My Blog on Forgotten Heros, Forgotten History, Dharma (Religion) , Darshan (Philosophy), Science and Technology . भारतीय इतिहास , धर्म , दर्शन
गुरुवार, 19 दिसंबर 2024
विखंडनवाद (Deconstruction)
रविवार, 8 दिसंबर 2024
क्वांटम फील्ड थ्योरी" और भारतीय तत्वज्ञान
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI)
बुधवार, 27 नवंबर 2024
ब्रम्हरन्ध
सायर नाही सीप बिन, स्वाति बूंद भी नाहि।
कबीर मोती नीपजे, सुन्नि सिषर गढ़ माहिं।।
अर्थात कबीर दास जी अपनी इस साखी में कहते हैं कि शरीर रूपी किले में सुषुम्ना नाड़ी के ऊपर स्थित ब्रह्मरंध्र में ना तो समुद्र है, ना ही सीप है और ना ही वहाँ पर स्वाति नक्षत्र की बूंद है, फिर भी वहाँ मोक्ष रूपी मोती उत्पन्न होता है अर्थात एक अद्भुत दिव्य ज्योति का दर्शन हो रहा है।
ब्रह्मरंध्र का उल्लेख योग और तंत्र शास्त्रों में अत्यधिक महत्वपूर्ण बिंदु के रूप में किया गया है। यह शरीर के शीर्ष पर स्थित सहस्रार चक्र के भीतर एक सूक्ष्म केंद्र होता है, जो आध्यात्मिकता और चेतना के उच्चतम स्तर का प्रतीक है। "ब्रह्मरंध्र" का शाब्दिक अर्थ है "ब्रह्म का द्वार" या "ईश्वर का द्वार", और यह माना जाता है कि इसी मार्ग से आत्मा शरीर को त्यागती है और ब्रह्मांडीय चेतना से एक हो जाती है।
ब्रह्मरंध्र का महत्व मुख्य रूप से साधक की आध्यात्मिक उन्नति में है। यह स्थान सिर के शीर्ष पर मौजूद होता है, जिसे 'सहस्रार चक्र' कहा जाता है, और इसे हजार पंखों वाले कमल के रूप में वर्णित किया गया है। जब साधक गहन साधना, ध्यान या कुंडलिनी जागरण की अवस्था में पहुंचता है, तब कुंडलिनी शक्ति मेरुदंड के नीचे से ऊपर उठकर इस चक्र को भेदती है, और ब्रह्मरंध्र के माध्यम से साधक को आत्म-साक्षात्कार या मोक्ष की अनुभूति होती है। यह परम आनंद और शांति की अवस्था होती है, जिसे ब्रह्म से मिलन कहा जाता है।
ब्रह्मरंध्र को भेदन करने की प्रक्रिया साधक के जीवन में सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है, क्योंकि यह व्यक्ति के सीमित अहंकार को समाप्त कर उसे अनंत चेतना से जोड़ता है। इस चक्र के जागृत होने पर साधक के भीतर दिव्य ज्ञान, सत्य और असीम शांति का अनुभव होता है। योग शास्त्रों में इसे जीवन और मृत्यु के बंधनों से मुक्ति का मार्ग बताया गया है।
ध्यान योग
भगवद् गीता में ध्यान योग (अध्याय 6: ध्यान योग) को मन की एकाग्रता और आत्मनियंत्रण के माध्यम से आत्मा और परमात्मा का साक्षात्कार करने का साधन बताया गया है। इसे साधना की एक प्रक्रिया के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिसके द्वारा व्यक्ति अपने मन को नियंत्रित कर, ध्यान के माध्यम से, अपने भीतर स्थित आत्मा और परमात्मा को अनुभव कर सकता है।
