सोमवार, 15 मई 2023

अनाहिता Anahita

अनाहिता Anahita 

अनाहिता का अर्थ होता है - किसी का अहित न करने वाली , निर्दोष , बेदाग , सुंदर 

देवी के 1008 नामों में एक नाम अनाहिता भी है 

सायरस मिस्त्री की दुर्घटनाग्रस्त हुई कार को चला रही महिला का नाम डॉ अनाहिता पंडोले था । मॉडल व टीवी ऐक्ट्रेस अनाहिता भूषण का नाम भी सुना होगा ।

400 ईसा पूर्व से देवी माँ के अनाहिता रूप में मंदिर ईरान में पाए जाते थे जहां पारसी उनकी उपासना सरस्वती के अवतार, नदी व जल की शक्ति के रूप में करते थे । 
633 से 661 ईसवी में ईरान पर हुए इस्लामी आक्रमण में अनाहिता देवी के सभी मंदिर नष्ट हो गए , किंतु अभी ईरान के बिशुपुर व कंगवार में माँ अनाहिता मंदिर के अवशेष पाए जाते है । मंदिर के स्तंभों व दीवारों को देख कर अनुमान लगाया जा सकता है कि ये कितने विशालकाय मंदिर रहे होंगे । 
अवेस्ता के अनुसार अहुरा मज़्दा द्वारा निर्मित विश्व का समस्त जल स्रोत आर्यदेवी सुरा अनाहिता से उत्पन्न होता है, जो सभी देशों को समृद्धि प्रदान करने वाली, जीवनदायिनी, पालतू पशुओं का झुण्ड बढ़ाने वाली, कृषि में कई गुना वृद्धि करने वाली है। वह मिट्टी की उर्वरता और फसलों के विकास के लिए जिम्मेदार है जो मनुष्य और जानवर दोनों का पोषण करती हैं । उनका वाहन सिंह है ।
यही वैदिक साहित्य में मिलता है -
नदीगत जलरूपो नाद्यः नमो अनाहिता चेति श्रुतिः ।।

 देवी अनाहिता की जय हो 🙏

दादाजी भोलानाथ तिवारी

दादाजी भोलानाथ तिवारी 

पिताजी के चाचा डॉ भोलानाथ तिवारी को विश्व का सबसे महान भाषा विज्ञानी कहना अनुचित न होगा । उनको विश्व की 5000 भाषाओं का ज्ञान था । उन्होंने भाषा विज्ञान (language and linguistics) पर 88 पुस्तकें लिखी । वे 12 भारतीय भाषाएं , 10 यूरोपीय भाषाएं और 8 एशियाटिक भाषाएं फर्राटे से बोलते थे । आज जब भी भाषाविज्ञान की कही रेफेरेंस देने की बात आती है तो उन्हीं का नाम लिया जाता है । किशोरावस्था में मुझे ऐसे महान व्यक्ति का सानिध्य प्राप्त हुआ ।  
संस्कृत भाषा की दो शाखाओं - शतम व कंटम के बारे में उनका यह सूत्र विश्वप्रसिद्ध है :-

ईरानी भारती चैव, बाल्टी सुस्लाविकी तथा ।
आर्मीनी अल्बानी चेता:, शतम वर्गे समाश्रिताः ।।
इटालिकीयूनानी च , जर्मनिक केल्टीकी तथा ।
हित्ती तोखारिकी चेता:, कण्टुम वर्गे प्रकीर्तिताः ।।

मैकाले की टूल किट

मैकाले की टूल किट 

मैकाले की सोच -- हमे एक ऐसी कौम बनानी है जो देखने मे हिंदुस्तानी हो मगर दिलोदिमाग से अंग्रेजों की गुलाम हो । 1857 का संग्राम हम देख चुके है ।  एक दिन हम अंग्रेजो को भारत से जाना ही होगा लेकिन जाने से पहले हम इन हिंदुस्तानी लोगों को अपनी मानसिक गुलाम कौम बना देंगे । और यह पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहेगा ।
(कल्पना करिए कि उस वक़्त क्या बातचीत हुई होगी)

