होता है . पदार्थ को परम शून्य तापमान के निकट रख कर चुम्बकित करना ,
अन्तरिक्ष किरणों या फिर कण त्वरकों का उपयोग कर उच्च आवृत्ति उच्च उर्जा के कणों
का निर्माण कर मोनोपोल प्रथक करना .
ऐसा अनुमान किया
जाता है कि एकल चुम्बकीय ध्रुव की सहायता से उर्जा दक्ष विद्युत् मोटरें व डीसी ट्रांसफर्मर,
उच्च ताप सुपर कंडक्टर , उच्च घनत्व के अति- प्रबलित फाईबर पदार्थ , उच्च शक्ति की
विद्युत् संग्रहण इकाई, सुपर फ़ास्ट कम्प्यूटर, सिंकोट्रओंन आदि बनाये जा सकते है . इनका उपयोग ब्लेक होल या
डार्क मैटर ढूँढने में भी किया जा सकता है .
सामान्य ताप पर
मोनोपोल सुपर कंडक्टर जैसा बर्ताव करेंगे इसलिए इनसे सुपर कंडक्टर तार , मोटरे ,
ट्रांसफार्मर , केबल आदि बनाये जा सकेंगे जिनमे विद्युत् उर्जा की हानि नहीं होगी
.
मोनोपोल से बनाये गए
इंटीग्रेटेड सर्किट वर्तमान सर्किट से 10 लाख गुना जादा स्पीड से चलेंगे अतः इनसे सुपर
फ़ास्ट कंप्यूटर बनाये जा सकते है . इनको प्रोटोन कंप्यूटर कहा जाएगा .
एकल चुम्बकीय ध्रुवों
की सहायता से मेगावाट क्षमता में विद्युत् उर्जा को लम्बे समय तक स्टोर किया जा
सकेगा .
मोनोपोल एक निश्चित
परिस्थिति में गामा किरणों का उत्सर्जन भी कर सकते है . इनसे उच्च आवृत्ति के रेडिओ
ट्रांसमीटर व रिसीवर भी बनाए जा सकेंगे .
देखना है कि एकल
चुम्बकीय ध्रुव बनाने में कब पूर्ण सफलता मिलती है .
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