शुक्रवार, 16 जून 2023

इंग्लैंड की रामायण

इंग्लैंड की रामायण -
हरि अनंत हरि कथा अनंता

फादर कामिल बुलके ने आपने शोध प्रबंध हेतु  300 रामायणों का संग्रह व अध्ययन किया था । भारत के अतिरिक्त जापान , इंडोनेशिया, श्रीलंका, कंबोडिया, ईरान, लाओस,थाईलैंड, रूस, तुर्कमेनिस्तान आदि में भी प्राचीन रामायण पाई जाती हैं । ग्रीक एवं रोमन पुराण कथाओं में रामकथा से मिलते जुलते आख्यान पाए जाते हैं । इंग्लैंड में भी प्राचीन रामायण पाई जाती है ।
इंग्लैंड में रोमन शासन 43 AD से पूर्व का इतिहास सही तरह से ज्ञात नही है । किंतु प्राचीन druid (द्रविड़) लोग वहां के मूल निवासी है । पुराणों में अंगुलदेश का वर्णन है जो कि बंद मुट्ठी अंगूठे के आकार का द्वीप है और वहां सर्वप्रथम स्कन्दनाभीय (scandavian) क्षत्रियो (scot) ने राज्य स्थापित किया । जिन्होंने शैलपुरी (salisbury) में सूर्य भगवान को समर्पित stonehenge का मंदिर बनवाया । आज भी उस प्राचीन druid धर्म के अनुयायी हज़ारो की संख्या में वहां रहते हैं । अंग्रेजी भाषा के शब्दों का संस्कृत मूल , प्राचीन 
इंग्लैंड में hadrian दीवाल के किलों में हाथी मोर के चित्र पाए जाना, उत्खनन में शिवलिंग और गणेश की प्रतिमा मिलना, वेस्टमिनिस्टर एब्बे की शिला आदि संकेत देती है कि इंग्लैंड में रोमन राज्य से पूर्व वैदिक संस्कृति थी । आज भी इंग्लैंड में भगवान राम के नाम पर अनेक शहर है जैसे  Ramsgate (राम घाट) , Ramsden (राम देन) , Ramford (राम किला) आदि । कई अंग्रेजों के नाम Ramsay (राम सहाय) होता है। 
इंग्लैंड के एक प्राचीन काव्य Celtic Psalter में प्राचीन किंग रिचर्ड की कहानी लैटिन भाषा मे मिलती है । हालांकि बाद में 12 शताब्दी में इंग्लैंड के अन्य राजाओं का नाम भी रिचर्ड हुआ और उन पर भी किताबे लिखी गयी । बाद की कहानियों में प्राचीन किंग रिचर्ड और 12 वी शताब्दी के किंग रिचर्ड the lion hearted की कहानियों को आपस में मिला दिया गया । फिर शेक्सपियर ने king richard पर प्ले लिखा जिसमे रिचर्ड तृतीय और रोबिन हुड की कहानियों को आपस में मिला दिया गया । 
मूल प्राचीन पुस्तक में काव्यात्मक वर्णित कथा संक्षेप में इस प्रकार है -
इंग्लैंड के महाप्रतापी राजा थे किंग रिचर्ड (किंग = सिंह, रिचर्ड = राम चन्द्र) जो कि सूर्यदेव के पुत्र अपोलो के वंशज और महान धनुर्धर थे । इनकी पत्नी का नाम रानी Jancy (=जानकी) था । ये अपने पिता की आज्ञा से  वनों में गए ,  जहाँ  Lancashire (लंकेश्वर) के क्रूर राजा, जो एक demon था ,  ने Jancy का अपहरण कर लिया और इटली के नजदीक एक  भूमध्यसागरीय द्वीप में ले गया । 
किंग रिचर्ड ने Germanic tribes के सेनापति कपि Hahnemann की सहायता से जल सेना बनाई और उस द्वीप पर troop of monkey की सेना से  आक्रमण किया । और demon को मार के अपनी पत्नी को मुक्त कराया । 

(विस्तृत अध्ययन हेतु - peter ackroyd की पुस्तक foundation the history of england देखिए)