 फिर मैकाले अपने शिष्य कर्जन और डलहौजी से बोले - हमे ये करना है जिससे कि -

- ये लोग अपने धर्म और संस्कृति पर ग्लानि व शर्म महसूस करें व उसका मखौल उड़ाए  किंतु दूसरे धर्म को अच्छा समझे 
-ये लोग अपने सभी साधु संतों को पाखंडी समझे और पोप पादरी बाइबिल को महान समझे
-ये लोग अपने प्राचीन विज्ञान को पाखंड और झूठ माने और विदेशी विज्ञान को श्रेष्ठतम माने 
- ये लोग अपनी चिकित्सा पद्धति आयुर्वेदिक और यूनानी को बकवास और अवैज्ञानिक माने और अंग्रेजी चिकित्सा पद्धति को श्रेष्ठ मानें
-ये लोग अपनी भाषा में पढ़ने लिखने बोलने वालों को हेय दृष्टि से देखे और अंग्रेजी पढ़ने लिखने बोलने वालों को उच्च मानें । अंग्रेजी पढ़ने वालों की भारतीय समाज मे बड़ी इज्जत हो , उनको ही बड़ी नौकरियां मिलें ।
-इनके लाखो गुरुकुल जो मंदिरों में चलते है वे बंद करवाओ , इनकी शिक्षा व्यवस्था तबाह कर दो और अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था लागू करो ।  स्कूलों में इनके बच्चों को वही पढवाओ जो हम चाहते हैं । शिक्षा को सिर्फ नौकरी पाने का जरिया बना दो । 
-इनकी किताबे बदल दो और अंग्रेजी किताबे चला दो । हमे ऐसा करना है कि आगे 50 सालों में भारत मे संस्कृत और फ़ारसी पढ़ने और समझने वालों की संख्या 1% से भी कम हो जाये। 
-ये लोग ऐसा साहित्य पढ़े (और ऐसी फिल्में देखे) जिसमे क्षत्रिय को अय्याश अत्याचारी राजा या जमीन्दार , ब्राह्मण को धूर्त पाखंडी , वैश्य को सूदखोर लालची व शूद्र को इनके जुल्म सहने वाला बताया हो 
- ये लोग अपनी परंपराओं को ब्राह्मणवाद कह के मजाक उड़ाए और विरोध करें 
-इनको बताओ कि तुम्हारे पास कुछ भी श्रेष्ठ नही था , जो भी श्रेष्ठ है वो हम यूरोपीय लोगो ने तुमको दिया है 
- इनको बताओ कि तुम लोग भी हमारी तरह  बाहरी हो और तुम्हारे पूर्वज यूरोप से आये थे , तुम्हारी भाषा भी यूरोपीय लोगो की देन है 
- इनके देशज वस्त्र जो इनके देश के मौसम के अनुसार कम्फ़र्टेबल होते है -जैसे धोती कुर्ता गमछा उत्तरीय आदि को पहनने में इनको शर्म आये और ये इंग्लैंड के ठंडे मौसम के अंग्रेजी वस्त्रों जैसे शर्ट सूट पैंट टाई कोट को पहनने में गर्व अनुभव करें 
- ये लोग अपने नायकों का मजाक उड़ाए और विदेशी आक्रमणकारियों की तारीफ करें 
- इनको बताओ कि तुम लोग कभी एक देश नही थे । हम अंग्रेजो ने तुमको एक देश बनाया । 

डलहौजी ने पूछा सर कैसे किया जाएगा यह सब -

मैकॉले बोला - एक झूठ को यदि 100 बार बोला जाए तो वह सच लगने लगता है । पहले यह काम जर्मन और अंग्रेज विद्वान करेंगे फिर गुलाम भारतीय खुद ही करेंगे । हम मैक्स मूलर , स्पीयर, मेटकाफ जैसे लोगो को तनख्वाह देंगे यह काम करने के लिए । समझे डलहौज़ी , तुम मेरा बनाया हुआ इंडियन एडुकेशन एक्ट तुरंत लागू करो  । इनको धर्म जाति भाषा क्षेत्र के आधार पर बांटते जाओ और लड़वाते जाओ। 

देखना डलहौज़ी भारत की आजादी के बाद एक दिन ऐसा आएगा कि जो भारत के टुकड़े होने की बात करेगा , जो आतंकवादी नक्सली का समर्थन करेगा उसका साथ देने के लिए हमारे मानसिक गुलाम खड़े हो जाएंगे । जो भगवा पहनेगा या संस्कृत आयुर्वेद गीता पढ़ने की बात करेगा उसका विरोध करने हमारे मानसिक गुलाम खड़े हो जाएंगे । भारत में भारत माता की जय बोलने वालों को मूर्ख समझा जाएगा । 
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मैकाले की टूल किट सफल हुई । आज भी हमारे बीच मे बहुत से लोग इसी टूलकिट के अनुसार दिलोदिमाग से अंग्रेजो के गुलाम बन हुए हैं ।

