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बुधवार, 21 जून 2023

नेत्रदान महादान

यह दुनियां बहुत खूबसूरत है. हमारे आसपास की हर वस्तु में एक अलग ही सुंदरता छिपी होती है जिसे देखने के लिए एक अलग नजर की जरुरत होती है. दुनियां में हर चीज का नजारा लेने के लिए हमारे पास आंखों का ही सहारा होता है. लेकिन क्या कभी आपने यह सोचा है कि बिन आंखों के यह दुनियां कैसी होगी? चारो तरफ अंधेरा ही अंधेरा मालूम होगा. दुनियां की सारी खूबसूरती आंखों के बिना कुछ नहीं है. आंखें ना होने का दुख वही समझ सकता है जिसके पास आंखें नहीं होतीं.
थोड़ी देर के लिए अपनी आंखों पर पट्टी बांधकर देखें दुनियां कैसी लगती है. लगता है ना डर. आंखों के बिना तो सही से चला भी नहीं जा सकता और यही वजह है कि इंसान सबसे ज्यादा रक्षा अपनी आंखों की ही करता है. लेकिन कुछ अभागों की दुनियां में परमात्मा ने ही अंधेरा लिखा होता है जिन्हें आंखें नसीब नहीं होतीं. कई बच्चे इस दुनियां में बिना आंखों के ही आते हैं तो कुछ हादसों में आंखें गंवा बैठते हैं. दुनियां भर में नेत्रहीनों की संख्या काफी अधिक है जिनमें से कई तो जन्मजात ही नेत्रहीन होते हैं.

आंखों का महत्व तो हम सब समझते हैं और इसीलिए इसकी सुरक्षा भी हम बड़े पैमाने पर करते हैं लेकिन हममें से बहुत कम होते हैं जो अपने साथ दूसरों के बारे में भी सोचते हैं. आंखें ना सिर्फ हमें रोशनी दे सकती हैं बल्कि हमारे मरने के बाद वह किसी और की जिंदगी से भी अंधेरा हटा सकती हैं. लेकिन जब बात नेत्रदान की होती है तो काफी लोग इस अंधविश्वास में पीछे हट जाते हैं कि कहीं अगले जन्म में वह नेत्रहीन ना पैदा हो जाएं. इस अंधविश्वास की वजह से दुनियां के कई नेत्रहीन लोगों को जिंदगी भर अंधेरे में ही रहना पड़ता है.
हमारे नेत्र का काला गोल हिस्सा 'कार्निया' कहलाता है। यह आँख का पर्दा है जो बाहरी वस्तुओं का चित्र बनाकर हमें दृष्टि देता है । यदि कर्निया पर चोट लग जाये ,इस पर झिल्ली पड़ जाये या इसपर धब्बे पड़ जायें तो दिखाई देना बन्द हो जाता है । हमारे देश में करीब ढ़ाई लाख लोग हैं जो कि कर्निया की समस्या से पीड़ित हैं। इन लोगों के जीवन का आंधेरा दूर हो सकता है यदि उन्हें किसी मृत व्यक्ति का कर्निया प्राप्त हो जाये । लेकिन डाक्टर किसी मृत व्यक्ति का कार्निया तब तक नहीं निकाल सकते जब तक कि वह व्यक्ति अपने जीवन काल में ही नेत्रदान की घोषणा लिखित रूप में ना कर दे ।हमारे देश में सभी राज्यों नेत्रबैंक हैं जहाँ लिखित सूचना देने पर उस व्यक्ति के देहांत के 6 घटे के अन्दर उसका कार्निया निकाल ले जाते हैं।

हमारे सभी धर्मों में दया, परोपकार, जैसी मानवीय भावनाएँ सिखाई जाती हैं ।यदि हम अपने नेत्रदान करके मरणोपरांत किसी की निष्काम सहायता कर सकें तो हम अपने धर्म का पालन करेंगे , और क्योकि इसमें कोई भी स्वार्थ नहीं है इसलिये यह महादान माना जाता है।

नेत्रदान करने वाले व्यक्ति की मृत्यु के 6 से 8 घंटे के अंदर ही नेत्रदान कर देना चाहिए। जिस व्यक्ति को नेत्रदान के कॉर्निया का उपयोग करना है, उसे 24 घंटे के भीतर ही कॉर्निया प्रत्यारोपित कराना जरूरी होता है। नेत्रदान का मतलब शरीर से पूरी आंख निकालना नहीं होता। इसमें मृत व्यक्ति की आखों के कॉर्निया का उपयोग किया जाता है। 
 नेत्रदान की प्रकिया मृत्यु के कुछ घंटों के अंतराल में की जाती है और इससे किसी भी तरह की कोई परेशानी नहीं होती. एक मृत व्यक्ति के नेत्र को एक नेत्रहीन को दे दी जाती है जिससे उस नेत्रहीन के जीवन में उजाला हो जाता है. आप भी अगर किसी की जिंदगी में उजाला करना चाहते हैं तो अपने निकटतम मेडिकल कॉलेज या नेत्र चिकित्सालय से संपर्क कर नेत्रदान के लिए पंजीकरण करा सकते हैं. किसी की दुनियां में उजाला फैलाने के लिए एक कदम आगे बढ़ाइए...