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सप्तमातृका

सप्तमातृका

‘मातृका’ का मूल शब्द ‘मातृ’ है जिसका अर्थ है ‘माँ’। यह माना जाता है कि उनमें वह शक्ति है जो मातृ गुणों का प्रतीक है और इस ब्रह्मांड की सभी शक्तियों की रक्षक, प्रदाता और पालनकर्ता भी है। जैसे पृथ्वी की हर चीज सूर्य से अपनी स्रोत ऊर्जा प्राप्त करती है, वैसे ही ब्रह्माण्ड की सभी ऊर्जाएं अपनी शक्ति मातृकाओं से प्राप्त करती हैं। मातृकाओं की तंत्र-विद्या में एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है क्योंकि उनमें जन्मजात क्षमता है, जिस के फलस्वरूप वह स्वयं का प्रतिरूप बना सकती है और उनके प्रतिरूप भी अन्य शक्तियों और रूपों को जन्म दे सकते हैं। वह अपने सूक्ष्म रूप में हर जगह और हर चीज में है लेकिन यह मान्यता है कि वे अपने प्रकट रूप में ब्रह्मांड में उपस्थित है और आठ दिशाओं पर शासन करती है जो अनंत का भी प्रतीक है।

मार्कण्डेय पुराण में वर्णन मिलता है कि सप्तमातृकाओं की सहायता से चण्डिका देवी ने रक्तबीज का वध किया था। ये सात देवियां अपने पतियों के वाहन तथा आयुध के साथ यहां उपस्थित होती है ‘यस्य देवस्य यत्रूपं यथाभूषण वाहनम्’। ये सात देवियां ब्रह्माणी, वैष्णवी, माहेश्वरी, इन्द्राणी, कौमारीय, वाराही और नरसिंही है।

भारत में सप्तमातृकाओं की एकल व संयुक्त प्रतिमाएं मुख्यत: तीन रूपों में पायी जाती हैं-

1. स्थानक यानी खड़ी प्रतिमा,
2. आसनस्थ यानी बैठी हुई प्रतिमाएं,
3. नृत्यरत प्रतिमा।

वराह पुराण में कहा गया है कि मातृकायें आत्म ज्ञान हैं, जो अज्ञानता रूपी अंधकासुर के विरूद्ध युद्ध करती हैं। पुराणों में यह भी कहा गया है कि मातृकायें शरीर के मूल जीवंत अस्तित्व पर शासन करती हैं।

• ऋग्वेद में सात नदियों एवं सात स्वरों को माता कहा गया है। साथ ही वहाँ सप्त माताओं का उल्लेख भी है और कहा गया है कि उनकी देखरेख में सोम की तैयारी होती थी।
• मार्कण्डेय पुराण में वर्णन मिलता है कि युद्ध में चण्डिका की सहायता के लिए सप्तमातृकाएं उत्पन्न हुईं थीं। इन्हीं सप्तमातृकाओं की सहायता से देवी ने रक्तबीज का वध किया था।
• ईसा की पहली शताब्दी से मातृका पूजन का स्पष्ट उल्लेख मिलता है। वराहमिहिर के बृहत्संहिता मे एवं शूद्रक के मृच्छकटिकम् में मातृका पूजन का स्पष्ट उल्लेख मिलता है।
• स्कंदगुप्त के बिहार स्तंभलेख में मातृका पूजन उल्लेखित है।
• गुप्त शिलालेख के अनुसार ४२३ ई. में मालवा के विश्वकर्मन राजा के अमात्य मयूराक्ष ने मातृकाओं का एक मंदिर बनवाया था ।
• पांचवी सदी के गुप्तसम्राट प्रथम कुमारगुप्त के गंगाधर लेख में मातृका के मंदिर का उल्लेख मिलता है।
• चालुक्य एवं कदंब राजवंश सप्तमातृकाओं के उपासक थे।

चित्र - सरस्वती नदी कालीन (तथाकथित सिंधु घाटी सभ्यता ) सील , जिसमे पीपल के पत्ते पर श्रीकृष्ण , श्रीकृष्ण का श्रृंगी रूप तथा नीचे सप्त मातृकाएं
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शांतिबाई गोंड