ध्यान योग के कुछ प्रमुख पहलू निम्नलिखित हैं:
1. मन का नियंत्रण: भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि मन बड़ा चंचल होता है, परंतु अभ्यास और वैराग्य के द्वारा इसे वश में किया जा सकता है। मन को इधर-उधर भटकने से रोककर उसे आत्मा पर केंद्रित करना ध्यान योग का प्रमुख उद्देश्य है।
2. साधना की विधि: ध्यान योग में व्यक्ति एकांत स्थान पर बैठकर, शरीर और मन को स्थिर कर, ध्यान के द्वारा आत्मा पर ध्यान केंद्रित करता है। ध्यान करते समय सीधा बैठने, श्वास पर ध्यान केंद्रित करने, और ईश्वर पर मन को लगाकर साधना करने की सलाह दी गई है।
3. समता भाव: ध्यान योग के माध्यम से साधक अपने भीतर और बाहर समता भाव को प्राप्त करता है, अर्थात सुख-दुख, लाभ-हानि, सफलता-असफलता जैसे द्वंद्वों से परे होकर परम शांति का अनुभव करता है।
4. अभ्यास और संयम: ध्यान योग में निरंतर अभ्यास और संयम की आवश्यकता होती है। नियमित साधना से मन को नियंत्रित किया जा सकता है, जिससे अंततः आत्मा का ज्ञान और मुक्ति प्राप्त होती है।
गीता में ध्यान योग को ईश्वर की अनुभूति का साधन बताते हुए कहा गया है कि जब व्यक्ति अपने मन को नियंत्रित कर, ध्यान की अवस्था में स्थित होता है, तब उसे आत्मसाक्षात्कार की प्राप्ति होती है और वह परमात्मा से एकाकार हो जाता है।
शांभवी मुद्रा
मां दुर्गा का एक नाम शांभवी भी है। वह जो अचेतन को भी चेतन कर सकती है। इन्हीं के नाम पर बना है - हजारो वर्ष पुराना शांभवी मुद्रा योग। यह योगमुद्रा मन को एकाग्रचित करने के साथ ही आंखों में मौजूद विकार भी दूर करता है।
योग जगत में शांभवी मुद्रासन की खास जगह है। जो कि मन और मस्तिष्क को शांत करने में कारगर भूमिका निभाता है। इस मुद्रा की खास बात यह है कि इसके तहत आपकी आंखें खुली रहती हैं, लेकिन फिर भी आप कुछ देख नहीं पाते। वास्तव में योगाचार्यों के मुताबिक यह मुद्रा एक कठिन साधना है।
शांभवी मुद्रा की विधि (Shambhavi Mudra) -
गुरु के मार्गदर्शन में ध्यान के आसन में बैठें और अपनी पीठ सीधी रखें।
आपके कंधे और हाथ बिलकुल ढीली अवस्था में होने चाहिए।
इसके बाद हाथों को घुटनों पर चिंमुद्रा, ज्ञान मुद्रा या फिर योग मुद्रा में रखें। आप सामने की ओर किसी एक बिंदु पर दृष्टि एकाग्र करें।
इसके बाद ऊपर देखने का प्रयास करें। ध्यान रखिए आपका सिर स्थिर रहे। इस बीच आप अपने विचारों को भी नियंत्रित करने की कोशिश करें। सिर्फ और सिर्फ ध्यान रखें। इस बीच कुछ न सोचें।
शांभवी मुद्रा के दौरान आपकी आपकी पलकें झपकनी नहीं चाहिए।
इस आसन को शुरुआती दिनों में कुछ ही सेकेंड तक करें। यानी जैसे-जैसे आपकी ध्यान लगाने की और अपने विचारों पर नियंत्रण करने की क्षमता में विकास हो, वैसे वैसे इस आसन को करने के समय सीमा भी बढ़ाते रहें। इसे आप अधिकतम 3 से 6 मिनट कर सकते हैं।