सोमवार, 15 मई 2023

परसाई जी का घर

लगभग 37 साल पहले मैं इस घर मे परसाई जी से मिला था । 

तब मैं बी. ई. तृतीय वर्ष का छात्र था ।  जबलपुर इंजीनियरिंग कालेज के प्रोफेसर दिनेश खरे (सिविल) कालेज में साहित्यिक कार्यक्रमों के इंचार्ज थे और हमारे एक सीनियर समीर निगम "सारिका कहानी मंच" के संयोजक थे । उनके साथ मुझे परसाई जी के घर जाने का अवसर मिला । परसाई जी को सभी साहित्यकार दादा कहते थे और रामेश्वर अंचल जी को दद्दा । उनका सिगरेट पीते रहना , बिंदास स्वभाव और ठहाके लगा कर बोलना आज भी याद है। हरिशंकर परसाई एक सरल और सहज व्यक्तित्व थे, उनका स्वाभाव मजाकिया था । फक्कड़ की तरह रहते थे । 

देश के जागरुक प्रहरी के रूप में पहचाने जाने वाले हरिशंकर परसाई जी ने लेखन में व्यंग्य की विधा को चुना, क्योंकि वे जानते थे कि समसामयिक जीवन की व्याख्या, उनका विश्लेषण और उनकी भर्त्सना एवं विडम्बना के लिए व्यंग्य से बड़ा कारगर हथियार और दूसरा हो नहीं सकता ।  उनकी अधिकतर रचनाएं सामाजिक राजनीति, साहित्य, भ्रष्टाचार, आजादी के बाद का ढोंग, आज के जीवन का अन्तर्विरोध, पाखंड और विसंगतियों पर आधारित है । उनके लेखन का तरीका मात्र हंसाता नहीं वरन् आपको सोचने को बाध्य कर देता है। 

परसाई जी ने सामाजिक और राजनीतिक यथार्थ की जितनी समझ पैदा की उतना  हमारे युग में प्रेमचंद के बाद कोई और लेखक नहीं कर सका है । 

आज लगभग 37 वर्ष बाद किसी कार्यवश उस तरफ जाना हुआ तो सोचा चलो परसाई जी का घर भी देख ले । 

अब वहां पर कम्युनिस्ट पार्टी का कार्यालय है । परसाई जी की स्मृति कही नजर नही आई ।


हरिशंकर परसाई जी व्यंग्य लेखक को डॉक्टर की जगह रखते थे. जैसे डॉक्टर पस को बाहर निकालने के लिए दबाता है. वैसे व्यंग्य लेखक समाज की गंदगी हटाने के लिए उस पर उंगली रखता है. उसमें वो कितने कामयाब हुई ये बताना नापने वालों का काम है. हमारा तुम्हारा काम है उनको और पढ़ना.

NTPC के रामाराव साहब

NTPC के रामाराव साहब 

NTPC विंध्याचल में AGM थे रामाराव साहब , विशाल आध्यात्मिक व्यक्तिव वाले। कॉलोनी में उनका घर था , जिसमे प्रवेश करते ही ऐसा लगता था जैसे मंदिर में आ गए हो । हर कमरा एक भव्य मंदिर । रामाराव साहब सत्यसाई बाबा के परम भक्त थे और विभिन्न सेवा कार्यो में लगे रहते थे । उन दिनों मैं बैढन के 132 केवी उपकेंद्र में पदस्थ था और विभिन्न कार्यो से मुझे विंध्याचल पावर स्टेशन जाना पड़ता था । इस वजह से रामाराव साहब से पहचान हुई । वे अक्सर मुझे अपने सेवा कार्यो में आने को बोलते थे और मैं कन्नी काट जाता था ।