माताजी शांतिबाई गोंड बड़ी आध्यात्मिक महिला है। औपचारिक शिक्षा ना होते हुए भी इनको रामायण महाभारत पौराणिक कथाओं का बड़ा ज्ञान है। वे अपना पूरा समय मंडला जिले के काला पहाड़ पर स्थित एक छोटी झोंपड़ी में एकाकी बिताती हैं जिसमे एक ही कमरा है और वह आदिदेवों का मंदिर भी है ।
अर्धमिश्रित गोंडी व हिंदी भाषा मे उन्होंने समझाया कि - पेन का मतलब देव । जैसे बड़ा पेन, बूढ़ा पेन, परसा पेन । ये सब प्रकृति की देव शक्तियां है जो किसी समाज के पहले पूर्वज के रूप में होती है और हमेशा उस परिवार के साथ रहती हैं व रक्षा करती हैं ।
झोपड़ी के अंदर ईश्वर के स्थान पर ज्योति जल रही थी व अनेक चिमटे गड़े थे , उन्होंने एक चिमटे से मेरे सर पर स्पर्श किया और बोली (जिसका अर्थ है) -
हे परसा पेन तू सल्लां और गांगरा शक्ति है ,
तू सभी जीव जगत की पालन शक्ति है ,
तू हमारे कर्म , कर्तव्य और कार्य की शक्ति है ,
तू हमारी शारीरिक , मानसिक और बौद्धिक शक्ति है ,
तू धन और ऋण शक्ति है ,
तू दाऊ और दाई शक्ति है ,
तू हमारी मनन , चिंतन , श्रवण तथा निगाह शक्ति है .
तू इस पोकराल (ब्रम्हाण्ड) की सर्वोच्च शक्ति है .
नाम बोलो - 
हमने कहा - अशोक 
वे बोली- परसापेन अशोक को स्वस्थ रखे , रक्षा करे , सारी परेशानियां दूर हों । लोगो की भलाई करो । जय नर्मदा माई , जय भोलेनाथ और इन्होंने हमको भभूत दी । हमने माताजी के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लिया । (कुछ पैसा चढ़ाना चाहा मगर उन्होंने नही लिया ) ll जय सेवा ।l

नवागुंजारा

भगवान नवागुंजारा Navagunjara :

यह कहानी महाभारत से है। अज्ञातवास के दौरान अर्जुन एक जंगल मे ध्यान योग कर रहे थे। तभी उनके सामने एक अजीब सा जीव आया जो नौ जीवों का मिश्रण था। वो तीन पैरों पर खड़ा था। उसका एक पैर  हाथी का था, दूसरा पैर चीता का औऱ तीसरा घोड़े का और चौथे पैर की जगह मनुष्य का हाथ था। उसका चेहरा मुर्गे का था औऱ गर्दन मोर की। उसका कूबड़ बैल का था, पीठ शेर को थी औऱ पूँछ सर्प की। अर्जुन ने जब उस जीव को अपने सामने देखा तो पहले तो वे भयभीत हो गए। उन्होंने तीर धनुष उठाया औऱ उस अजीब से जीव पर तान दिया। फिर उन्होंने उसे गौर से देखा तो उसमें मौजूद इंसानी हाथ को वो पहचान गए। उस हाथ मे एक कमल का फूल था। फिर उन्होंने और गौर से देखा तो उसमे मौजूद सभी जीवों को वो पहचान गए। फिर उन्होने धनुष किनारे रखा, घुटनों के बल उस जीव के सामने बैठ गए और बोले, नमस्ते! आपका अस्तित्व मेरी कल्पनाओं से परे हैं। आप मुझसे या मेरे द्वारा देखी सोची गई वस्तुओं से बिल्कुल अलग है, आप जरूर भगवान है। अचानक वो जीव भगवान विष्णु के रूप में बदल गया। ये भगवान विष्णु का नवागुँजारा स्वरूप है। भगवान जगन्नाथ के मंदिर में आप नवागुंजारा स्वरूप की तस्वीरे देख सकते हैं। ओडिसा में इनकी पूजा होती है।
आप सम्मानीय हैं क्योंकि आप मुझसे अलग है। आप मेरी सोच के परे हैं किंतु मेरी सोच सीमित है। ईश्वर उस स्वरूप में भी हो सकता है जिसके बारे में हम सोच नही सकते। यही भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म है । आप मुझसे भिन्न है इसलिए मैं आपका सम्मान करता हूँ , आप ईश्वर भी हो सकते हैं । 

This is indian culture. If You are different from me, you will be respectful , you must be a God.