ऐसे लोगो को  देश और समाज के हित में अपने दिमाग को अब decolonized कर लेना चाहिए ।

indian history in hindi, भारतीय इतिहास

निर्भया का इलाज करने वाले डॉक्टर विपुल कंडवाल

सफदरजंग अस्पताल में निर्भया का इलाज करने वाले डॉक्टर विपुल कंडवाल 

एक मुलाकात में उन्होंने बताया कि निर्भया की हालत देख वे अंदर से दहल गए थे। जिदंगी में पहले कभी ऐसा केस नहीं देखा था।मेरे सामने 21 साल की एक युवती थी। उसके शरीर के फटे कपड़े हटाए, अंदर की जांच की तो दिल मानों थम सा गया। ऐसा केस मैंने अपनी जिदंगी में पहले कभी नहीं देखा। मन में सवाल बार-बार उठ रहा था कि कोई इतना क्रूर कैसे हो सकता है? मैंने खून रोकने के लिए प्रारंभिक सर्जरी शुरू की। खून नहीं रुक रहा था। क्योंकि रॉड से किए गए जख्म इतने गहरे थे कि उसे बड़ी सर्जरी की जरूरत थी। आंत भी गहरी कटी हुई थी। मुझे नहीं पता था कि ये युवती कौन है।  काश हम निर्भया की जान बचा पाते । 

डॉक्टर साहब और उनकी टीम ने पूरी सामर्थ्य से अपना कार्य किया । किन्तु लेकिन तमाम कोशिश के बावजूद निर्भया को बचाया नहीं जा सका इसका उन्हें बहुत अफसोस है । 
डॉक्टर साहब से काफी बातें हुईं । आजकल डॉक्टर साहब देहरादून में पदस्थ हैं । अभी भी उनसे बातें होती रहती है । एक बात और मालूम हुई - डॉ साहब गढ़वाली लोकगीत बहुत अच्छा गाते हैं । उन्होंने एक गीत भी हमे सुनाया -- ठंडो रे ठंडो .....

खुशमिजाज , सरल स्वभाव , अतिविनम्र और अभिमानरहित मित्र का अभिनंदन !!!

शनिवार, 13 मई 2023

अब्बास अली जी

अब्बास अली जी :

आदरणीय अब्बास अली का जन्म 1920 में उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में हुआ । स्कूली जीवन से भगत सिंह , चंद्रशेखर आजाद के विचारों से प्रभावित होकर आप नौजवान भारत सभा मे शामिल हो गए । अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में अध्ययन करते हुए आपने कुँवर मोहम्मद अशरफ के साथ ब्रिटिश राज विरोधी छात्र आंदोलनों में हिस्सा लिया । आप लगभग 50 बार जेल गए ।  द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान आप सेना में चले गए । नेताजी सुभाष चंद्र बोस के आव्हान पर 1945 में आपने ब्रिटिश सेना छोड़ कर आजाद हिंद फौज जॉइन कर ली । अरकान और रंगून की लड़ाई में आपने बहुत बहादुरी का परिचय दिया , आपको आजाद हिंद फौज में कैप्टन का पद मिला ।  कोहिमा की लड़ाई में आप अंग्रेजो द्वारा पकड़ लिए गए । आपका कोर्ट मार्शल हुआ और आप को आजीवन कारावास की सजा मिली । 

1947 में देश आजाद होने पर कैप्टन अब्बास अली को जेल से रिहा कर दिया गया , किंतु विश्वयुद्ध अपराधी होने के कारण उनको कोई सरकारी सहायता नही मिली । 

1948 में आपने सोशलिस्ट पार्टी जॉइन की और आचार्य नरेंद्र देव, राम मनोहर लोहिया आदि के साथ रहे ।

1975 में इमरजेंसी का विरोध करने के कारण इंदिरा गांधी सरकार द्वारा आपको जेल भेज दिया गया । आप 19 माह जेल में रहे । 

2014 में अलीगढ़ में बीमारी से आपका निधन हुआ । 

महान देशभक्त भूमिपुत्र अन्यायविरोधी सच्चे सिपाही अब्बास अली जी को शत शत नमन 🙏🙏🙏

अब्बास अली जी ने अपनी प्रेरक आत्मकथा "न रहूं किसी का दस्तनिगर" लिखी  है , जिसे सभी को पढ़ना चाहिए । पुस्तक का लिंक दिया है -

Na Rahoon Kisi Ka Dastnigar https://amzn.eu/d/1z5WMOt

, freedom fighter , abbas ali 
indian history in hindi, भारतीय इतिहास

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हिन्दू शब्द का अर्थ क्या है ?