 उन दिनों मुझे मोरवा अमरकंटक ई एच टी लाइन के टावर 446 का कार्य करने के लिए दुर्गम इलाके में जाना पड़ता था । यह स्थान एक आदिवासी इलाका था और सोनभद्र जिले से लगा हुआ था । लगभग 25 साल पहले यहां की दशा बहुत खराब थी । इन गांवों में कोई बीमार पड़ जाए तो 25 किमी तक कोई अस्पताल या स्वास्थ सेवा उपलब्ध नही थी । बीमार को खटिया में लिटाकर ग्रामीण 25 किमी पैदल ले जाते थे । 

एक बार रामाराव साहब से मैने इस बारे में चर्चा की तो बोले आप वहां एक निशुल्क अस्पताल खोल दीजिये । मैने पूछा कि मैं यह कैसे कर सकता हूँ ? तो उन्होंने कहा कि आप संकल्प ले लीजिए बाकी सब व्यवस्था  ईश्वर कर देगा । सबसे पहले नजदीक के किसी कस्बे में कोई खाली मकान देखिए जिसमे अस्पताल चलाया जा सकता हो । 

हमने काफी तलाश किया तो मिश्रा जी का टीन शेड वाला खाली घर मिल गया । हमने उनको अपनी योजना बताई और पूछा कितना किराया लेंगे तो वे बोले आप इन आदिवासियों के लिए  नेक काम कर रहे हैं इसलिए सिर्फ 1 रुपया प्रति माह । 

फिर अन्य लोगो के सहयोग से हमें बेड, स्ट्रेचर, कुर्सियां टेबल मिली , रामाराव साहब के सहयोग से NTPC हॉस्पिटल के डॉक्टर वहां जा कर सप्ताह में एक दिन निःशुल्क सेवा देते । दवाइया भी आ गयी । कुछ वर्ष बाद हमारे प्रयासों से और लायंस क्लब , रोटरी क्लब आदि के सहयोग से वहां एक्स रे मशीन और पैथोलॉजी भी हो गयी । 

रामाराव साहब की प्रेरणा से इस प्रकार शुरुआत हुई "मानस सेवा चिकित्सालय"  की,  जो आज भी चल रहा है ।

निर्भया का इलाज करने वाले डॉक्टर विपुल कंडवाल

सफदरजंग अस्पताल में निर्भया का इलाज करने वाले डॉक्टर विपुल कंडवाल 

एक मुलाकात में उन्होंने बताया कि निर्भया की हालत देख वे अंदर से दहल गए थे। जिदंगी में पहले कभी ऐसा केस नहीं देखा था।मेरे सामने 21 साल की एक युवती थी। उसके शरीर के फटे कपड़े हटाए, अंदर की जांच की तो दिल मानों थम सा गया। ऐसा केस मैंने अपनी जिदंगी में पहले कभी नहीं देखा। मन में सवाल बार-बार उठ रहा था कि कोई इतना क्रूर कैसे हो सकता है? मैंने खून रोकने के लिए प्रारंभिक सर्जरी शुरू की। खून नहीं रुक रहा था। क्योंकि रॉड से किए गए जख्म इतने गहरे थे कि उसे बड़ी सर्जरी की जरूरत थी। आंत भी गहरी कटी हुई थी। मुझे नहीं पता था कि ये युवती कौन है।  काश हम निर्भया की जान बचा पाते । 

डॉक्टर साहब और उनकी टीम ने पूरी सामर्थ्य से अपना कार्य किया । किन्तु लेकिन तमाम कोशिश के बावजूद निर्भया को बचाया नहीं जा सका इसका उन्हें बहुत अफसोस है । 
डॉक्टर साहब से काफी बातें हुईं । आजकल डॉक्टर साहब देहरादून में पदस्थ हैं । अभी भी उनसे बातें होती रहती है । एक बात और मालूम हुई - डॉ साहब गढ़वाली लोकगीत बहुत अच्छा गाते हैं । उन्होंने एक गीत भी हमे सुनाया -- ठंडो रे ठंडो .....

खुशमिजाज , सरल स्वभाव , अतिविनम्र और अभिमानरहित मित्र का अभिनंदन !!!

शनिवार, 13 मई 2023

नेत्रदान कीजिये

15 अक्टूबर 2014

यह दुनियां बहुत खूबसूरत है. हमारे आसपास की हर वस्तु में एक अलग ही सुंदरता छिपी होती है जिसे देखने के लिए एक अलग नजर की जरुरत होती है. दुनियां में हर चीज का नजारा लेने के लिए हमारे पास आंखों का ही सहारा होता है. लेकिन क्या कभी आपने यह सोचा है कि बिन आंखों के यह दुनियां कैसी होगी? चारो तरफ अंधेरा ही अंधेरा मालूम होगा. दुनियां की सारी खूबसूरती आंखों के बिना कुछ नहीं है. आंखें ना होने का दुख वही समझ सकता है जिसके पास आंखें नहीं होतीं.