बुधवार, 17 मई 2023

2000 साल पहले की कवियत्री की कविताएं : गाथा सप्तशती

2000 साल पहले की अज्ञात कवियत्री की कविताएं :
गाथा सप्तशती ( गाहा सत्तसई ) 

गाथा सप्तशती प्राकृत भाषा का ग्रंथ है । प्राकृत भाषा प्राचीन काल से 10 वी शताब्दी तक पूरे भारत मे जनसामान्य की भाषा हुआ करती थी । गाथा अर्थात छंद , सप्तशती अर्थात 700 । इसमें 700 छोटी छोटी कविताओं का संकलन होने पर इस कृति का नाम गाथा सप्तशती पड़ा । 
यह कब लिखी गयी इसमें विद्वानों के एक विचार नही है । किंतु राजा सालवाहन के दरबारी कवि हाल ने इसका संकलन किया । अर्थात इसका वर्तमान स्वरूप प्रथम शताब्दी ईसवी में आया । बाणभट्ट ने भी हर्षचरित में इसका जिक्र किया ।

इस ग्रंथ को पढ़ने से पता चलता है कि अधिकांश कविताएं किसी अज्ञात कवियत्री की लिखी हुई है । पुस्तक में केरल की नदियों , गुजरात , मानसरोवर, विंध्याचल, महाराष्ट्र के स्थानों आदि का जिक्र आता है । 
आधुनिक काल मे भारतीयों को गाथा सप्तशती का पता तब चला जब जर्मन कवि वेबर ने 1870 में इसकी 17 पांडुलिपियों को खोज निकाला । ये पांडुलिपियां तमिलनाडु बिहार राजस्थान महाराष्ट्र बंगाल गुजरात कश्मीर से प्राप्त की गई । आश्चर्यजनक रूप से इनमें 430 कविताएं सभी मे हूबहू मिली । वेबर ने 1870 में गाथा सप्तशती को जर्मन भाषा में प्रकाशित करवाया । 1956 में इसका मराठी अनुवाद प्रकाशित हुआ ।

इन कविताओं में 2000 साल पहले के लोक व्यवहार , राग रंग, मिलन वियोग , प्रेम काम , हास विलास, रीति रिवाज पर स्त्री के दृष्टिकोण पता चलता है । इन कविताओं में जाति प्रथा का कोई जिक्र नही है । उस समय के समाज मे स्त्री भावनाओं से रचित कविताएं गाई जाती थी और इन्हें राजाओं का आश्रय प्राप्त था ।

गाथा सप्तशती से कुछ कविताएं प्रस्तुत है ।
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आग -
निर्वासित के चूल्हे में 
और यज्ञशाला में 
एक जैसी ही जलती है ।
सब से
अपना व्यवहार समान रखो।
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मेरे उलझे बाल 
अभी सुलझे भी नही 
और तुम जाने की बात करते हो ।
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लौटेंगे प्रीतम परदेश से ...
मैं रूठ जाऊंगी ,
वह मनाएंगे ,
मैं रूठी रहूंगी ,
वे फिर मनाएंगे ,
मैं रूठी रहूंगी ।
क्या यह है मेरे भाग्य में ?
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प्रियतम,
मुझे मेरा जीवन प्रिय है तुमसे अधिक ।
तभी तो तुम्हारी हर बात मानती हूँ ।
क्योकि तुम बिन मेरा जीवन है ही नही ।
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कुत्ता मर गया है 
सास सोई है 
भैस चरने गयी है 
पति परदेश गया है ,
मेरे बारे में कौन किसको क्या बताएगा ?
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तुम्हारे अधरों का स्वाद यदि जानते ,
तो देवता समुद्र मंथन न करते ,
अमृत के लिए !!!
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नवरात्रि

