शुक्रवार, 16 जून 2023

शहादत का सप्ताह

तेग साचो, देग साचो, सूरमा सरन साचो, 
साचो पातिसाहु गुरु गोबिंद सिंह कहायो है।

माता गुजरी तथा साहिबजादों 
अजित सिंह, जुझार सिंह, जोरावर सिंह, फ़तेह सिंह
के शहादत का सप्ताह है दिसंबर का आखिरी सप्ताह ।

चमकौर के भयानक युद्ध में गुरुजी के दो बड़े साहिबजादे सवा लाख मुगल फौज को धूल चटाते हुए शहीद हो गए। जिनमें बड़े साहिबजादे अजीत सिंह की उम्र महज 17 वर्ष, साहिबजादा जुझार सिंह की उम्र 15 वर्ष थी। गुरुजी ने अपने हाथों से उन्हें शस्त्र सजाकर मैदाने जंग में भेजा था। इस भयानक युद्ध में दोनो बड़े साहिबजादे शहीद हो गए। 

उधर माता गुजरीजी, छोटे साहिबजादे जोरावर सिंघ जी उम्र 7 वर्ष, और साहिबजादा फतेह सिंह जी उम्र 5 वर्ष को गिरफ्तार कर सरहंद के नवाब वजीर खां के सामने पेश किया गया। जहां उन्हें धर्म परिवर्तन करने के लिए कहा गया, लेकिन साहिबजादों ने कहा कि हर मनुष्य को अपना धर्म मानने की पूरी आजादी हो। जिससे नाराज वजीर खां ने उन्हें दीवारों में चुनवा दिया। मानवाधिकारों की लड़ाई लड़ते हुए दोनो गुरु पुत्रों ने बलिदान दिया।
साहिबजादों की शहादत के बाद गुरु माता ने वाहेगुरु का शुक्रिया अदा कर अपने प्राण त्याग दिए। तारीख 26 दिसंबर गुरु गोबिन्द सिंह जी के संपूर्ण परिवार के बलिदान के कारण सुनहरी इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई। गुरु जी ने कहा था कि चार पुत्र और परिवार नहीं रहा तो क्या हुआ? मुझे खुशी है, ये हजारों सिख जीवित हैं, जो मेरे लिए मेरे पुत्रों से बढ़कर हैं।


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गुरु अर्जुन देव जी महाराज

आज गुरु अर्जुन देव जी महाराज का प्रकाश दिवस है (15 अप्रैल 1563)

गुरू अर्जुन देव 5वे गुरू महाराज थे। गुरु अर्जुन देव जी ईश्वरीय शक्ति एवं शान्तिपुंज हैं। आध्यात्मिक जगत में गुरु जी को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। उन्हें ब्रह्मज्ञानी भी कहा जाता है। गुरुग्रंथ साहिब में तीस रागों में गुरु जी की वाणी संकलित है। गणना की दृष्टि से श्री गुरुग्रंथ साहिब में सर्वाधिक वाणी पंचम गुरु की ही है।
ग्रंथ साहिबजी का संपादन गुरु अर्जुन देव जी ने भाई गुरदास की सहायता से 1604 में किया। ग्रंथ साहिब की संपादन कला अद्वितीय है, जिसमें गुरु जी की विद्वत्ता झलकती है। उन्होंने रागों के आधार पर ग्रंथ साहिब में संकलित वाणियों का जो वर्गीकरण किया है, उसकी मिसाल मध्यकालीन धार्मिक ग्रंथों में दुर्लभ है। यह उनकी सूझबूझ का ही प्रमाण है कि ग्रंथ साहिब में 36 महान वाणीकारोंकी वाणियां बिना किसी भेदभाव के संकलित हुई।

जहांगीर ने अर्जुन देव को बंदी बना लिया और मुस्लिम धर्म स्वीकार न करने पर इन्हें मृत्युदंड की सजा सुनाई गई। गुरु महाराज को तीन दिनों तक भयंकर यातनाएं दी गयी लेकिन अर्जुन देव अपने सिद्धांतों पर अडिग रहे और अंततः 30 मई 1606 को धर्म की खातिर अपने प्राणों का बलिदान दे दिया।

गुरु जी ने अपने पूरे जीवनकाल में शांत रहना सीखा और लोगों को भी हमेशा नम्रता से पेश आने का पाठ पढ़ाया। यही कारण है की गर्म तवे और गर्म रेत के तसीहें सहते हुए भी उन्होंने केवल उस परमात्मा का शुक्रिया किया और कहा की तेरी हर मर्जी में तेरी रजा है और तेरी इस मर्जी में मिठास भी है। गुरु जी के आख़िरी वचन थे- तेरा कीया मीठा लागै॥