एक बड़े नेता बोले है कि हिन्दू शब्द का अर्थ बहुत गंदा है , शर्मनाक है ...

हिन्दू शब्द का अर्थ क्या है ?

हमें बचपन से पढाया गया है कि प्राचीन ईरानी पारसी व ग्रीक “स“ को “ह“ बोलते थे . इस कारण वे सिन्धु नदी को हिन्दू बोलते थे . उनके  उच्चारण दोष के कारण यहाँ के निवासियों के धर्म का नाम हिंदू धर्म और इस देश का नाम हिन्दुस्थान पड़ गया !!!!
ऐसा इतिहास लिखने वाले अंग्रेजों की यह बताने की मंशा थी कि हिन्दुस्तानियों तुम तो जाहिल गंवार थे , तुम्हारे धर्म का कोई नाम न था , तुम्हारे देश का कोई नाम न था . विदेशियों ने तुम्हारे धर्म का नाम हिन्दू रखा , और तुम्हारे देश का नाम हिन्दुस्थान रखा . तब जा कर तुमको पहचान मिली .
 
हिन्दू शब्द की उत्पत्ति सिन्धु के गलत उच्चारण से हुई , इस फर्जी सिद्धांत का प्रवर्तक एक अंग्रेज मोनियर विलियम्स था . इसने थोड़ी संस्कृत भाषा सीखी और ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन काल में संस्कृत – अंग्रेजी शब्दकोष की रचना की . साम्राज्यवादी मानसिकता से ग्रस्त मोनियर विलियम्स ने लन्दन में इंडियन कॉलेज (आज की भाषा मे कोचिंग सेंटर) खोला जो अंग्रेजो को भारतीय सिविल सेवा परीक्षा की तैय्यारी करवाता था . 1846 से 1887 तक इसने हिन्दू धर्म , संस्कृत भाषा और व्याकरण , बुद्धिज़्म आदि पर कई अधकचरी पुस्तकें लिखी और कालिदास के नाटकों का गलत अंग्रेजी अनुवाद किया . इनको ब्रिटिश सरकार द्वारा सर की उपाधि प्रदान की गयी .
 
सिन्धु से हिन्दू की उत्पत्ति बताने वाले दूसरा साम्राज्यवादी अंग्रेज था  – हेनरी एलीअट (Henry Miers Elliot). ये महाशय ईस्ट इंडिया कम्पनी की सेवा में थे और बरेली में कलेक्टर थे . इसको फ़ारसी भाषा आती थी . इसने मुग़ल काल में लिखी गयी किताबों का अंग्रेजी में अनुवाद किया . इनको भी ब्रिटिश सरकार द्वारा सर की उपाधि प्रदान की गयी .
 
इन दोनों अंग्रेजो की बनायीं हुई सिन्धु – हिन्दू थ्योरी को विश्व भर में कम्युनिस्ट इतिहासकारों ने फैलाकर मान्यता दी . यहाँ तक कि अनेक भारतीय इतिहासकार भी इनके झांसे में आ गए . 

एक इंटरनेशनल सम्मलेन में एक ईरानी मेरा मित्र बना . वो तो ‘स’ को ‘स’ ही बोलता था . मैंने उससे पूछा कि क्या तुम्हारे पूर्वज ‘स’ नहीं बोल पाते थे और ‘स’ को ‘ह’ बोलते थे , इस बात पर वह बड़ा आश्चर्यचकित था क्योकि उसने यह कभी नहीं सुना था . यही प्रश्न मै अपने पारसी मित्रो से भी कर चुका हूँ और वे सभी इस बात का खंडन करते हैं की उनके पूर्वज ‘स’ नहीं बोल सकते थे और ‘स’ को ‘ह’ बोलते थे. 