थोड़ी देर के लिए अपनी आंखों पर पट्टी बांधकर देखें दुनियां कैसी लगती है. लगता है ना डर. आंखों के बिना तो सही से चला भी नहीं जा सकता और यही वजह है कि इंसान सबसे ज्यादा रक्षा अपनी आंखों की ही करता है. लेकिन कुछ अभागों की दुनियां में परमात्मा ने ही अंधेरा लिखा होता है जिन्हें आंखें नसीब नहीं होतीं. कई बच्चे इस दुनियां में बिना आंखों के ही आते हैं तो कुछ हादसों में आंखें गंवा बैठते हैं. दुनियां भर में नेत्रहीनों की संख्या काफी अधिक है जिनमें से कई तो जन्मजात ही नेत्रहीन होते हैं.
आंखों का महत्व तो हम सब समझते हैं और इसीलिए इसकी सुरक्षा भी हम बड़े पैमाने पर करते हैं लेकिन हममें से बहुत कम होते हैं जो अपने साथ दूसरों के बारे में भी सोचते हैं. आंखें ना सिर्फ हमें रोशनी दे सकती हैं बल्कि हमारे मरने के बाद वह किसी और की जिंदगी से भी अंधेरा हटा सकती हैं. लेकिन जब बात नेत्रदान की होती है तो काफी लोग इस अंधविश्वास में पीछे हट जाते हैं कि कहीं अगले जन्म में वह नेत्रहीन ना पैदा हो जाएं. इस अंधविश्वास की वजह से दुनियां के कई नेत्रहीन लोगों को जिंदगी भर अंधेरे में ही रहना पड़ता है.
हमारे नेत्र का काला गोल हिस्सा 'कार्निया' कहलाता है। यह आँख का पर्दा है जो बाहरी वस्तुओं का चित्र बनाकर हमें दृष्टि देता है । यदि कर्निया पर चोट लग जाये ,इस पर झिल्ली पड़ जाये या इसपर धब्बे पड़ जायें तो दिखाई देना बन्द हो जाता है । हमारे देश में करीब ढ़ाई लाख लोग हैं जो कि कर्निया की समस्या से पीड़ित हैं। इन लोगों के जीवन का आंधेरा दूर हो सकता है यदि उन्हें किसी मृत व्यक्ति का कर्निया प्राप्त हो जाये । लेकिन डाक्टर किसी मृत व्यक्ति का कार्निया तब तक नहीं निकाल सकते जब तक कि वह व्यक्ति अपने जीवन काल में ही नेत्रदान की घोषणा लिखित रूप में ना कर दे ।हमारे देश में सभी राज्यों नेत्रबैंक हैं जहाँ लिखित सूचना देने पर उस व्यक्ति के देहांत के 6 घटे के अन्दर उसका कार्निया निकाल ले जाते हैं।

हमारे सभी धर्मों में दया, परोपकार, जैसी मानवीय भावनाएँ सिखाई जाती हैं ।यदि हम अपने नेत्रदान करके मरणोपरांत किसी की निष्काम सहायता कर सकें तो हम अपने धर्म का पालन करेंगे , और क्योकि इसमें कोई भी स्वार्थ नहीं है इसलिये यह महादान माना जाता है।
नेत्रदान करने वाले व्यक्ति की मृत्यु के 6 से 8 घंटे के अंदर ही नेत्रदान कर देना चाहिए। जिस व्यक्ति को नेत्रदान के कॉर्निया का उपयोग करना है, उसे 24 घंटे के भीतर ही कॉर्निया प्रत्यारोपित कराना जरूरी होता है। नेत्रदान का मतलब शरीर से पूरी आंख निकालना नहीं होता। इसमें मृत व्यक्ति की आखों के कॉर्निया का उपयोग किया जाता है। 

 नेत्रदान की प्रकिया मृत्यु के कुछ घंटों के अंतराल में की जाती है और इससे किसी भी तरह की कोई परेशानी नहीं होती. एक मृत व्यक्ति के नेत्र को एक नेत्रहीन को दे दी जाती है जिससे उस नेत्रहीन के जीवन में उजाला हो जाता है. आप भी अगर किसी की जिंदगी में उजाला करना चाहते हैं तो अपने निकटतम मेडिकल कॉलेज या नेत्र चिकित्सालय से संपर्क कर नेत्रदान के लिए पंजीकरण करा सकते हैं. किसी की दुनियां में उजाला फैलाने के लिए एक कदम आगे बढ़ाइए...