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बिन्देश्वर पाठक

पंडित बिंदेश्वर पाठक वो शख्सियत हैं जिनकी स्वच्छता की सोच ने भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में एक मिसाल कायम कर दी। करीब पांच दशक पहले उन्होंने एक ऐसा अभियान शुरू किया जो एक विशाल आंदोलन बन गया। स्वच्छ भारत अभियान के करीब तीन दशक पहले उन्होंने खुले में शौच, दूसरों से शौचालय साफ करवाने और प्रदूषण जैसी तमाम सामाजिक बुराइयों या और कमियों पर रोक लगाने का जनांदोलन खड़ा कर पूरी दुनिया को अचंभित कर दिया। समाज में सुधार आया और उनकी संस्था सुलभ इंटरनैशनल ने साफ-सफाई का एक मॉडल बनाया जिसने न सिर्फ स्वच्छता के क्षेत्र में, बल्कि रोजगार और आत्मनिर्भरता के क्षेत्र में भी कामयाबी के झंडे गाड़े।
 डॉ बिंदेश्वर पाठक ने वर्ष 1974 में 'पे एंड यूज' टॉयलेट की शुरुआत की। जल्दी ही उनका ये कॉन्सेप्ट पूरे देश और कई पड़ोसी देशों में लोकप्रिय हो गया। उन्होंने अपनी संस्था का नाम रखा 'सुलभ इंटरनैशनल'। सस्ती शौचालय तकनीक विकसित करके उन्होंने सफाई के क्षेत्र में जुटे दलितों के सम्मान के लिए कार्य किया। इससे उनके  व्यक्तित्व में बड़ा बदलाव आया। 1980 में जब उन्होंने  सुलभ इंटरनेशनल का नाम सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गनाइजेशन किया तो इसका नाम पूरी दुनिया में पहुंच गया। 
स्वच्छता के साथ पद्मभूषण विदेश्वर पाठक ने दलित बच्चों की शिक्षा के लिए पटना, दिल्ली और दूसरी कई जगहों पर स्कूल खोले जिससे स्कैवेंजिंग और निरक्षरता के उन्मूलन में सहायता मिली। समाज के निचले पायदान को लाभान्वित करने के मकसद से उन्होंने महिलाओं और बच्चों को आर्थिक अवसर प्रदान करने के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण-केंद्रों की स्थापना की है। सुलभ को अन्तर्राष्ट्रीय गौरव उस समय प्राप्त हुआ जब संयुक्त राष्ट्र संघ की आर्थिक एवं सामाजिक परिषद द्वारा सुलभ इंटरनेशनल को विशेष सलाहकार का दर्जा प्रदान किया गया। 
डॉ. बिंदेश्वर पाठक भारत में मैला ढोने की प्रथा के खिलाफ देश में स्वच्छता अभियान में अहम भूमिका निभा रहे हैं। उनका मानमा है कि सरकार ने देश में 2019 तक खुले में शौच की परंपरा खत्म करने का जो डेड लाइन रखा था उसमें काफी हद तक सफलता मिली है लेकिन  चुनौतियां अब भी मौजूद हैं। महज  राज्य और कॉर्पोरेट घरानों के तालमेल से यह मुमकिन नहीं होगा। जैसा कि प्रधानमंत्री ने संकेत दिये हैं, इसमें सक्रिय लोगों की भागीदारी और सुनियोजित योजनाओं की जरूरत है। उनका कहना है कि स्वच्छता को राष्ट्रीय स्तर पर राजनैतिक इच्छाशक्ति के साथ आगे जारी रखने  की जररूत है। 

बिंदेश्वर पाठक ने एक सामाजिक कुप्रथा में बदलाव लाकर इसे विकास का जरिया बना दिया। उन्होंने सुलभ शौचालयों से बिना दुर्गंध वाली बायोगैस की खोज की। इस तकनीक का इस्तेमाल  भारत समेत अनेक विकासशील राष्ट्रों में धड़ल्ले से हो रहा है। सुलभ शौचालयों से निकलने वाले अपशिष्ट का खाद के रूप में इस्तेमाल के लिए उन्होंने प्रोत्साहित किया।  उनको एनर्जी ग्लोब, इंदिरा गांधी, स्टॉकहोम वॉटर जैसे तमाम पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। 2009 में इंटरनेशनल अक्षय ऊर्जा संगठन (आईआरईओ) का अक्षय उर्जा पुरस्कार भी मिला है। ( courtesy फेम इंडिया )