अंग्रेज इतिहासकार एक मात्र प्रमाण देते हैं कि पारसियों के धर्मग्रन्थ अवेस्ता में वैदिक “सप्त सिन्धु” को “हप्त हिन्दू” कहा गया है इससे साबित होता है की ये लोग ‘स’ को ‘ह’ बोलते थे . 
अगर ऐसा था तो अवेस्ता को अवेहता क्यों नहीं बोलते थे ? फारस को फारह क्यों नहीं बोलते थे  ?  अवेस्ता में सैकड़ो बार ‘स’ शब्द आया है , प्राचीन फारसी शहरों के नाम ‘स’ से हैं ( सुशन, अशूर आदि) , प्राचीन फारसी राजाओं के नाम में ‘स’ है (डेरिअस, क्षयार्ष आदि ) . जब ये सिन्धु का ‘स’ नहीं बोल सकते थे तो ये नाम कैसे बोलते होंगे ? जबकि प्राचीन फारसी भाषा में संस्कृत की तरह तीन भिन्न प्रकार के ‘स’ हैं :--- 
 
हिन्दू शब्द की वियुत्पत्ति के समर्थन में यह झूठ भी कहा जाता है कि हिन्दू शब्द किसी भी भारतीय ग्रन्थ में नहीं पाया जाता. जबकि यह शब्द ग्रीक, ईरानी, अरबी, अफगान, मुग़ल आक्रमणकारियों के समय के विदेशी लेखों में मिलता है . अतः हिन्दू शब्द भारतीय मूल का है ही नहीं. 

जबकि हमारे प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में हिन्दू शब्द अनेक स्थानों पर आता हैं –
गौतम बुद्ध के पूर्व रचित ब्रहस्पति–आगम में वर्णित है –
हिमालयं समारम्भ्य यवाद इन्दुसरोवरम l
तं देवनिर्मितं देश हिन्दुस्थानम प्रचक्षते lI
(अर्थात – हिमालय से लेकर इन्दुसरोवर–कन्याकुमारी तक देवताओं द्वारा निर्मित इस देश को हिन्दुस्थान कहते हैं)

बुद्धकाल में रचित वृद्धस्मृतीग्रंथ में कहा गया है –
हिंसया दुयते यश्च सदाचरण तत्पर :
वेद्गो प्रतिमासेवी स हिन्दुमुख शब्दभाक l 
(अर्थात – जो हिंसा से दुःख मानने वाला है और सदाचार में तत्पर है , वेद के मार्ग पर चलने वाला , प्रतिमा पूजक है वह हिन्दू है )

मौर्यकाल में रचित पारिजातहरण नाटक में परशुराम कहतें हैं –
हिनस्ति तपसा पापान दैहिकान दुष्टमानसान l
हेतिभी: शत्रुवर्गच स हिन्दु: अभिधीयते ll
(अर्थात- जो अपनी तपस्या बल से पापों और देहिक दोषों का नाश करता है तथा अस्त्र शस्त्र से शत्रु वर्ग का संहार करता है वह हिन्दू कहलाता है )

रामायणकालीन अद्भुतकोष में हिन्दू की परिभाषा दी गयी है –
“हिन्दुहिन्द्रूश्च प्रसिद्धौ दुष्टनाम च विघर्श्यये” 
(अर्थात- हिन्दु और हिंदू ये दोनों दुष्टों को पराजित करने वाले अर्थ में प्रसिद्द हैं )

रामकोश में वर्णित है – 
हिन्दु: दुष्टों ना भवति नानार्यो विदूषक :
सद्धर्मपालको विद्वान श्रौतधर्म परायण 
(अर्थात – हिन्दू न दुष्ट होता है , न अनार्य विदूषक . वह धर्म पालक , विद्वान और वेदधर्म को मानने वाला होता है )

13वी शताब्दी में रचित “ माधव दिग्विजय“ में उल्लेखित है-
ॐकार मूल मंत्राध्याय: पुनर्जन्मद्रधाषयl
गोभक्तो भारत गुरु: हिन्दू हिन्संदूषक II
(अर्थात- ओंकार जिसका मूल मन्त्र है , पुनर्जन्म में जिसकी दृढ आस्था है , जो गो भक्त है , भारत ने जिसका प्रवर्तन किया , और जो हिंसा को दूषित मानता है वह हिन्दू है ). 
इन उदाहरणों से पता चलता है कि हिन्दू शब्द संस्कृत मूल का है.

चीनी यात्रियों ने ‘हिन्दू’ के स्थान पर यहाँ के निवासियों के लिए ‘इन-तू’ शब्द प्रयोग किया और इसका अर्थ चन्द्रवंशीय लोग बताया . इन्दु का अर्थ चन्द्रमा भी होता है और यहाँ के निवासी चन्द्रमास का कलेंडर उपयोग करते हैं तथा स्वयं को हिन्दू कहते हैं ऐसा चीनी यात्री हुएनसांग (Xuanzang) ने सातवी शताब्दी में लिखा .

प्राचीन साहित्य में हिन्दू शब्द का अर्थ स्थानवाचक था जो कि मध्यकाल में गैर-मुस्लिमों के अर्थ में जाना जाने लगा . 
हिन्दू शब्द का अर्थ इस्लामिक साहित्य में  मुशरिक काफ़िर आदि बताया गया है . यहाँ तक कि 1964 में लखनऊ में प्रकाशित ‘लुघेत-ए-किश्वारी’ नामक फारसी शब्दकोष में ‘हिन्दू’ शब्द का मतलब चोर , डाकू , राहजन, गुलाम , दास बताया गया है.  

अनेक मनीषियों, व्याकरणाचार्यों , विद्वानों जैसे श्रीला प्रभुपाद , शिवानन्द स्वामी  , डेविड फ्रावले, आत्मशोधन पीठ के स्वामी , जर्मनी देश के भाषाविद व संस्कृत प्रोफेसर एक्सेल मिशेल आदि हिन्दू शब्द को ईरानी अपभ्रंश न मान कर विशुद्ध संस्कृत मूल का मानते है . अगर हिन्दू शब्द संस्कृत मूल का है तो इसका क्या अर्थ हुआ ? इन विद्वानों के अनुसार हिन्दू शब्द – हि और इन्दु से बना है . “हि” अर्थात ‘वास्तव में’ और “इन्दु” अर्थात ‘शक्तिशाली’ . अर्थात जो वास्तव में शक्तिशाली है वही हिन्दू है . 

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जननायक बिरसा मुंडा

15 नवंबर 2020
आज भगवान बिरसा मुंडा की जयंती है, बिरसा मुंडा झारखंड के रहने वाले एक आदिवासी समाज के युवक थे, जिन्होंने सिर्फ़ 25 साल की उम्र में देश के लिए अंग्रेज़ों से लड़ते हुए अपनी जान दे दी लेकिन आज़ादी के बाद लिखे शब्दों के कूटरचित इतिहास में बिरसा मुंडा के बारे में एक भी अध्याय नहीं है।

बिरसा मुंडा आदिवासी युवक थे, जिन्हें उस समय इंग्लिश मीडियम के स्कूल में शिक्षा के लिए भेजा था उनके परिवार ने। बिरसा का पूरा परिवार ईसाई धर्म क़ुबूल कर चुका था और मुंडा समुदाय के ज़्यादातर लोग भी ईसाई बन चुके थे।
लेकिन बिरसा ने स्कूल में देखा कि मिशनरी स्कूल वाले आदिवासियों को ईसाई तो बनाना चाहते हैं लेकिन उनके साथ बहुत बुरा बर्ताव करते हैं, तो उन्होंने वो स्कूल छोड़ दिया। उन्होंने हिन्दू धर्म का गहन अध्ययन किया । बिरसा ने कभी ईसाई धर्म नहीं कबूला और ईसाई बन चुके आदिवासियों को वापस हिंदू बनवाया। उन्होंने आदिवासी समाज मे व्याप्त भूत प्रेत डायन अंधविश्वास का विरोध किया और लोगो को जागृत किया । 

उसी समय चाईबासा जहाँ वो रहते थे, बहुत बड़ा अकाल पड़ा, लेकिन अंग्रेज़ों ने लगान वसूलना बंद नहीं किया तो बिरसा ने अपने साथियों को संगठित करके अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ विद्रोह कर दिया। अनेक स्थानों पर उनके संगठन का ब्रिटिश सेना से युद्ध हुआ । तांगा नदी के युद्ध मे उनको विजय प्राप्त हुई ।  लेकिन तीर कमान वाला उनका संगठन गोली बंदूक़ तोप वाले अंग्रेज़ों से हार गया।  उन्हें गिरफ्तार कर रांची जेल भेज दिया गया जहाँ सिर्फ़ 25 साल की उम्र में जेल में ज़हर दिए जाने से सन 1900 में उनकी मृत्यु हो गई।
जननायक क्रांतिकारी भगवान बिरसा मुंडा को शत शत नमन

indian history in hindi, भारतीय इतिहास, Birsa Munda , freedom fighter

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