नवरात्र ईश्वर के स्त्री रूप को समर्पित है। काली, लक्ष्मी और सरस्वती स्त्री-गुण के तीन आयामों के प्रतीक हैं। वे अस्तित्व के तीन मूल गुणों-तमस, रजस और सत्व के भी प्रतीक हैं। तमस का अर्थ है जड़ता। रजस का मतलब है सक्रियता और जोश। सत्व एक तरह से सीमाओं को तोड़कर विलीन होना है, पिघलकर समा जाना है। तीन खगोलीय पिंडों से हमारे शरीर की रचना का बहुत गहरा संबंध है-पृथ्वी, सूर्य और चंद्रमा। इन तीन गुणों को इन तीन पिंडों से भी जोड़ कर देखा जाता है। पृथ्वी माता को तमस माना गया है, सूर्य रजस है और चंद्रमा सत्व। 
नवरात्र के पहले तीन दिन तमस से जुड़े होते हैं। इसके बाद के दिन रजस से और नवरात्र के अंतिम दिन सत्व से जुड़े होते हैं। जो लोग शक्ति, अमरता या क्षमता की इच्छा रखते हैं, वे स्त्रैण के उन रूपों की आराधना करते हैं, जिन्हें तमस कहा जाता है, जैसे काली या धरती मां। जो लोग धन-दौलत, जोश और उत्साह, जीवन और भौतिक दुनिया की तमाम दूसरी सौगातों की इच्छा करते हैं, वे स्वाभाविक रूप से स्त्रैण के उस रूप की ओर आकर्षित होते हैं, जिसे लक्ष्मी या सूर्य के रूप में जाना जाता है। जो लोग ज्ञान, बोध चाहते हैं और नश्वर शरीर की सीमाओं के पार जाना चाहते हैं, वे स्त्रैण के सत्व रूप की आराधना करते हैं। सरस्वती या चंद्रमा उसका प्रतीक है। तमस पृथ्वी की प्रकृति है, जो सबको जन्म देने वाली है। हम जो समय गर्भ में बिताते हैं, वह समय तामसी प्रकृति का होता है। उस समय हम लगभग निष्क्रिय स्थिति में होते हुए भी विकसित हो रहे होते हैं। इसलिए तमस धरती और आपके जन्म की प्रकृति है। आप धरती पर बैठे हैं। आपको उसके साथ एकाकार होना सीखना चाहिए। वैसे भी आप उसका एक अंश हैं। जब वह चाहती है, एक शरीर के रूप में आपको अपने गर्भ से बाहर निकाल कर आपको जीवन दे देती है और जब वह चाहती है, उस शरीर को वापस अपने भीतर समा लेती है। इन तीनों आयामों में आप खुद को जिस तरह से लगाएंगे, वह आपके जीवन को एक दिशा देगा। अगर आप खुद को तमस की ओर लगाते हैं, तो आप एक तरीके से शक्तिशाली होंगे। अगर आप रजस पर ध्यान देते हैं, तो आप दूसरी तरह से शक्तिशाली होंगे। लेकिन अगर आप सत्व की ओर जाते हैं, तो आप बिलकुल अलग रूप में शक्तिशाली होंगे। लेकिन यदि आप इन सब के परे चले जाते हैं, तो बात शक्ति की नहीं रह जाएगी, फिर आप मोक्ष की ओर बढ़ेंगे।

 नवरात्र के बाद दसवां और आखिरी दिन विजयदशमी या दशहरा होता है। इसका अर्थ है कि आपने इन तीनों गुणों पर विजय पा ली है। आप हर एक में शामिल हुए, मगर आपने किसी में भी खुद को लगाया नहीं। आपने उन्हें जीत लिया। यही विजयदशमी है यानी विजय का दिन। 

स्त्री शक्ति की पूजा इस धरती पर पूजा का सबसे प्राचीन रूप है। सिर्फ भारत में नहीं, बल्कि पूरे यूरोप और अरब तथा अफ्रीका के ज्यादातर हिस्सों में स्त्री शक्ति की हमेशा पूजा की जाती थी। वहां देवियां होती थीं।  दुनिया में हर कहीं पूजा का सबसे बुनियादी रूप देवी पूजा या कहें स्त्री शक्ति की पूजा ही रही है। भारत इकलौती ऐसी संस्कृति है, जिसने अब भी उसे संभाल कर रखा है। हर गांव में एक देवी मंदिर जरूर होता है। और यही एक संस्कृति है, जहां आपको अपनी देवी बनाने की आजादी दी गई थी। इसलिए आप स्थानीय जरूरतों के मुताबिक अपनी जरूरतों के लिए अपनी देवी बना सकते थे। (जैसे  - खेरमाई , सिमसा , तारिणी , मनसा, शीतला आदि ) l प्राण-प्रतिष्ठा का विज्ञान इतना व्यापक था कि यह मान लिया जाता था कि हर गांव में कम से कम एक देवी मंदिर होगा जो उस स्थान के लिए जरूरी ऊर्जा उत्पन्न करेगा। 

नवरात्रि, जिसका अर्थ ही होता है नौ रातें। यह एक ऐसा पर्व होता है जिसका इंतजार लोग साल के गुजरने से पहले से ही करने लगते है। जिसकी प्रतिक्षा हर व्यक्ति को साल भर रहती है। यह हमारी श्रद्धा तपस्या और अध्यात्म की गंगा में बहने वाला पर्व होता है। 

सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्ति भूते सनातनि। 
गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोऽस्तु ते॥