आज (4 march 2019 )दिल्ली में सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक पद्मभूषण आदरणीय श्री बिंदेश्वर पाठक जी से मिलने एवं वार्तालाप का सुअवसर प्राप्त हुआ । पाठक जी ने अपने अनुभवों को बताया एवं अनेक प्रेरणा दायक बातें बताई। ऐसे महान व्यक्तित्व के चरणों मे शत शत नमन ।


इंग्लैंड की रामायण

इंग्लैंड की रामायण -
हरि अनंत हरि कथा अनंता

फादर कामिल बुलके ने आपने शोध प्रबंध हेतु  300 रामायणों का संग्रह व अध्ययन किया था । भारत के अतिरिक्त जापान , इंडोनेशिया, श्रीलंका, कंबोडिया, ईरान, लाओस,थाईलैंड, रूस, तुर्कमेनिस्तान आदि में भी प्राचीन रामायण पाई जाती हैं । ग्रीक एवं रोमन पुराण कथाओं में रामकथा से मिलते जुलते आख्यान पाए जाते हैं । इंग्लैंड में भी प्राचीन रामायण पाई जाती है ।
इंग्लैंड में रोमन शासन 43 AD से पूर्व का इतिहास सही तरह से ज्ञात नही है । किंतु प्राचीन druid (द्रविड़) लोग वहां के मूल निवासी है । पुराणों में अंगुलदेश का वर्णन है जो कि बंद मुट्ठी अंगूठे के आकार का द्वीप है और वहां सर्वप्रथम स्कन्दनाभीय (scandavian) क्षत्रियो (scot) ने राज्य स्थापित किया । जिन्होंने शैलपुरी (salisbury) में सूर्य भगवान को समर्पित stonehenge का मंदिर बनवाया । आज भी उस प्राचीन druid धर्म के अनुयायी हज़ारो की संख्या में वहां रहते हैं । अंग्रेजी भाषा के शब्दों का संस्कृत मूल , प्राचीन 
इंग्लैंड में hadrian दीवाल के किलों में हाथी मोर के चित्र पाए जाना, उत्खनन में शिवलिंग और गणेश की प्रतिमा मिलना, वेस्टमिनिस्टर एब्बे की शिला आदि संकेत देती है कि इंग्लैंड में रोमन राज्य से पूर्व वैदिक संस्कृति थी । आज भी इंग्लैंड में भगवान राम के नाम पर अनेक शहर है जैसे  Ramsgate (राम घाट) , Ramsden (राम देन) , Ramford (राम किला) आदि । कई अंग्रेजों के नाम Ramsay (राम सहाय) होता है। 
इंग्लैंड के एक प्राचीन काव्य Celtic Psalter में प्राचीन किंग रिचर्ड की कहानी लैटिन भाषा मे मिलती है । हालांकि बाद में 12 शताब्दी में इंग्लैंड के अन्य राजाओं का नाम भी रिचर्ड हुआ और उन पर भी किताबे लिखी गयी । बाद की कहानियों में प्राचीन किंग रिचर्ड और 12 वी शताब्दी के किंग रिचर्ड the lion hearted की कहानियों को आपस में मिला दिया गया । फिर शेक्सपियर ने king richard पर प्ले लिखा जिसमे रिचर्ड तृतीय और रोबिन हुड की कहानियों को आपस में मिला दिया गया । 
मूल प्राचीन पुस्तक में काव्यात्मक वर्णित कथा संक्षेप में इस प्रकार है -
इंग्लैंड के महाप्रतापी राजा थे किंग रिचर्ड (किंग = सिंह, रिचर्ड = राम चन्द्र) जो कि सूर्यदेव के पुत्र अपोलो के वंशज और महान धनुर्धर थे । इनकी पत्नी का नाम रानी Jancy (=जानकी) था । ये अपने पिता की आज्ञा से  वनों में गए ,  जहाँ  Lancashire (लंकेश्वर) के क्रूर राजा, जो एक demon था ,  ने Jancy का अपहरण कर लिया और इटली के नजदीक एक  भूमध्यसागरीय द्वीप में ले गया । 
किंग रिचर्ड ने Germanic tribes के सेनापति कपि Hahnemann की सहायता से जल सेना बनाई और उस द्वीप पर troop of monkey की सेना से  आक्रमण किया । और demon को मार के अपनी पत्नी को मुक्त कराया । 

(विस्तृत अध्ययन हेतु - peter ackroyd की पुस्तक foundation the history of england देखिए)

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सप्तमातृका

सप्तमातृका

‘मातृका’ का मूल शब्द ‘मातृ’ है जिसका अर्थ है ‘माँ’। यह माना जाता है कि उनमें वह शक्ति है जो मातृ गुणों का प्रतीक है और इस ब्रह्मांड की सभी शक्तियों की रक्षक, प्रदाता और पालनकर्ता भी है। जैसे पृथ्वी की हर चीज सूर्य से अपनी स्रोत ऊर्जा प्राप्त करती है, वैसे ही ब्रह्माण्ड की सभी ऊर्जाएं अपनी शक्ति मातृकाओं से प्राप्त करती हैं। मातृकाओं की तंत्र-विद्या में एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है क्योंकि उनमें जन्मजात क्षमता है, जिस के फलस्वरूप वह स्वयं का प्रतिरूप बना सकती है और उनके प्रतिरूप भी अन्य शक्तियों और रूपों को जन्म दे सकते हैं। वह अपने सूक्ष्म रूप में हर जगह और हर चीज में है लेकिन यह मान्यता है कि वे अपने प्रकट रूप में ब्रह्मांड में उपस्थित है और आठ दिशाओं पर शासन करती है जो अनंत का भी प्रतीक है।

मार्कण्डेय पुराण में वर्णन मिलता है कि सप्तमातृकाओं की सहायता से चण्डिका देवी ने रक्तबीज का वध किया था। ये सात देवियां अपने पतियों के वाहन तथा आयुध के साथ यहां उपस्थित होती है ‘यस्य देवस्य यत्रूपं यथाभूषण वाहनम्’। ये सात देवियां ब्रह्माणी, वैष्णवी, माहेश्वरी, इन्द्राणी, कौमारीय, वाराही और नरसिंही है।

भारत में सप्तमातृकाओं की एकल व संयुक्त प्रतिमाएं मुख्यत: तीन रूपों में पायी जाती हैं-

1. स्थानक यानी खड़ी प्रतिमा,
2. आसनस्थ यानी बैठी हुई प्रतिमाएं,
3. नृत्यरत प्रतिमा।

वराह पुराण में कहा गया है कि मातृकायें आत्म ज्ञान हैं, जो अज्ञानता रूपी अंधकासुर के विरूद्ध युद्ध करती हैं। पुराणों में यह भी कहा गया है कि मातृकायें शरीर के मूल जीवंत अस्तित्व पर शासन करती हैं।

• ऋग्वेद में सात नदियों एवं सात स्वरों को माता कहा गया है। साथ ही वहाँ सप्त माताओं का उल्लेख भी है और कहा गया है कि उनकी देखरेख में सोम की तैयारी होती थी।
• मार्कण्डेय पुराण में वर्णन मिलता है कि युद्ध में चण्डिका की सहायता के लिए सप्तमातृकाएं उत्पन्न हुईं थीं। इन्हीं सप्तमातृकाओं की सहायता से देवी ने रक्तबीज का वध किया था।
• ईसा की पहली शताब्दी से मातृका पूजन का स्पष्ट उल्लेख मिलता है। वराहमिहिर के बृहत्संहिता मे एवं शूद्रक के मृच्छकटिकम् में मातृका पूजन का स्पष्ट उल्लेख मिलता है।
• स्कंदगुप्त के बिहार स्तंभलेख में मातृका पूजन उल्लेखित है।
• गुप्त शिलालेख के अनुसार ४२३ ई. में मालवा के विश्वकर्मन राजा के अमात्य मयूराक्ष ने मातृकाओं का एक मंदिर बनवाया था ।
• पांचवी सदी के गुप्तसम्राट प्रथम कुमारगुप्त के गंगाधर लेख में मातृका के मंदिर का उल्लेख मिलता है।
• चालुक्य एवं कदंब राजवंश सप्तमातृकाओं के उपासक थे।

चित्र - सरस्वती नदी कालीन (तथाकथित सिंधु घाटी सभ्यता ) सील , जिसमे पीपल के पत्ते पर श्रीकृष्ण , श्रीकृष्ण का श्रृंगी रूप तथा नीचे सप्त मातृकाएं
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शांतिबाई गोंड

माताजी शांतिबाई गोंड बड़ी आध्यात्मिक महिला है। औपचारिक शिक्षा ना होते हुए भी इनको रामायण महाभारत पौराणिक कथाओं का बड़ा ज्ञान है। वे अपना पूरा समय मंडला जिले के काला पहाड़ पर स्थित एक छोटी झोंपड़ी में एकाकी बिताती हैं जिसमे एक ही कमरा है और वह आदिदेवों का मंदिर भी है ।
अर्धमिश्रित गोंडी व हिंदी भाषा मे उन्होंने समझाया कि - पेन का मतलब देव । जैसे बड़ा पेन, बूढ़ा पेन, परसा पेन । ये सब प्रकृति की देव शक्तियां है जो किसी समाज के पहले पूर्वज के रूप में होती है और हमेशा उस परिवार के साथ रहती हैं व रक्षा करती हैं ।
झोपड़ी के अंदर ईश्वर के स्थान पर ज्योति जल रही थी व अनेक चिमटे गड़े थे , उन्होंने एक चिमटे से मेरे सर पर स्पर्श किया और बोली (जिसका अर्थ है) -
हे परसा पेन तू सल्लां और गांगरा शक्ति है ,
तू सभी जीव जगत की पालन शक्ति है ,
तू हमारे कर्म , कर्तव्य और कार्य की शक्ति है ,
तू हमारी शारीरिक , मानसिक और बौद्धिक शक्ति है ,
तू धन और ऋण शक्ति है ,
तू दाऊ और दाई शक्ति है ,
तू हमारी मनन , चिंतन , श्रवण तथा निगाह शक्ति है .
तू इस पोकराल (ब्रम्हाण्ड) की सर्वोच्च शक्ति है .
नाम बोलो - 
हमने कहा - अशोक 
वे बोली- परसापेन अशोक को स्वस्थ रखे , रक्षा करे , सारी परेशानियां दूर हों । लोगो की भलाई करो । जय नर्मदा माई , जय भोलेनाथ और इन्होंने हमको भभूत दी । हमने माताजी के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लिया । (कुछ पैसा चढ़ाना चाहा मगर उन्होंने नही लिया ) ll जय सेवा ।l

नवागुंजारा

भगवान नवागुंजारा Navagunjara :

यह कहानी महाभारत से है। अज्ञातवास के दौरान अर्जुन एक जंगल मे ध्यान योग कर रहे थे। तभी उनके सामने एक अजीब सा जीव आया जो नौ जीवों का मिश्रण था। वो तीन पैरों पर खड़ा था। उसका एक पैर  हाथी का था, दूसरा पैर चीता का औऱ तीसरा घोड़े का और चौथे पैर की जगह मनुष्य का हाथ था। उसका चेहरा मुर्गे का था औऱ गर्दन मोर की। उसका कूबड़ बैल का था, पीठ शेर को थी औऱ पूँछ सर्प की। अर्जुन ने जब उस जीव को अपने सामने देखा तो पहले तो वे भयभीत हो गए। उन्होंने तीर धनुष उठाया औऱ उस अजीब से जीव पर तान दिया। फिर उन्होंने उसे गौर से देखा तो उसमें मौजूद इंसानी हाथ को वो पहचान गए। उस हाथ मे एक कमल का फूल था। फिर उन्होंने और गौर से देखा तो उसमे मौजूद सभी जीवों को वो पहचान गए। फिर उन्होने धनुष किनारे रखा, घुटनों के बल उस जीव के सामने बैठ गए और बोले, नमस्ते! आपका अस्तित्व मेरी कल्पनाओं से परे हैं। आप मुझसे या मेरे द्वारा देखी सोची गई वस्तुओं से बिल्कुल अलग है, आप जरूर भगवान है। अचानक वो जीव भगवान विष्णु के रूप में बदल गया। ये भगवान विष्णु का नवागुँजारा स्वरूप है। भगवान जगन्नाथ के मंदिर में आप नवागुंजारा स्वरूप की तस्वीरे देख सकते हैं। ओडिसा में इनकी पूजा होती है।
आप सम्मानीय हैं क्योंकि आप मुझसे अलग है। आप मेरी सोच के परे हैं किंतु मेरी सोच सीमित है। ईश्वर उस स्वरूप में भी हो सकता है जिसके बारे में हम सोच नही सकते। यही भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म है । आप मुझसे भिन्न है इसलिए मैं आपका सम्मान करता हूँ , आप ईश्वर भी हो सकते हैं । 

This is indian culture. If You are different from me, you will be respectful , you must be a God.