शांभवी मुद्रा के लाभ-
शांभवी मुद्रा आज्ञा चक्र को जगाने वाली एक शक्तिशाली क्रिया है। आज्ञा चक्र निम्न और उच्च चेतना को जोड़ने वाला केंद्र है। इस मुद्रा से आपको शारीरिक लाभ तो हासिल होगा ही इसके अलावा यह मुद्रा आपकी आंखों के स्नायुओं को भी मजबूत बनाती है। इतना ही नहीं यह मुद्रा आपके मन और मस्तिष्क को शांत करती है। अर्थात यदि आप किसी बात से तनाव महसूस करें तो इस मुद्रा की मदद से अपने तनाव को कम कर सकते हैं। इसके तहत आंखें खुली रखकर भी व्यक्ति सो भी रहा होता है और ध्यान का आनंद भी ले रहा होता है। इसके योग मुद्रा के जरिए आप डिप्रेशन जैसी बीमारी से भी खुद को दूर कर सकते हैं।
'तुः' अक्षरस्य च देवी शाम्भवी देवता शिवः ।।बीजं 'शं' अत्रिरेवर्षिः शाम्भवी यन्त्रमेव च ।।भूती मुक्ताशिवे मुक्तिः फलं चानिष्टनाशनम्॥
देवी तत्त्व
देवी तत्व का दर्शन भारतीय दर्शन और आध्यात्मिक परंपराओं का एक महत्वपूर्ण भाग है। यह दर्शन शक्ति या माँ के रूप में देवी की पूजा और मान्यता को केन्द्र में रखता है। देवी तत्व का मुख्य आधार यह है कि समस्त सृष्टि में शक्ति का स्रोत एक मातृ रूपी देवी है, जो सृजन, पालन, और संहार तीनों की अधिष्ठात्री है। इस दर्शन में देवी को संसार की आदि शक्ति माना जाता है, जो ब्रह्मांड की ऊर्जा का प्रतीक होती है।
देवी तत्व के कुछ मुख्य पहलू:
1. शक्ति का स्वरूप: देवी को शक्ति का स्वरूप माना जाता है। वे संसार की ऊर्जा का स्रोत हैं, और इस शक्ति के बिना कुछ भी संभव नहीं है। यही शक्ति विभिन्न रूपों में प्रकट होती है, जैसे दुर्गा, काली, लक्ष्मी, सरस्वती आदि।
2. अधिभौतिक और आध्यात्मिक सृजन: देवी न केवल भौतिक जगत की उत्पत्ति करती हैं, बल्कि वे आध्यात्मिक जागरण और मुक्ति का मार्ग भी प्रशस्त करती हैं। वे भौतिक और आध्यात्मिक दोनों स्तरों पर सक्रिय रहती हैं।
3. माया और मोक्ष: देवी माया का रूप हैं, जो संसार के बंधनों का कारण बनती हैं, लेकिन वही मोक्ष का द्वार भी खोलती हैं। उन्हें माया और मोक्ष की अधिष्ठात्री माना जाता है।
4. प्रकृति और पुरुष: देवी तत्व दर्शन में प्रकृति को देवी का रूप माना जाता है, और पुरुष या आत्मा को शिव के रूप में। शिव बिना शक्ति (देवी) के निष्क्रिय होते हैं, इसलिए शक्ति को सर्वोच्च माना गया है।
5. त्रिगुण और त्रिदेव: देवी को सत्त्व, रजस और तमस तीनों गुणों का स्वामी माना जाता है। वे ब्रह्मा (सृजन), विष्णु (पालन) और महेश (संहार) की शक्ति के रूप में प्रतिष्ठित हैं।
देवी तत्व का आध्यात्मिक संदेश:
देवी तत्व हमें यह सिखाता है कि जीवन में शक्ति का महत्व है, और हमें इस शक्ति का सम्मान और उपयोग करना चाहिए। देवी का ध्यान और पूजा जीवन में संतुलन, शक्ति, ज्ञान, और समृद्धि लाने के लिए होती है।