बहुत जरूरी है जनसंख्या नियंत्रण कानून

बहुत जरूरी है जनसंख्या नियंत्रण कानून -

अनियंत्रित गति से बढ़ रही जनसंख्या देश के विकास को बाधित करने के साथ ही हमारे आम जन जीवन को भी दिन-प्रतिदिन प्रभावित कर रही है। विकास की कोई भी परियोजना वर्तमान जनसंख्या दर को ध्यान में रखकर बनायी जाती है, लेकिन अचानक जनसंख्या में इजाफा होने के कारण परियोजना का जमीनी धरातल पर साकार हो पाना मुश्किल हो जाता है। ये साफ तौर पर जाहिर है कि जैसे-जैसे भारत की जनसंख्या बढ़ेगी, वैसे-वैसे गरीबी का रूप भी विकराल होता जायेगा। महंगाई बढ़ती जायेगी और जीवन के अस्तित्व के लिए संघर्ष होना प्रारंभ हो जायेगा।
लोगों में जन-जागृति का अभाव होने के कारण तथा मज़हबी विचारों के कारण दस-बारह बच्चों की फौज खड़ी करने में वे कोई गुरेज नहीं करते है। एक पुत्र की कामना में अनेक पुत्रियां हों इसमें कोई गुरेज नहीं क्योकि ऐसे लोगो की धार्मिक मान्यता है कि वंश पुत्र से ही चलता है । इसलिए सबसे पहले उन्हें जनसंख्या वृद्धि के दुष्परिणामों के प्रति जागरूक करने की महती आवश्यकता है। यह समझने की जरूरत है कि जनसंख्या को बढ़ाकर हम अपने आने वाले कल को ही खतरे में डाल रहे हैं। वस्तुतः बढ़ती जनसंख्या के कारण भारी मात्रा में खाद्यान्न संकट उत्पन्न हो रहा है। जिसके कारण देश में भुखमरी, पानी व बिजली की समस्या, आवास की समस्या, अशिक्षा का दंश, चिकित्सा की बदइंतजामी व रोजगार के कम होते विकल्प इत्यादि प्रकार की समस्याओं से जूझना पड़ रहा है। 

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या 2024 तक चीन की भारी आबादी को पीछे छोड़कर काफी आगे निकल जायेगी। सन 2100 तक भारत दुनिया का सबसे बड़ी जनसंख्या वाला देश बन जायेगा। 

हमें समझना चाहिए कि बेहताशा बढ़ती जनसंख्या न केवल वर्तमान विकास क्रम को प्रभावित करती है, बल्कि अपने साथ भविष्य की कई चुनौतियां भी लेकर आती है। भूखों और नंगों की तादाद खड़ी करके हम खाद्यान्न संकट, पेयजल, आवास और शिक्षा का खतरा मोल ले रहे हैं। लोकतंत्र को भीड़तंत्र में तब्दील कर देश की गरीबी को बढ़ा रहे हैं। सालों पहले प्रतिपादित भूगोलवेत्ता माल्थस के जनसंख्या सिद्धांत के मुताबिक मानव जनसंख्या ज्यामितीय आधार पर बढ़ती है लेकिन वहीं, भोजन और प्राकृतिक संसाधन अंकगणितीय आधार पर बढ़ते हैं। यही वजह है कि जनसंख्या और संसाधनों के बीच का अंतर उत्पन्न हो जाता है। कुदरत इस अंतर को पाटने के लिए आपदाएं लाती है। कभी सूखा पड़ता है तो कभी बाढ़ इसकी मिसालें हैं। इसी तरह डार्विनवाद के प्रणेता चार्ल्स डार्विन के सिद्धांत के मुताबिक ''जीवन के लिए संघर्ष' लागू होता स्पष्ट नजर आ रहा है। सीमित जनसंख्या में हम बेहतर और अधिक संसाधनों के साथ आरामदायक जीवन जी सकते हैं, जबकि जनसंख्या वृद्धि के कारण यही आराम संघर्ष में परिवर्तित होकर शांति-सुकून को छीनने का काम करता है। 

आज देश की सभी समस्याओं की जड़ में जनसंख्या-विस्फोट है। विश्व के सबसे अधिक गरीब और भूखे लोग भारत में हैं। कुपोषण से मरने वाले बच्चों की संख्या भी हमारे देश में सबसे ज्यादा है। बेरोजगारी से देश के युवा परेशान हैं। युवा शक्ति में निरंतर तनाव बढ़ता जा रहा है जो देश में बढ़ते हुए अपराधों का एक सबसे बड़ा कारण है। बढ़ती हुई जनसंख्या चिंता का विषय है।

सरकार से उम्मीद है कि वह जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाये ।